Book Title: Pratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 278
________________ 216... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना समाधान- सामायिक का काल 48 मिनट का है अत: उक्त छूटों के बिना भी हो सकता है। यदि अल्पकाल के लिए भी आगार रखे जायें तो फिर सामायिक में रत्नत्रय आदि की कोई आराधना ही नहीं हो पायेगी। जबकि पौषधव्रत अहोरात्रि या न्यूनतम चार प्रहर का होता है अत: आगार रखना जरूरी है। शंका- 'इच्छामि ठामि काउस्सग्गं' के पाठ में योगों का क्रम काइओ, वाइओ, माणसिओ इस प्रकार से क्यों रखा गया है? समाधान- जिस पाठ में मन की प्रधानता हो अर्थात चिंतन-मनन-निंदाआलोचना की हो वहाँ प्रथम स्थान मनोयोग को दिया जाता है। जैसे बारह व्रतों में लगे दोषों की आलोचना के समय मणसा-वयसा-कायसा बोला जाता है, जबकि लोगस्स के पाठ में कित्तिय-वंदिय-महिया कहा गया है, यहाँ वचन योग को प्रधानता दी गई है। 'इच्छामिठामि' पाठ कायोत्सर्ग की साधना के पूर्व बोला जाता है और कायोत्सर्ग में कायिक व्यापार के उत्सर्ग की प्रधानता रहती है अत: यहाँ काइयो-वाइओ-माणसिओ कहा गया। इसी प्रकार 'तस्सउत्तरी का पाठ भी कायोत्सर्ग से पूर्व बोला जाता है अतः वहाँ भी ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं पाठ है। शंका- 'इच्छामि ठामि' के पाठ में कभी 'इच्छामि ठामि काउस्सग्गं' तो कभी 'इच्छामि ठामि आलोउं' तो कभी 'इच्छामि ठामि पडिक्कमिउं' बोला जाता है, यह अंतर क्यों? समाधान- जहाँ कायोत्सर्ग की प्रधानता हो वहाँ ‘इच्छामिठामि काउस्सगं' इसी तरह जहाँ अतिचारों के आलोचना की प्रधानता हो वहाँ ‘इच्छामि आलोउं' और जहाँ प्रतिक्रमण का प्राधान्य हो वहाँ 'इच्छामि पडिक्कमिउं' बोला जाता है। शंका- परवर्ती परम्परानुसार कायोत्सर्ग में नवकारमन्त्र या लोगस्ससूत्र का ध्यान (स्मरण) क्यों किया जाता है? समाधान- आगम सम्मति से कायोत्सर्ग करते समय अमुक-अमुक संख्या में श्वासोश्वास का ही अवलोकन करना चाहिए। कालक्रम के प्रभाव से जब श्वासोश्वास पर मन को केन्द्रित करना मुश्किल होने लगा तब उतने उच्छवासों की परिपूर्ति हेतु लोगस्ससूत्र एवं नवकारमन्त्र को स्थान दिया गया, क्योंकि लोगस्स का प्रत्येक पद एक श्वासोश्वास परिमाण जितना है। सुस्पष्ट है कि एक उच्छवास में जितना समय पूर्ण होता है उतना ही काल एक पद का स्मरण करने में लगता है। यदि 25 श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करना हो तो

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