Book Title: Rag Virag
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काम गजेन्द्र तो ये ही आराध्य देव हैं, मेरे सर्वस्व हैं। मुझे याद नहीं आता कि कभी मैंने इनके दिल को तनिक भी पीड़ा पहँचायी हो। कभी मैंने इन्हें कटु शब्दों के तीर से बिंधा हो । कभी इन्हें परेशानी या उलझन का शिकार बनाया हो। पर कोई जरूरी तो नहीं कि अपनी पत्नी से असंतुष्ट पुरुष ही अन्य स्त्री की तरफ आकर्षित होता है। अपनी स्त्री से पूर्ण संतुष्ट पुरुष भी हो सकता है कि अन्य स्त्री की तरफ खींचा चला जाय। वैसे ही स्त्री भी पति से पूरी सन्तुष्टि मिलने पर भी अन्य पुरुष की आराधना करने लगे।' प्रियंगुमति मानव मन के परिवर्तनों की सहजता पर सोच रही है। उसके मन में कामगजेन्द्र के प्रति भी गुस्सा या प्रतिशोध की आग नही सुलग रही है। कोई नाराजगी या उदासी के अन्धेरे में वह नहीं भटक गई है। ज्ञानदृष्टि वाली आत्मा को गुस्सा कैसा? नाराजगी कैसी? क्रोध, अभिमान आदि दोष तो अज्ञानदृष्टि-बहिर्दृष्टि की आँखमिचौलियाँ है। प्रियंगुमति चिंतन की, विचारों की गहराइयों में डूबी जा रही है। नींद उसकी बैरन बन चुकी है। वह विचारों के झूले झूल रही है। 'मुझे इन्हें सावधान करना चाहिये। मुझे इन्हें कह देना चाहिये कि तुम्हारे जैसे अच्छे आदमी के लिए क्या यह शोभास्पद है? यदि मैं इन्हें नहीं रोकूँगी तो फिर मेरा क्या होगा? नहीं, नहीं, मुझे ऐसा क्यों सोचना चाहिए? हाँ शायद मुझे इनकी तरफ से सुख मिलेगा...नहीं मिलेगा... कबूल है, पर मुझे विश्वास है कि वे मुझे दुःखी तो करेंगे ही नहीं और यदि मेरे ऐसे ही पापकर्मो का उदय होगा तो दुःख भी आ सकता है। संसार में ऐसा तो होता ही रहता है। मुझे समता-भाव से सहन कर लेना होगा।' प्रियंगुमति समझती है कि कामगजेन्द्र राजकुमार है, युवा है... उसे एक ही पत्नी करने का कोई प्रतिबंध नही है। फिर भी उस समय वह कामगजेन्द्र की प्रिया थी। प्रियंगुमति को कामगजेन्द्र का पूरा प्यार मिल रहा था। मिला हुआ सुख कौन छिनने देगा? मिले हुए का बंटवारा भला कौन मंजूर करेगा? उसके मन के सागर में असंख्य विचारों की तरंगे उठ रही हैं। ___ 'ये श्रेष्ठिकन्या पर मुग्ध बने हैं, यह हकीकत है। श्रेष्ठिकन्या भी शायद मन ही मन इनके प्रति आकर्षित हो रही हो, यह भी हो सकता है। इसका परिणाम यही होगा कि दोनों शादी कर लेंगे, मंजूर है मुझे । यदि ऐसे ये सुखी बनते हों तो भला मैं क्यों इनके बीच दीवार बनूँ? आखिर इनका सुख इनकी खुशी, इनकी प्रसन्नता ही तो मेरा सब कुछ है। मेरा कर्तव्य है इन्हें सुख देने For Private And Personal Use Only

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