Book Title: Pratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

Previous | Next

Page 260
________________ 198... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना समक्ष प्रकट कर उन दोषों से मुक्त होने के लिए प्रायश्चित्त स्वीकार करना, भव आलोचना कहलाता है। भव-आलोचना नहीं करने से कृतपाप यथावत रह जाते हैं, फिर भवान्तर में फल भोगने के पश्चात ही उनका नाश संभव है। यदि मानहानि, अभिमान या भय वश कृत पापों को गुरु के सम्मुख उजागर न करके उन्हें हृदय में छुपाते हुए उसके निवारणार्थ बड़ी तपस्या भी कर ले तो कोई फायदा नहीं होता। अभिप्राय यह है कि दुष्कृत्य उतने बुरे नहीं होते जितना मान कषाय हानिकारक है। मानकषाय की ओट में पलने वाले छोटे-छोटे दोष भी अनन्त अनुबन्ध वाले हो जाते हैं। जब अनुबन्ध जन्य कर्म उदय में आते हैं उस स्थिति में पाप कर्म का वेदन हो और समत्व न रखें अथवा पुण्य कर्म का उदय काल हो और तटस्थ न रहें तो एक सतत परम्परा चलती रहती है जो अनंत संसार परिभ्रमण के रूप में फलित होती है। प्रश्न हो सकता है कि गुरु समक्ष अनालोचित दुष्कृत्य अनन्त अनुबंध का कारण कैसे बनते हैं? इसका स्पष्टीकरण यह है कि जो दुष्कृत्य बुरे नहीं लगते और जिन पापों से ग्लानि नहीं होती वे स्वभावत: प्रगाढ़ बंधन के रूप में परिणमित हो जाते हैं तथा उनके संस्कार भी यथावत रूप से दृढ़ हो जाते हैं। किन्तु जहाँ दोषों के प्रति हेय बुद्धि और पश्चात्ताप वृत्ति हो तो प्रगाढ़ बन्धन भी शिथिल और क्षीण हो जाते हैं। तत्फलस्वरूप वे कर्म भवान्तर में भी दुर्भाव या दुर्बुद्धि के उत्पन्न होने में निमित्त भूत नहीं बनते। प्रायश्चित्त करने से पूर्वकृत का नाश और नूतन का बंध नहीं होता। प्रतिक्रमण, प्रायश्चित्त का ही दूसरा रूप है। इस क्रिया से राग आदि कषायों से बंधी हुई कर्मगांठ ढीली होती है। इसी तरह भव आलोचना करने से पाप अनुबन्ध की परम्परा समाप्त हो जाती है। अतएव प्रत्येक आत्मार्थी के लिए भव आलोचना करने योग्य है। __ शंका- यदि सूत्र पाप स्मरण में सहायक बनते हैं तब तो सूत्रों से प्रायश्चित्त हो सकता है फिर प्रतिक्रमण क्रिया का क्या लाभ? समाधान- यहाँ यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि मात्र वाचिक क्रिया या रटन क्रिया से पाप नाश नहीं होता, प्रत्युत जो बोला जा रहा है तदनुसार मानसिक चिंतन एवं भाव धारा बनने से कोई भी कार्य सम्पन्न होता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312