Book Title: Rag Virag
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दीदी 1 'वे तीन दिन के लिए यात्रा पर गये हैं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१ 'अच्छा, अब बात समझ में आई ! इसलिए ही मुझे निमन्त्रण मिला है।' वह प्रियंगुमति से बातें करती थी पर उसकी आँखें तो कामगजेन्द्र को ही खोज रही थी । उसके मन की दुविधा मिट गई । 'अरे! जिनु, तुझे निमन्त्रण कैसा? इच्छा हो तो मेरी बहन को यहीं रख लूँ मेरे पास ?' 'अच्छा दीदी, रात को आ जाऊँगी।' जिनमति त्वरित गति से वहाँ से चली गई । कल्याणी ने भोजन की थाली लेकर प्रवेश किया । 'आज तो जिनमति काफी देर तक बैठी, नहीं?' कल्याणी ने थाली रखते हुए पूछा । 'हाँ, बातों में खो गये थे।' For Private And Personal Use Only 'कितनी अच्छी है जिनमति ! आप तो उसको छोड़ती ही नहीं ! सच ऐसी कन्या अपने नगर में तो दूसरी है ही नहीं ।' 'हाँ, न जाने क्यों मुझे जिनु से इतना स्नेह बँध गया है!' कहकर प्रियंगुमति भोजन की तैयारी करने लगी ।

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