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232... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
दैवसिक प्रतिक्रमण में अरिहंत परमात्मा एवं सम्यग्दृष्टि देवों की स्तुति करते समय छींक टालने की परम्परा है इसीलिए लघुशांति, बड़ी शांति, शान्ति कलश आदि में छींक का निषेध है । देववंदन में भी इसी कारण छींक टालने का रिवाज है।
इन सब नियमों में सम्प्रदायगत सामाचारी और आचरण ही प्रमाण है। बिल्ली दोष निवारण विधि
जैन धर्म में शकुन शास्त्र की अपेक्षा लोक व्यवहार को भी स्थान दिया गया है। तदनुसार विशिष्ट धर्म क्रियाओं में बिल्ली की आड़ होना, उसका आगे से होकर निकलना या बार-बार इधर से उधर घूमना अपशकुनकारी माना जाता है। लौकिक जगत में इस सम्बन्धी अपशकुन की कई घटनाएँ सुनने मिलती है।
यहाँ प्रश्न होता है कि प्रतिक्रमण करते समय मुख्य रूप से बिल्ली की आड़ को ही दोष रूप में क्यों स्वीकारा गया है क्योंकि अन्य कई पशु-पक्षी भी अपशकुन रूप हैं? इसका तर्क संगत जवाब यह है कि अपशकुन रूप दूसरे पशु-पक्षी प्रायः आवाज करते हुए आते हैं अतः उनका निवारण आने से पूर्व भी कर सकते हैं लेकिन बिल्ली चुपचाप आती है।
इसलिए दैवसिक आदि पाँचों प्रतिक्रमण करते हुए स्थापनाचार्यजी और प्रतिक्रमण कर्त्ता के बीच में से बिल्ली निकल जाये तो किसी अनिष्ट या उपद्रव आदि की सम्भावना बन सकती है। उसका निवारण करने के लिए पूर्व परम्परागत सामाचारी के अनुसार छींक दोष निवारण विधि के समान क्रमशः एक नवकार, दो नवकार और तीन नवकार ऐसे तीन कायोत्सर्ग करें। तीसरा कायोत्सर्ग पूर्णकर तीन नवकार मन्त्र उच्चारण पूर्वक बोलें। उसके पश्चात निम्नलिखित गाथा को भी तीन बार बोलें और भूमि को बायें (डाबा) पग से तीन बार दबायेंजा सा काली कब्बडी, अक्खहि कक्कडी यारी । मंडल माहे संचरी, हय पडिहय मज्जारी ।। उक्त विधि करने से बिल्ली दोष समाप्त हो जाता है।
विधिमार्गप्रपा (पृ. 24) के अनुसार बिल्ली दोष का परिहार करने के लिए उपर्युक्त गाथा के चौथे पद को तीन बार बोलकर 'खुद्दोपद्दव ओहडावणियं' निमित्त चार लोगस्स का कायोत्सर्ग करना चाहिए । फिर अन्त में 'श्री शान्तिनाथ भगवान को नमस्कार हो' ऐसी घोषणा करनी चाहिए।