Book Title: Pratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 273
________________ प्रतिक्रमण विधियों के प्रयोजन एवं शंका-समाधान ...211 अधिक शिष्य होने पर या गुरु के शासन कार्यों में व्यस्त होने पर प्रत्येक छोटीबड़ी क्रिया के लिए बार-बार गुरु से आज्ञा लेना सम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में स्थापनाचार्य के समक्ष प्रत्येक क्रिया करने से शिष्यों में स्वच्छंदता की वृद्धि नहीं होती। साथ ही गुरु साक्षी में क्रिया करने से वह स्थिरता, अप्रमत्तता और विधि पूर्वक होती है। इसलिए प्रत्येक क्रिया गुरु के अभाव में स्थापनाचार्य के सम्मुख ही करनी चाहिए। शंका- स्थापनाचार्य की स्थापना किस सत्र से और क्यों की जाती है? स्थापना के अभाव में किसी अन्य वस्तु की स्थापना हो सकती है क्या? । समाधान- स्थापनाचार्य की स्थापना खरतर परम्परानुसार तीन नवकार एवं आचार्य के तेरह बोल पूर्वक तथा तपागच्छ आदि परम्परानुसार एक नवकार एवं पंचिंदिय सूत्र के द्वारा की जाती है। नवकार मन्त्र महामंगल रूप है तथा इसमें पंच परमेष्ठी को वंदन किया गया है। अत: इस मन्त्र के स्मरण द्वारा पंच परमेष्ठी की स्थापना होती है और यह स्थापना देववन्दन आदि में उपयोगी है। तेरह बोल एवं पंचिंदिय सूत्र में आचार्य के छत्तीस गुणों का वर्णन है। इनके द्वारा गुरु की स्थापना की जाती है और यह स्थापना कायोत्सर्ग, गुर्वानुमति, प्रतिक्रमण आदि कार्यों में उपयोगी है। स्थापनाचार्य के अभाव में पुस्तक, माला आदि अन्य ज्ञान-ध्यान के उपकरणों की स्थापना की जा सकती है। गृहस्थ स्थापनाचार्य को स्थापित करने के लिए दाहिनी हथेली को स्थापनाजी के सन्मुख रखें। इस मुद्रा से स्थापनाचार्य में आचार्य के 36 गुणों का आह्वान किया जाता है क्योंकि आह्वान मुद्रा की आकृति वैसी ही होती है। स्थापनाचार्य के सन्मुख हाथ करते हुए नवकार मंत्र और पंचिंदिय सूत्र बोलते हैं। शंका- इरियावहि सूत्र से पापों की आलोचना हो जाती है तब तस्सउत्तरी सूत्र एवं अनत्थ सूत्र बोलने का प्रयोजन क्या? समाधान- ईर्यापथ प्रतिक्रमण करने के उपरान्त भी शेष बचे हए पाप तस्सउत्तरी सूत्र का चिंतन करने से दूर हो जाते हैं। पाप मुक्त होने से साधक द्वारा की गई संवर क्रियाएँ विशेष फलीभूत होती है। उसके बाद शेष पापों का नाश करने के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है। जैसे क्षेत्र रक्षण के लिए वाड़ बनाई जाती है वैसे ही कायोत्सर्ग के रक्षणार्थ वाड़ रूप आगार (छूट) की आवश्यकता है उस हेतु अन्नत्थसूत्र पढ़ते हैं।

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