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128... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
आवश्यक में एक खमासमण देकर कहते हैं- 'इच्छा. संदि. भगवन्! गुरु पर्व भणी पाखी सविशेष बृहद् अतिचार आलोउं?' गुरु कहे- 'आलोएह।' शिष्य 'इच्छं' कह कर नवकार मन्त्र पूर्वक बृहद् अतिचार पढ़ते हैं। उसके बाद एक खमासमण पूर्वक चैत्यवंदन मुद्रा में 'जय-जय महाप्रभु' का चैत्यवंदन बोलते हैं। फिर 'इच्छा. संदि. भगवन्! अष्टोत्तरी तीर्थमाला भणुंजी' इच्छं कह 111 गाथा युक्त 'अष्टोत्तरी तीर्थमाला' का स्तवन कहते हैं।
तदनन्तर खड़े होकर उवसग्गहरं और जं किंचि, फिर योग मुद्रा में नमुत्थुणं सूत्र, फिर खड़े होकर गुर्वानुमति पूर्वक पाक्षिक प्रतिक्रमण सम्बन्धी बारह लोगस्स का कायोत्सर्ग करते हैं तथा पूर्णकर प्रकट में लोगस्स बोलते हैं।
तत्पश्चात पाँचवें आवश्यक में चार और पाँच लोगस्स का कायोत्सर्ग करते हैं तथा गुरु के आदेश पूर्वक नीचे बैठकर नवकारमन्त्र का स्मरण करते हुए नवस्मरण पाठ बोलते हैं। उसके पश्चात छठे आवश्यक का पालन करते हुए गुरु को द्वादशावर्त वन्दन कर प्रत्याख्यान ग्रहण करते हैं।
तदनन्तर एक खमासमण के द्वारा पाक्षिक क्षमायाचना हेतु अनुमति प्राप्त कर पुन: दो बार द्वादशावर्त वन्दन करते हैं। फिर गुरु से अब्भुट्ठिओसूत्र पूर्वक क्षमायाचना कर सकल संघ से भी क्षमापना करते हैं। ___ उसके बाद सामायिक पूर्णकर इनमें प्रचलित पक्खी खामणा के पाठ से अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, श्रावक-श्राविका आदि से क्षमायाचना करते हैं।45
उपरोक्त विधि का अनुशीलन करने से ज्ञात होता है कि अचलगच्छ परम्परा में श्रुतदेवता-क्षेत्रदेवता-भवनदेवता की आराधना निमित्त कायोत्सर्ग नहीं होता है। साध्वी अनन्त किरणा श्रीजी के बताए अनुसार साधु-साध्वी श्रुत एवं क्षेत्र दोनों देवताओं का कायोत्सर्ग करते हैं। अजितशांति और बड़ी शांति स्तवन की जगह न बोलकर पाँचवें आवश्यक में नवस्मरण के अन्तर्गत बोलते हैं। इस परम्परा में नमोस्तु वर्धमानाय., संसारदावा., विशाललोचनदलं. आदि स्तुतियाँ नहीं बोली जाती है।
___पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण पूनम या अमावस को तथा सांवत्सरिक प्रतिक्रमण पंचमी के दिन करते हैं। वर्तमान में मुहपत्ति रखते हैं लेकिन सामाचारी में इसका प्रावधान नहीं है।