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प्रतिक्रमण की मौलिक विधियाँ एवं तुलनात्मक समीक्षा ... 135
पंचम आवश्यक - तदनन्तर तिक्खुत्तो के पाठ से तीन बार वन्दन कर 'पाँचवें आवश्यक की आज्ञा है'- ऐसा कहें।
इस आवश्यक में ‘दिवस सम्बन्धी ज्ञान दर्शन चरित्ताचरितं तप अतिचार पायच्छित्त विशोधनार्थं करेमि काउस्सग्गं' ऐसा कहकर नमस्कार मंत्र, करेमि भंते एवं इच्छामिठामि का पाठ पढ़कर चार लोगस्स का कायोत्सर्ग करें। फिर ' णमो अरिहंताणं' बोलकर प्रकट में लोगस्ससूत्र कहें।
तत्पश्चात पूर्ववत मुद्रा करके 'इच्छामि खमासमणो' का पाठ दो बार उच्चारित करें। फिर 'सामायिक, चउवीसत्थव, वंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग पाँच आवश्यक समत्तं' - ऐसा कहें।
षष्ठम आवश्यक- तदनन्तर तिक्खुत्तो के पाठ से तीन बार वंदना कर 'छठे आवश्यक की आज्ञा है' - ऐसा कहें।
इस आवश्यक में खड़े होकर साधु-साध्वी की उपस्थिति हो तो शक्ति के अनुसार उनके मुखारविन्द से प्रत्याख्यान करें तथा उनकी अनुपस्थिति में 'समुच्चय पच्चक्खाण' के पाठ से प्रत्याख्यान करें।
फिर ‘सामायिक, चउवीसत्थव, वंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान छः आवश्यक समत्तं' - ऐसा कहें।
फिर अन्त में छः आवश्यक करते हुए जानते - अनजानते जो कोई दोष लगा हो तथा सूत्र पाठों का उच्चारण करते हुए अक्षर, पद, मात्रा, अनुस्वार आदि हीन या अधिक बोला हो, तो तस्स मिच्छामि दुक्कड़ |
मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, अशुभ योग और कषाय
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इन पाँचों का
प्रतिक्रमण नहीं किया हो, तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
अतीत काल का प्रतिक्रमण, वर्तमान काल का संवर और अनागत काल का प्रत्याख्यान - इन तीनों में किसी प्रकार का दोष लगा हो, तो तस्स मिच्छामि दुक्कड़ |
थई थुई मंगलं, हियाए सुहाए खमाए निसेसाए भविजिणं च- तस्स मिच्छामि दुक्कडं । फिर बद्धांजलि युक्त होकर एवं बायाँ घुटना ऊँचा करके दो बार नमुत्थुणंसूत्र बोलें। तत्पश्चात सीमंधर स्वामी, वर्तमान आचार्य एवं उपस्थित साधुसाध्वी को तिक्खुत्तो पाठ से विधियुत वंदन करें। फिर विद्यमान श्रावक-श्राविकाओं से क्षमायाचना करें। तदनन्तर चौवीसी स्तवन का उच्चारण करें।