Book Title: Rag Virag
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काम गजेन्द्र १. काम गजेन्द्र अरुणाभ नगर था। रत्नगजेन्द्र राजा अरुणाभ के बलशील सम्राट के रूप में विख्यात थे। राजा को मात्र एक ही संतान थी और वह था कामगजेन्द्र । कामगजेन्द्र सचमुच कामदेव जैसा ही था । रूप तो मानों विधाता ने उसको ही दिया था। सुन्दरता के साथ-साथ उसमें अनेक गुण भी थे। विनम्रता, प्रेमपूर्ण व्यवहार, दया, करुणा आदि गुण उसके व्यक्तित्व को निखार रहे थे। राजा ने कुमार को बहत्तर कलाएँ सिखलायी। कामगजेन्द्र ने किशोरावस्था की दहलीज को लाँघकर यौवन के आँगन में प्रवेश किया। माता-पिता को कामगजेन्द्र बड़ा प्यारा था और क्यों न हो? कितना विनयी, सुशील और संस्कारी था वह! राजा ने बड़ी धूम-धाम से प्रियंगुमति नामक सुन्दर, सुशील और गुणवती राजकुमारी के साथ उसकी शादी की। कामगजेन्द्र प्रियंगुमति के साथ संसार के सुखोपभोग में अपना समय व्यतीत करता है और चैन से अपना जीवन बिता रहा है। पर यह संसार है! इस संसार में किसके सुख सदाकाल टिके है? यदि संसार में शाश्वत् सुखोपलब्धि हो जाती तो हमारे ऋषि-मुनि मोक्ष की, त्याग और वैराग्य की बातें करते ही क्यों? कितनी करुणता भरी है संसार में? मनुष्य को जरा से सुख की प्राप्ति होती है और वो उसे शाश्वत् मान लेता है, सुखों मैं खो जाता है! पर अंजाम कितना दुःखद एवं वेदनापूर्ण आता है! जब उन सुखों का वियोग होता है, वे सुख उसे छोड़कर चले जाते हैं, तब वो सर पटक-पटक कर करुण रूदन करता है। बेबस बनकर निराशा के गहन अंधकार में डूब जाता है। ___ हाँ, इससे वे लोग बच सकते हैं कि जिन्होंने अपनी दृष्टि में ज्ञान का अंजन आँज लिया हो । ज्ञानदृष्टियुक्त स्त्री-पुरुष संसार में भी रहें, सुखोपभोग भी करें, पर उन सुखों में तीव्र आसक्त नहीं बनेंगे। सुखों की विनश्वरता और चंचलता वे जानते हैं। प्रियंगुमति जो कि कामगजेन्द्र की सहचारिणी थी, वह ज्ञानदृष्टि वाली थी। सांसरिक सुखोपभोग में वो अति आसक्त नहीं थी। कामगजेन्द्र के रमणीय महल के ठीक सामने अरुणाभ नगर के एक राजमान्य श्रेष्ठि की बड़ी हवेली For Private And Personal Use Only

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