Book Title: Pratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 264
________________ 202... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना जाता है। 'वंदित्त सूत्र' के द्वारा किन व्रतों में कौन से अतिचार लगते हैं? उन सभी दुष्कृत्यों का मिच्छामि दुक्कडं दिया जाता है। इसी प्रकार प्रत्येक क्रिया के अपने-अपने हेतु हैं, जो कि प्रतिक्रमण किए बिना पूर्ण रूप से साधे नहीं जा सकते। अत: कई तथ्यों से प्रतिक्रमण आदि क्रियाओं की उपयोगिता स्वयमेव समझ आ जाती है। शंका- प्रतिक्रमण सामायिक पूर्वक होता है, सामायिक का काल 48 मिनट है, किसी व्यक्ति को इतना समय न मिले, तो प्रतिक्रमण को संक्षिप्त करके अल्प समय में नहीं किया जा सकता? समाधान- आवश्यकसूत्र में प्रतिक्रमण को आवश्यक कहा गया है। आवश्यक छह बताए गए हैं, जिन्हें विधिवत सम्पन्न करने से ही पूर्ण लाभ प्राप्त किया जा सकता है, जैसे बड़े रोगों और असाध्य रोगों के लिए दीर्घकाल का उपचार बताया जाता है, उसे संक्षिप्त नहीं किया जा सकता। उसी प्रकार भव रोगों के निवारण हेतु निश्चित समय का प्रतिक्रमण करना भी आवश्यक है। शंका- हमारा प्रतिक्रमण प्राय: द्रव्य प्रतिक्रमण ही होता है जबकि भाव प्रतिक्रमण ही कर लेना पर्याप्त है, द्रव्य प्रतिक्रमण करने की क्या आवश्यकता है? समाधान- वास्तविकता यह है कि द्रव्य प्रतिक्रमण, भाव प्रतिक्रमण के लिए प्रेरक बनता है और भाव प्रतिक्रमण द्रव्य प्रतिक्रमण के लिए प्रेरक बनता है। दूसरे, छः आवश्यक की क्रियाओं एवं तत्सम्बन्धी सूत्र पाठों को पढ़ने-सुनने से भाव प्रतिक्रमण की प्रेरणा मिलती है अत: द्रव्य 'भाव' में सहायक है। द्रव्य प्रतिक्रमण से भाव-प्रतिक्रमण पुष्ट होता है। अतः द्रव्य एवं भाव प्रतिक्रमण दोनों की सम्यक् आराधना आवश्यक है। शंका- भगवान ऋषभदेव एवं भगवान महावीर के शासन के साधुसाध्वियों के लिए दोनों समय प्रतिक्रमण करना अनिवार्य माना गया है। जबकि मध्य के 22 तीर्थंकरों के साधु-साध्वियों के लिए दैनिक प्रतिक्रमण का विधान नहीं है, वे दोष लगने पर ही प्रतिक्रमण करते हैं, ऐसा क्यों? ___ समाधान- दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ से लेकर तीईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ तक के साधु-साध्वी सरल और बुद्धिमान होते हैं, जबकि प्रथम तीर्थंकर एवं

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