Book Title: Pratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 291
________________ प्रतिक्रमण क्रिया में अपेक्षित सावधानियाँ एवं आपवादिक विधियाँ ...229 प्रश्नात्मक टोन में बोलना चाहिए। इसी तरह ज...त्ता...भे? ज...व...णिज्...जं...च... भे? ये दोनों भी प्रश्न होने के कारण प्रश्नात्मक रूप में ही बोले जाने चाहिए। • वंदित्तु सूत्र में विरओमि विराहणाए है विरीओमि... नहीं..... • कल्लाणकंदं सूत्र प्राकृत भाषा में है। इसमें कल्याणकंदं और सिरि वर्धमानं न बोलकर कल्लाण कंदं और सिरि वद्धमाणं बोलना चाहिए। इसकी दुसरी गाथा में अपार शब्द है, अप्पार संयुक्ताक्षर नहीं है। इसलिए अ भारपूर्वक न बोलकर धीरे से उच्चार करना चाहिए। • जगचिन्तामणि सूत्र में संपइ जिणवर वीस यह बोलकर थोड़ा रूककर मुणि बिहुँ कोडिहिं... बोलना चाहिए, वरना वीस मुणि इन दोनों शब्दों को एक साथ बोलने पर 20 साधुओं ऐसा अर्थ समझा जा सकता है। • सकलतीर्थ स्तोत्र में लांबा सो योजन...विस्तार पचास...ऊँचा बहोतेर धार... इस तरह बोलने से इसका सही अर्थ समझ में आता है। नहीं तो लांबा सो योजन विस्तार... पचास ऊँचा बहोतेर धार बोलने पर- 'ये मन्दिर 50 योजन ऊँचे हैं इस प्रकार अर्थ प्रतीति होने की सम्भावना रहती है, जो गलत है। • श्री सीमंधर स्वामी के दोहे में विषय-कषाय ना गंजिया ऐसा बोलने का कोई अर्थ नहीं होता है। इसलिए विषय कषायनागंजीया ऐसे बोलना चाहिए। इससे नाग-हाथी अर्थात विषय कषायरूपी हाथी को जीतने वाले पंचानन सिंह जैसे मुनि... यह अर्थ बनता है। • लघुशान्ति में कुरु कुरु शान्तिं च कुरु कुरु सदेति ऐसे बोलना चाहिए। सदेति के स्थान पर सदेतिं नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि उसका अर्थ सदा इतिं - सदा उपद्रव करो ऐसा होता है, जो अयोग्य है। • बड़ी शान्ति में स्त्रिलोकमहिता स्त्रिलोकपूज्या... आदि नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि इसका अर्थ होता है कि भगवान स्त्रीलोक में पूज्य है आदि... इस तरह अर्थ का अनर्थ न हो इसलिए स् को पूर्व शब्द के साथ बोलना चाहिए। सर्वदर्शिनस् त्रिलोकनाथास् त्रिलोक महितास् बोलना चाहिए। • शांति की उद्घोषणा के समय श्री श्रमणसंघस्य शांतिरभवतु में र साथ में बोलने से 'शांति न हो' ऐसा अनर्थ प्रतीत होता है। इसलिए योग्य तरीके से इसे बोलते समय ति पर भार देकर र् को इसके साथ जोड़कर बोलना

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