Book Title: Prayaschitta Samucchaya
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 7
________________ संज्ञाधिकार। भावार्थ-पायश्चित देनेकी विधि भी अवश्य जानना चाहिए॥७॥ प्रागे पंचकल्याणके नाम गिनाते हैं:खस्थानं मासिकं मूलगुणो मूलममी इति । पंचकल्याणपर्याया गुरुमासोऽथ पंचमः॥८॥ अर्थ-स्वस्थान, मासिक, मूलगुण, मूल और पांचवां गुरुमास ये पांच पंचकल्याणके विशेष नाम हैं। भावार्थ-पंच आचाम्ल, पंच निर्विकृति, पंचगुरुमंडल, पंच एकस्थान और पंच उपवास इनके निरंतर अर्थाद व्यवधानरहित करनेको पंचकल्याण कहते हैं। कल्याणका लक्षण आगे कहेंगे। पांच कल्याण जहां पर हों वह पंचकल्याण है। जिसके ये ऊपर कहे गये पांच पर्याय नाम हैं ॥८॥ __आगे लघुपासका खरूप बताते हैं:नीरसेऽप्यथवाचाम्ले क्षमणे वा विशोधिते। ज्ञात्वा पुरुषसत्वादि लघुर्वा सान्तरो गुरुः ॥९॥ __ अर्थ-पुरुष, उसका सत्व-धैर्य, आदि शब्दसे बल, परिणाम आदि जानकर पूर्वोक्त पंचकल्याणमेंसे नीरस अर्थात निर्विकृति, अथवा भाचाम्ल या उपवासको कम कर देना लघुपास है। अथवा पूर्वोक्त पांचोंको निरंतर करना गुरुपास है उसी गुरु-मासको व्यवधानसहित करना लघुपास है।

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