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226... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
___ बार बोलते समय 'आवस्सिआए' नहीं कहना, इसलिए एक आवश्यक। 23-25. वांदणा देते हुए मन-वचन-काया को स्थिर रखना- ये तीन आवश्यक।
इस प्रकार पच्चीस आवश्यक होते हैं। द्वादशावर्त वन्दन करते समय इनका ध्यान रखना चाहिए। ईरियावहि सूत्र द्वारा 1824120 विकल्पों से मिच्छामि दुक्कडं कैसे? .
इरियावहि प्रतिक्रमण के द्वारा अठारह लाख, चौबीस हजार, एक सौ बीस विकल्पों से मिच्छामि दुक्कडं दिया जाता है। उसकी गणना इस प्रकार है
जीव के 563 भेदों को 'अभिहया से जीवियाओ ववरोविआ' तक दस पदों से गुणा करने पर 5630 भेद होते हैं। इनको राग और द्वेष दो से गुणा करने पर 11260 भेद होते हैं। इनको मन-वचन-काया से गुणा करने पर 33780 भेद होते हैं। इनका कृत, कारित और अनुमोदित से गुणा करने पर 101340 भेद होते हैं। इनको अतीत, अनागत और वर्तमान काल से गुणा करने पर 304020 भेद होते हैं। इनको अरिहंत, सिद्ध, साधु, देव, गुरु और आत्मा की साक्षी- इन छह से गुणा करने पर 1824120 भांगे होते हैं। इस प्रकार सब जीवों के साथ सर्व प्रकार से मिच्छामि दुक्कडं देने पर सच्ची क्षमायाचना होती है। ___विचार सत्तरी प्रकरण की टीका में उपर्युक्त भांगों में जानते-अजानते इन दो पदों द्वारा गुणा करके 3648240 भांगे कहे गये हैं।
चौरासी लाख योनियों की गिनती- जीव के उत्पन्न होने का स्थान योनि कहलाता है। सब जीवों के मिलाकर चौरासी लाख उत्पत्ति स्थान हैं यद्यपि स्थान तो अनगिनत हैं परन्तु वर्ण-गंध-रस-स्पर्श द्वारा जितने स्थान समान हों वे सब मिलकर एक ही स्थान कहलाते हैं। इनकी गिनती इस प्रकार है__पृथ्वीकाय के मूल भेद 350 हैं। इनको पाँच वर्षों से गुणा करने पर 1750 भेद होते हैं। इन्हें दो गंध से गुणा करने पर 3500 भेद होते हैं। इन भेदों का पाँच रस से गुणा करने पर 17500 भेद होते हैं। इन भेदों का आठ स्पर्श से गुणा करने पर 140000 भेद होते हैं। इसी तरह पाँच संस्थान से गुणा करने पर पृथ्वीकाय के 700000 (सात लाख) भेद होते हैं।
इसी प्रकार अप्काय के सात लाख, तेउकाय के सात लाख, वाउकाय के सात लाख, प्रत्येक वनस्पति के दस लाख, साधारण वनस्पति के चौदह लाख, बेइन्द्रिय-तेइन्द्रिय-चउरिन्द्रिय के दो-दो लाख, देवता-नारकी-तिर्यंच के चार