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दो देह एक प्राण
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|| ५. दो देह एक प्राण ।
जिनमति की शादी कामगजेन्द्र के साथ भली-भाँति हो गई। प्रियंगुमति का सोचा हुआ कार्य पूरा हो गया। कामगजेन्द्र की कामना पूरी हुई और जिनमति के मनोरथ भी पूर्ण हो गये। ___ संसार में ऐसे सम्बन्ध बँध तो जाते हैं पर दीर्घकाल, जीवनपर्यंत ऐसे सम्बन्ध बने रहना मुमकिन नहीं। इसका कारण जीवात्मा के पुण्य-पाप हैं, ऐसा धर्मग्रन्थ कहते आए हैं | मानवशास्त्री इस बात को मानव स्वभाव के गुणदोष के सिद्धांत से समझाते हैं।
कामगजेन्द्र का स्नेह दोनों पत्नियों पर है। प्रियंगुमति का स्नेह कामगजेन्द्र और जिनमति दोनों पर बरस रहा है। जिनमति भी कामगजेन्द्र और प्रियंगुमति पर अपना समूचा प्रेम उड़ेल रही है। परिवार में न तो संघर्ष है और न ही तनाव । न तो ईर्ष्या और न ही स्पर्धा |
स्नेह गुण-दोष की ओर नजर करता ही नहीं। गुण-दोष के माध्यम से बँधा स्नेह लम्बे अरसे तक नहीं टिक सकता, अखण्ड नहीं रह पाता, बढ़ता नहीं जाता। जिनमति, प्रियंगुमति और कामगजेन्द्र का परस्पर का स्नेह प्रगाढ़ और गहरा था।
कामगजेन्द्र का बाह्य व्यक्तित्व राग और विलास से रंगा हुआ दिखता है पर अन्तरात्मदशा तो बिल्कुल ही भिन्न है । अन्तरात्मा से वह विरागी है, विरक्त है। ज्ञाता है, द्रष्टा है। क्या ऐसा विरोधाभासी व्यक्तित्व हो सकता है? हाँ, हो सकता है। मनुष्य बाहर से जैसा दिखता हो अन्दर से वैसा ही हो ऐसा कोई सनातन नियम नहीं है। जैसा अन्दर में हो वैसा ही बाहर से दिखना चाहिए, ऐसा भी कोई सर्वमान्य सिद्धान्त नहीं है। बाहर से साधु दिखने वाला भीतर से शैतान भी हो सकता है। अन्दर से साधु हो पर बाहर से हमें शैतान दिखाई दे, यह भी शक्य है। भीतर से भी साधु और बाहर से भी साधु, ऐसी विरल आत्माएँ भी हो सकती हैं। इन शक्यताओं का अपलाप हम नहीं कर सकते।
श्रेष्ठिकन्या राजकुमार की पत्नी बनी। जिनमति के पास यौवन था पर उन्माद नहीं था। उसके पास रूप एवं सौन्दर्य था पर गर्व नही था। उसके पास मीठे बोल थे पर वाचालता नहीं थी। जिनमति कार्यकुशल थी पर
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