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228... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
झुकाना चाहिए। बोलने और सुनने वाले दोनों का इस विषय पर ध्यान जाए इसलिए पूर्व का शब्द बोलकर थोड़ा रुकते हुए वंदे आदि शब्द भार पूर्वक बोलने चाहिए।
• ' जंकिंचि नाम तित्थं' इसमें नाम और तित्थं अलग-अलग बोलने चाहिए। यहाँ नाम का अर्थ है- वास्तव में।
• नमुत्यु और णं अलग-अलग बोलने चाहिए तथा उस समय जोड़े हुए दोनों हाथों को जमीन पर स्पर्श करके शीश झुकाना चाहिए।
• धम्मसार - हीणं ऐसे नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि इसका अर्थ होता है - भगवान धर्म के सार से रहित है। धम्म - सारहीणं (धम्म - सारही - णं) ऐसे बोलने से इसका अर्थ 'भगवान धर्म के सारथी हैं' ऐसा होता है।
• इसी तरह पणासियासे सकुवाई न बोलकर पणासियासेस कुवाई बोलना चाहिए। कुंदिंदुगोक्खी रतुसारवन्ना न बोलकर कुंदिंदुगोक्खीरतुसारवन्ना बोलना चाहिए। इसी प्रकार पुक्खरवरदी वड्डे न बोलकर पुक्खरवर दीवड्ढे बोलना चाहिए।
• सारंवीरा... गमजलनिधिं न बोलकर राग में गाते हुए भी सारं... वीरागमजलनिधिं बोलना चाहिए।
• वंदित्तु सूत्र में जेण न निद्धंधसं बोलना चाहिए, जेणूंन साथ में नहीं बोलना चाहिए।
अड्डाइज्जेसु पाठ में दिवस मुद्देसु न बोलकर, दीव समुद्देसु बोलना चाहिए, क्योंकि यहाँ पर दिन सम्बन्धी बात न होकर द्वीप समुद्रों की बात है। • इसी तरह अजितशांति में दीव समुद्द... मंदर... बोलना चाहिए। दीवस... मुद्द... मंदर नहीं ।
• जावंति चेइआई की तरह जावंति केवि साहु नहीं बोल सकते, क्योंकि इसलिए जावंत केवि साहुं... बोलना। इसमें जावंत पुल्लिंग शब्द है ।
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• वांदणा सूत्र में मेमि उग्गहं... न बोलकर मे... मिउग्गहं बोलना चाहिए। तथा बहुसु... भेणभे न बोलकर बहुसुभेण... भे बोला जाता है। इसमें बहुसुभेण बहुत अच्छी तरह से, भे- आपका, दिवसो वइक्कंतो - दिन व्यतीत हुआ ? ऐसा अर्थबोध होता है जबकि आपका दिन बहुत अच्छी तरह से पसार हुआ ? ऐसा प्रश्न पूछा जाना चाहिए । इसलिए दिवसो वइक्कंतो? इन शब्दों को
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