Book Title: Rag Virag
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वितीय आवृत्ति का उद्बोधन.... ___विक्रम की नवम शताब्दि में आचार्यश्री उद्योतनसूरिजी ने 'कुवलयमाला' नाम के कथाग्रन्थ की रचना की है। प्राकृत भाषा में यह ग्रन्थ लिखा गया है। प्राकृत-भाषा का यह श्रेष्ठ कथाग्रन्थ माना गया है। उद्योतनसूरिजी 'दाक्षिण्यचिह्नसूरि' के उपनाम से जैनाचार्यों की परम्परा में प्रसिद्ध हैं। कवीश्वर उद्योतनसूरिजी ने स्वयं कहा है की इस ग्रन्थ की रचना उन्होंने 'ह्रीदेवी' की सहाय से की है। १३ हजार श्लोक प्रमाण इस महान् ग्रन्थ में 'राग विराग' का कथावस्तु प्राप्त होता है। मेरे इस धार्मिक उपन्यास का आधार ग्रन्थ है 'कुवलयमाला' | ___ कामगजेन्द्र राजकुमार है। प्रियंगुमति के साथ उसकी शादी होती है। प्रियंगुमति का व्यक्तित्त्व कितना महान था? वास्तव में देखा जाय तो इस उपन्यास का नाम 'प्रियंगुमति' ही रखना चाहिये था, परन्तु आधार ग्रंथ के अनुसार मैनें 'राग-विराग' नाम पसन्द किया है। दूसरी पत्नी बनती है जिनमति! आधार ग्रन्थ में दूसरी पत्नी का नाम नहीं दिया गया है। मैंने उसको 'जिनमति' नाम दिया है, जो कि सार्थक नाम है। कामगजेन्द्र में जिस प्रकार रंग और भोगविलास को प्रचुरता दिखाई देती है वैसे ही उसके आन्तर जीवन में त्याग, वैराग्य और उत्कृष्ट प्रेम की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। मैंने इस कहानी को गुजराती भाषा में 'रागविरागना खेल' नाम से लिखी और प्रकाशित भी हो गई। यह कहानी सबसे पहले 'अरिहंत' (हिन्दी मासिक पत्र) में छपी थी। बाद में पुस्तकरूप में भी प्रगट हुई। अब वापस द्वितीय संस्करण के रूप में आपके पास पहुंच रही है। हिन्दी भाषी जनता के लिए यह कहानी रोचक, बोधक और प्रेरक बनेगी, ऐसी मेरी श्रद्धा है। नूतनवर्ष वि. सं. २०४१, मद्रास भद्रगुप्तविजय For Private And Personal Use Only

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