Book Title: Rag Virag
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ जिनमति जिनमति के पास मदभरा यौवन था पर वह उन्मत्त नहीं थी। उसके हृदय में सुखों की कामना थी पर दूसरों के सुख छीनकर अपने सुख को प्राप्त करने की वासना नहीं थी। उसके मनोमंदिर में कामगजेन्द्र बस चुका था, पर वह प्रियंगुमति की तरफ भी इतनी ही सहानुभूतिपूर्ण एवं स्नेहार्द्र थी। उसने कामगजेन्द्र के रूप को टुकुर-टुकुर देखा था पर कामगजेन्द्र के व्यक्तित्व से, उसके स्वभाव से अपरिचित थी। रूपवान व्यक्तित्त्व गुणवान हो ही ऐसा कोई नियम नहीं, गुणवान व्यक्ति रूपवान न भी हो। ___ 'कामगजेन्द्र रूपवान तो है पर उसके व्यक्तित्व को मैं जानती ही नहीं... और मैं कल्याणी को पूर्वी भी कैसे? वह राजकुमार के बारे में कुछ बताती ही नहीं है । मैं यदि पूछ् तो यह क्या सोचेगी मेरे बारे में? पर हाँ... वह ही बताये राजकुमार के गुण, तो बात बने ।' जिनमति का मन द्वन्द्व से घिर गया। 'अरे, पर मैं कितनी भोली हूँ। कोई जरूरी तो नहीं कि राजकुमार मुझे चाहते ही हों? वह मेरे सामने देखते हैं, रोज मेरी नजरें उनकी निगाहों से टकराती है, पर इसका अर्थ यह कैसे हो सकता है कि वे मुझे चाहते ही होंगे? हो सकता है चाहते भी हों, पर वह चाहना... वह प्रेम स्त्री-पुरुष का... प्रकृतिपुरुष का ही हो, इसका सबूत क्या? क्या वे मुझे निर्लेप भाव से, निर्मल दृष्टि से तो नहीं देखते होंगे? मैं उन्हें जिन निगाहों से देखती हूँ क्या वे भी उन्हीं निगाहों से देखते होंगे? ऐसा मान कर मैं कुछ भूल तो नहीं कर रही हूँ?' जिनमति का मन कसक उठा। उसने अपनी हथेलियों के बीच सर को दबा दिया। युवा हृदय कभी-कभी ऐसी भूले कर बैठता है। कोई उसकी तरफ स्नेहल आँखों से झाँके, थोड़े स्मित के साथ बात करे या थोड़ा स्नेह प्रदर्शित करे, युवा हृदय मान लेता है कि 'यह तो मुझे चाहती है, यह तो मेरे साथ प्रेम करती है।' प्रेम की परिभाषा आज तो मात्र थोड़ा शारीरिक मिलन... कल्पना की उड़ानभरी रंगीन बातें...और थोड़ा सा सहवास | यह कोई जरूरी नहीं कि सामने वाले व्यक्ति के स्मित या दृष्टिपात में यह सब हो ही! हो सकता है मात्र उसके प्रति प्रेम आदर... सम्मान का भाव! भक्ति की भावना! या फिर भाईबहन के निर्दोष स्नेह की धारा का प्रवाह! जिनमति को भय लगा- कही राजकुमार मुझे भगिनी-भाव से तो नहीं देखते होंगे? मैं तो उन्हें मेरे मनमन्दिर का देवता बनाकर पूज रही हूँ! नहीं For Private And Personal Use Only

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