Book Title: Pratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 249
________________ प्रतिक्रमण विधियों के प्रयोजन एवं शंका-समाधान ...187 जाती है। उसके बाद व्रत अतिचारों की शुद्धि हेतु साधु-साध्वी ‘पगामसिज्झाय' का पाठ एवं गृहस्थ 'वंदित्तु सूत्र' पढ़ते हैं। पक्ष सम्बन्धी अतिचारों की विशेष शुद्धि कैसे की जाती है? मूलगुण-उत्तरगुण में लगे अतिचारों की विशेष शुद्धि करने के लिए बारह लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग किया जाता है। यह कायोत्सर्ग पाक्षिक आलोचना के अन्तर्गत माना गया है। इस कायोत्सर्ग के द्वारा पक्ष कृत सर्व अतिचारों का दोष समाप्त हो जाता है। समाप्ति क्षमायाचना किसलिए? ___कायोत्सर्ग के अनन्तर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना कर द्वादशावर्त वन्दन पूर्वक 'समत्त खामणा' की विधि की जाती है। इसमें चार क्षमापना सूत्रों द्वारा गुरु से क्षमा मांगते हैं। जैसे किसी विशिष्ट कार्य के पूर्ण होने पर सत्ताधारी विशिष्ट अधिकारियों का बहुमान करने एवं उन्हें प्रसन्न रखने के लिए आपका इतना समय अच्छे से व्यतीत हुआ और शेष समय भी इसी प्रकार प्रवर्त्तमान रहे, ऐसी मंगल कामना व्यक्त करते हैं उसी प्रकार एक पक्ष की आराधना अच्छी तरह सम्पन्न हुई तद्हेतु गुरु का विनय करने के लिए आपका अमुक (विगत) पक्ष आराधना पूर्वक सम्पन्न हुआ और आगे भी ऐसा ही प्रवर्तित रहे, इस तरह की कामना प्रथम क्षमापना सूत्र बोलते समय व्यक्त की जाती है। दूसरा क्षमापना सूत्र बोलते हुए- विगत पक्ष के दरम्यान स्वयं के द्वारा चैत्यों और साधुओं की वन्दना का निवेदन किया जाता है। तीसरा क्षमापना सूत्र बोलते हुए- गुरु के द्वारा दिया गया श्रुतज्ञान एवं वस्त्र आदि के उपकार का स्मरण कर उन्हें स्वीकारने में किये गए अविनय आदि आशातनाओं का मिच्छामि दक्कडं दिया जाता है। चौथा क्षमापना सूत्र कहते हुए- शिष्य द्वारा अविनय करने पर भी गुरु ने हित शिक्षा दी है इस उपकार की कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। इन चारों क्षमापना सूत्रों के अंत में गुरु भगवन्त क्रमशः तुब्भेहिं समं, अहमवि वंदावेमि चेइआई, आयरिअ संतिअं और नित्थारपारगाहोह वचन कहते हैं। इन वचनों के अंत में शिष्य ‘इच्छं' कहते हैं तथा चारों सूत्रों के अन्त में ‘इच्छामो अणुसटुिं' कहा जाता है।

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