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काम गजेन्द्र में जो अनुभव किया और जो सुना, क्या वह बिल्कुल सत्य है? कोई देवमाया या इन्द्रजाल तो नहीं?' __ 'देवानुप्रिय! वह सब सत्य है।' तीर्थंकर की मधुर आवाज वातावरण में घंटियों सी गूंजती रही। वह व्यक्ति वंदना करके अहोभावभरी आँखों से परमात्मा को देखता हुआ अपने स्थान पर बैठ गया।
भगवंत के चरणों में ही इन्द्रभूति गौतम जो कि महावीरस्वामी के प्रथम गणधर एवं प्रमुख शिष्य थे, बैठे थे। गौतमस्वामी को महावीर के प्रति गाढ़ अनुराग था | मानों कि जनम-जनम की प्रीत इस जनम में आकार ले बैठी थी। ऐसे परमात्मप्रेमी गौतमस्वामी ने भगवान से सविनय प्रश्न किया- 'प्रभो! इस व्यक्ति ने अभी आपको क्या पूछा और आपने क्या प्रत्युत्तर दिया? क्या आप हमें इस सांकेतिक प्रश्न एवं जवाब का रहस्य खोलकर बताने की कृपा करेंगे? इन वाक्यों में छिपी कहानी आप हमें कहने की कृपा करेंगे?'
समवसरण में बैठे हर एक मनुष्य को गौतमस्वामी का प्रश्न अच्छा लगा, समयोचित लगा। क्योंकि सबके मन में उस प्रश्न पूछने वाले व्यक्ति के प्रति जिज्ञासा पैदा हो चुकी थी। प्रश्न जितना गूढ़ था, प्रत्युत्तर उतना ही गहन एवं रहस्यपूर्ण था। कुछ समझ में नहीं आ रहा था लोगों को! सब के सब बड़े उत्कंठित
थे जवाब सुनने के लिए। सबकी निगाहें महावीर के मुखारविन्द पर जम गई। ___ वातावरण की नीरवता में महावीर के मीठे बोल गूंज उठे- 'गौतम! यह कहानी लम्बी है, पर है अति रसमय। संसार के क्षेत्र में राग और द्वेष के कैसे युद्ध खेले जाते हैं, कर्मपरवश जीवात्मा कैसी पवनोन्मुखी बन जाती है और जब उसकी ज्ञानदृष्टि खुल जाती है, तो वो कितना भव्य धर्मपुरुषार्थ करके विरक्ति की राह पर आगे कदम बढ़ाती हुई मुक्ति की मंजिल पर चलती जाती है, यह बात राजकुमार कामगजेन्द्र की इस कहानी में छिपी है।' ___'मेरे प्रभो! कामगजेन्द्र की कहानी हमें अवश्य सुनाइये। कहानी सुनकर अनेक भव्य जीवात्माओं की राग की जंजीरें विरक्ति की वरमाला में बदल जायेगी। वैराग्यरसलीन बनकर अनेक जीवात्माएँ आत्मसिद्धि का प्रबल पुरुषार्थ करने के लिए प्रयत्नशील बनेंगी।' गौतमस्वामी की मधुर मंजुल वाणी गूंज उठी। __ परमात्मा महावीरदेव के मधुर शब्दों में कही गई कहानी राग विराग के सदाकाल से चले आ रहे संघर्ष को उजागर करती है। वही कहानी नयेनिखरे रूप में प्रस्तुत है।
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