Book Title: Pratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 268
________________ 206... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना कुछ लोगों का कहना है कि जिन्होंने गृहस्थ जीवन का त्याग कर दिया और सदैव आत्म साधना में मग्न रहते हैं ऐसे साधु-साध्वियों के लिए दोनों समय प्रतिक्रमण करना जरूरी है क्योंकि धर्मसाधना के मुख्य अधिकारी वे ही कहे जाते हैं और उनके पास पर्याप्त समय भी है। गृहस्थ के लिए प्रतिक्रमण करना मुश्किल है क्योंकि महिलाओं का अधिकतम समय घर-गृहस्थी के कार्यों एवं पुरुषों का समय व्यापार आदि में बीत जाता है तब प्रतिक्रमण कब करें? प्रतिक्रमण पाप शुद्धि की श्रेष्ठ क्रिया है। इस सम्बन्ध में सोचना होगा कि अधिक पाप कौन करता है? अधिक दोष किसे लगते हैं? सामान्यतया पाप आदि की क्रियाएँ गृहस्थ जीवन में अधिक होती है इसलिए गृहस्थ को तो प्रतिक्रमण करना ही चाहिए। दूसरा, छह आवश्यक नित्य कर्म रूप होने से गृहस्थ एवं श्रमण दोनों के लिए निश्चित रूप से करणीय है। शंका- प्रतिक्रमण को आवश्यक कर्म क्यों कहा गया है? समाधान- जिस प्रकार शरीर निर्वाह हेतु आहार आदि क्रिया प्रतिदिन करना आवश्यक है, उसी प्रकार आध्यात्मिक क्षेत्र में आत्मा को सबल बनाने के लिए प्रतिक्रमण करना आवश्यक है इसीलिए प्रतिक्रमण को आवश्यक कर्म कहा है। शंका- छह आवश्यक के सूत्र पाठों का प्रतिपादन करने वाले आवश्यकसूत्र को उत्कालिक सूत्र क्यों कहा गया है? समाधान- यह सूत्र अकाल (उत्काल) में अर्थात दिन और रात्रि के संधिकाल में भी बोले जा सकते हैं, इनके लिए निश्चित समय का विधान नहीं है यानी दिन और रात्रि में ये सूत्र किसी भी समय पढ़े जा सकते हैं इसलिए इन सूत्रों का प्रतिपादन करने वाले आवश्यकसूत्र को उत्कालिकसूत्र की कोटि में रखा गया है। · शंका- अतिचार और अनाचार में क्या अन्तर है? समाधान- व्रत या नियम का एकांश खण्डित होना अतिचार कहलाता है तथा व्रत का सर्वथा खण्डित हो जाना अनाचार कहलाता है। प्रतिक्रमण अतिचार का होता है, अनाचार का नहीं। शंका- श्वेताम्बर परम्परा में श्रमण प्रतिक्रमण और श्रावक प्रतिक्रमण में मूलभूत अन्तर क्या है?

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