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पुरुदेव चम्पूप्रबन्ध
इस प्रकार जन्मकल्याणकका कार्य पूर्ण कर इन्द्र स्वर्गको वापस
चला गया ।
जिनबालक और उनकी बाललीलाओंका वर्णन ।
षष्ठ स्तबक
भगवान् वृषभदेवके शरीरका वर्णन |
यौवनका प्रारम्भ होनेपर पिता नाभिराजने उनसे विवाहकी प्रार्थना की । भगवान् वृषभदेवने मन्दहास्यपूर्वक पिताकी आज्ञा स्वीकृत की । कच्छ, महाकच्छकी बहनें यशस्वती और सुनन्दाके साथ उनका विवाह सम्पन्न हुआ। उन स्त्रियोंके साथ सुखोपभोग करते हुए भगवान्का बहुत भारी समय क्षणभरके समान बीत गया ।
किसी समय रानी यशस्वतीने शुभस्वप्न देखकर गर्भधारण किया । गर्भवती यशस्वतीका वर्णन ।
तदनन्तर शुभलग्न में यशस्वतीने पुत्र उत्पन्न किया । पितामह नाभिराजने पोतेके जन्मका महोत्सव किया । मनचाहा दान दिया । पुत्रका नाम भरत रखा गया । उसीके नामसे इस देशका भारत नाम प्रसिद्ध हुआ ।
भरतकी बालचेष्टाओंका वर्णन । भरत, धीरे-धीरे युवावस्थामें प्रविष्ट हुए ।
वज्रजंघभव में जो मतिवर आदि साथी थे वे अब भगवान् के पुत्र हुए । कालक्रमसे यशस्वतीने भरतके बाद ९९ पुत्र और ब्राह्मी नामक पुत्रीको जन्म दिया ।
वज्रजंघ पर्याय जो अकम्पन नामका सेनापति था उसका जीव सुनन्दा गर्भमें प्रविष्ट हुआ । नव माह बाद उसने बाहुबली पुत्रको जन्म दिया । कुछ समय बाद सुन्दरी नामक पुत्रीको भी उत्पन्न किया । बाहुबलीकी सुन्दरताका वर्णन ।
इस प्रकार एक सौ एक पुत्र तथा दो पुत्रियोंके साथ भगवान्का काल सुखसे व्यतीत होने लगा ।
सप्तम स्तबक
एक दिन सभामें बैठे हुए भगवान्ने विचार किया कि जगत्का कल्याण करनेके लिए समीचीन विद्याओंका उपदेश देना चाहिए। जिस समय उनके मन में यह विचार चल रहा था उसी समय ब्राह्मी और सुन्दरी नामक पुत्रियाँ उनके पास आयीं । पुत्रियाँ पिताको नमस्कार करने लगीं । पिताने वेगसे उन्हें उठा कर तथा 'यह इनके विद्या ग्रहणका काल है' ऐसा विचारकर उन्हें वर्णमाला सिखाकर गणित आदिका
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३२-४९
५०-६५
१-१५
१६-२६
२७-३७
३८-४८
४९-५७
५८-६५
६६-७५
७६-७७
२०७-२१३
२१४ - २२१
२२२-२२७
२२७-२३१
२३१-२३६
२३६-२४१
२४१-२४५
२४५-२४६
२४६-२४९
२४९-२५०
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