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पुरुदेव चम्पूप्रबन्ध
कम दो-तीन मास व्यतीत होनेपर अन्य मुनि भूख-प्यास से व्याकुल हो गये । भगवान् मौन-से रहते थे अतः किसीसे कुछ कहते नहीं थे । परीषहोंकी बाधा न सह सकने के कारण वे मुनि, गृहीतव्रतसे च्युत हो गये, वल्कल आदि धारण कर वनमें रहने लगे तथा फल-फूल खाकर भगवान् की उपासना करने लगे । उन भ्रष्टराजाओंमें भरतका पुत्र मरीचि प्रधान था । उसने कपिलमत - सांख्यमत चलाकर जगत् में अपनी प्रभुता स्थापित की ।
भगवान् की तपस्याका वर्णन
जब भगवान् ध्यानमें लीन थे तब कच्छ - महाकच्छ राजाके पुत्र नमि - विनमि उनसे राज्य माँगने के लिए प्रार्थना करने लगे । 'भगवान्के ध्यान में वाधा न हो' इस भावनासे धरणेन्द्रने प्रकट होकर उनसे कहा कि भगवान् तुम्हारे लिए जो राज्य दे गये हैं वह मैं तुम्हें देता हूँ । यह कह कर वह उन्हें विजयार्धपर्वत पर ले गया तथा दक्षिणश्रेणीका राज्य नमिको और उत्तर श्रेणीका राज्य विनमिको देकर चला गया । साथ ही अनेक विद्याएँ भी उन्हें दे गया ।
छह माह व्यतीत होनेपर भगवान् आहारके लिए निकले परन्तु उस समय कोई आहारकी विधि नहीं जानता था इसलिए छह माह तक उन्हें भ्रमण करना पड़ा। इस प्रकार एक वर्षका अनशन समाप्त कर कुरुजांगल देशके हस्तिनापुर नगर पहुँचे । उसी रात्रिको वहाँ के राजा सोमप्रभने शुभ स्वप्न देखे । पुरोहितने बताया कि किसी महापुरुषका आज नगरमें आगमन होगा । कुछ देर बाद महायोगीन्द्र वृषभदेवने नगर में प्रवेश किया | उन्हें देखते ही राजा सोमप्रभके भाईको जातिस्मरण हो गया । जिससे उसे दानकी सब विधि स्मरणमें आ गयी । उसने पडगाह कर इक्षु रसका आहार दिया । देवोंने पंचाश्चर्य किये । एक वर्ष बाद भगवान्की पारणा हो जानेसे सर्वत्र हर्ष छा गया । भरत महाराजने सोमप्रभ राजा, उनकी स्त्री लक्ष्मीमती, राजा श्रेयान्स और उनकी स्त्रीका बड़ा सम्मान किया । दानका स्वरूप तथा उसके फलका विस्तृत वर्णन श्रेयान्सने किया
वट वृक्ष के नीचे ध्यान निमग्न होकर भगवान्ने फाल्गुन कृष्ण एकादशी के दिन केवलज्ञान प्राप्त किया । सौधर्मेन्द्र, ज्ञानकल्याणकका उत्सव करने के लिए आया । उस समय देवोंके विमान आकाशरूपी समुद्र में नावोंके समान जान पड़ते थे ।
इन्द्रकी आज्ञा से कुबेरने समवसरणकी रचना की । समवसरणका विस्तृत वर्णन ।
इन्द्रादिकोंने समवसरणमें प्रवेश कर वृषभ जिनेन्द्रकी स्तुति प्रारम्भ की स्तुतिका वर्णन । स्तुति के अनन्तर सब देव अपने-अपने कोठों में बैठे ।
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