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प्रतिक्रमण के गूढ़ रहस्यों का विविध पक्षीय अनुसंधान ...75 जरूरी है। इस योग साधना के अनेक ऐसे पक्ष हैं जिनका आस्वाद यदि एक बार साधक के द्वारा लिया जाए तो उसे अनेकशः रहस्यमयी अनुभूतियाँ स्वयमेव होने लगती है। किसी भी क्रिया के उद्देश्य आदि ज्ञात हो तो उसे करने का तरीका, नजरिया महत्वाकांक्षा बदल जाती है। प्रतिक्रमण के विविध पहलुओं का यह रहस्योद्घाटन साधकों के लिए एक अमृत निधि होगी। सन्दर्भ-सूची 1. जिनवाणी, पृ. 56 2. वही, पृ. 17-18 3. पडिसिद्धाणं करणे, किच्चाणमकरणे पडिक्कमणं । असद्दहणे य तहा, विवरीय परूवणाए य॥
आवश्यकनियुक्ति, 1271 4. जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन।
भा. 2, पृ. 401 5. पडिलेहेङ पमज्जिय, भत्तं पाणं वा वोसिरेऊणं।
वसही कय वरमेव उ, णियमेण पडिक्कमे साहू ॥ हत्थसया आगंतु गंतुं च, मुहत्तगं जहिं चिढ़े। पंथे वा वच्चंतो णादिसंतरणे पडिक्कमइ ॥
. आवश्यक हारिभद्रीय टीका, भा. 2, पृ. 50 6. सहसा अण्णाणेण य, भीएण व पिल्लिएण व परेण । वसणेणायंकेण व, मूढेण व रागदोसेहिं ।।
ओघनियुक्ति, 799 7. जं किंचि कयम कज्जं, न हु तं लब्भा पुणो समायरिउं। तस्स पडिक्कमियव्वं, न हु तं हियएण वोदव्वं ॥
वही, 800 8. दिवसा असंभ विणोवि...विभावेज्जा ।
आवश्यकचूर्णि, भा. 2, पृ. 75 9. जिनवाणी, पृ. 144 10. जिनवाणी, पृ. 142 11. आवश्यकनियुक्ति, 1215 की वृत्ति