________________
प्रतिक्रमण की मौलिक विधियाँ एवं तुलनात्मक समीक्षा ...141 उसके बाद तीन आवर्त और एक शिरोनति करके तीन बार नमस्कार मन्त्र का स्मरण कर ‘णमो जिणाणं णमो जिणाणं' ऐसा निषिद्ध दण्डक पढ़ें।
फिर रात्रि या दिवससम्बन्धी दोष आलोचना का पाठ पढ़ें। इसी के साथ सार्वकालिक दोषों की आलोचना का दण्डक भी पढ़ें।
पंचम आवश्यक- तदनन्तर वीरभक्ति के नामोच्चारण पूर्वक कायोत्सर्ग की आलोचना का पाठ पढ़ें तथा 'छेदोवट्ठावणं होउ मज्झं- इस पाठ के द्वारा संकल्प करें।
फिर भूमिस्पर्श करते हुए नमस्कार करें। पश्चात तीन आवर्त और एक शिरोनति करके पूर्ववत सामायिक दण्डक पढ़ें। पुनः तीन आवर्त और एक शिरोनति करके रात्रिक प्रतिक्रमण में 54 उच्छ्वास पूर्वक दो कायोत्सर्ग और दैवसिक प्रतिक्रमण में 108 उच्छ्वास पूर्वक चार लोगस्स का कायोत्सर्ग करें।
तत्पश्चात भूमि स्पर्श पूर्वक नमस्कार करते हुए पुन: तीन आवर्त और एक शिरोनति करके चतुर्विंशतिस्तव पढ़ें।
षष्ठम आवश्यक- तत्पश्चात पुन: तीन आवर्त और एक शिरोनति कर वीरभक्ति पढ़ें। फिर 'छेओवट्ठावणं होउ मज्झं- इस पाठ द्वारा प्रतिज्ञा करें। फिर भूमिस्पर्श पूर्वक नमस्कार करते हुए तीन आवर्त और एक शिरोनति करके पूर्ववत सामायिक दण्डक पढ़ें।
पश्चात तीन आवर्त और एक शिरोनति करके 27 उच्छ्वास का एक कायोत्सर्ग करें। फिर भूमिस्पर्श पूर्वक नमस्कार करके पुनः तीन आवर्त और एक शिरोनति कर पूर्ववत चतुर्विंशतिस्तव पढ़ें। फिर पुनः तीन आवर्त और एक शिरोनति करके 'चतुर्विंशति तीर्थंकर भक्ति' पढ़ें।
तदनन्तर अनुक्रमश: अञ्चलिका, छेओवठ्ठावणं होउ मज्झं (प्रतिज्ञा सूत्र), अथेष्ट प्रार्थना एवं आलोचना पाठ पढ़कर प्रतिक्रमण समाप्त करें।55 दिगम्बर परम्परा मान्य पाक्षिकादि प्रतिक्रमण विधि __हुम्बुजश्रमणभक्तिसंग्रह के अनुसार पाक्षिक, चातुर्मासिक एवं सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करने वाले साधक सर्वप्रथम लघुसिद्ध भक्ति, श्रुतभक्ति एवं आचार्य भक्ति द्वारा वर्तमान आचार्य को वन्दन करें। तत्पश्चात ‘समता सर्व भूतेषु' इत्यादि पाठ बोलें तथा तीन आवर्त, एक शिरोनति करके 27 उच्छ्वास पूर्वक कायोत्सर्ग करें। अनन्तर नमस्कार करके पुन: तीन आवर्त और एक शिरोनति करके चतुर्विंशतिस्तव पढ़ें।