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दीदी
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'वे तीन दिन के लिए यात्रा पर गये हैं
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'अच्छा, अब बात समझ में आई ! इसलिए ही मुझे निमन्त्रण मिला है।' वह प्रियंगुमति से बातें करती थी पर उसकी आँखें तो कामगजेन्द्र को ही खोज रही थी । उसके मन की दुविधा मिट गई ।
'अरे! जिनु, तुझे निमन्त्रण कैसा? इच्छा हो तो मेरी बहन को यहीं रख लूँ मेरे पास ?'
'अच्छा दीदी, रात को आ जाऊँगी।'
जिनमति त्वरित गति से वहाँ से चली गई । कल्याणी ने भोजन की थाली लेकर प्रवेश किया ।
'आज तो जिनमति काफी देर तक बैठी, नहीं?' कल्याणी ने थाली रखते हुए पूछा ।
'हाँ, बातों में खो गये थे।'
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'कितनी अच्छी है जिनमति ! आप तो उसको छोड़ती ही नहीं ! सच ऐसी कन्या अपने नगर में तो दूसरी है ही नहीं ।'
'हाँ, न जाने क्यों मुझे जिनु से इतना स्नेह बँध गया है!' कहकर प्रियंगुमति भोजन की तैयारी करने लगी ।