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प्रतिक्रमण सूत्रों का प्रयोग कब और कैसे? ...91 जयवीयराय सूत्र- इस सूत्र के द्वारा अरिहंत परमात्मा से भवनिर्वेद, इष्ट फल सिद्धि, लोक विरुद्ध कार्यों का त्याग, सद्गुरुओं की सेवा और परोपकार करने की प्रार्थना की जाती है। षड़ावश्यक बालावबोध के अनुसार इसकी प्रथम दो गाथाएँ गणधर कृत तथा शेष गाथाएँ पूर्वाचार्य रचित हैं।
अरिहंत चेइयाणं सूत्र- इस सूत्र के द्वारा तीन लोक के चैत्यों का वंदनपूजन-सत्कार आदि करने के लिए बढ़ती हुई श्रद्धा आदि से कायोत्सर्ग करने का संकल्प किया जाता है।
यह सूत्रपाठ आवश्यकचूर्णि के पाँचवें कायोत्सर्ग अध्ययन में मिलता है। इससे यह सूत्र प्राचीन सिद्ध होता है।
संसारदावानल स्तुति- इसमें अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर की अनुपम विशेषताओं का उल्लेख करते हुए उनका गुणगान किया गया है। यह स्तुति विक्रम की 8वीं शती के आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा रचित है तथा उनके द्वारा रचे गये 1444 ग्रन्थों में से यह अन्तिम कृति है।
पुक्खरवरदी सूत्र- इस सूत्र में ढाई द्वीप में विचरण कर रहे तीर्थंकरों को वन्दन तथा श्रुत का स्वरूप एवं उसके गुणों का वर्णन किया गया है। इसमें मुख्य रूप से श्रुतधर्म रूप आगम की स्तुति होने से इसका दूसरा नाम श्रुतस्तव है। इसका मूल पाठ आवश्यकसूत्र के पाँचवें अध्ययन में मिलता है इसलिए इसे गणधरकृत माना गया है।
सिद्धाणं-बुद्धाणं सूत्र- इस सूत्र के द्वारा समस्त सिद्धों, भगवान महावीर, भगवान नेमिनाथ एवं अष्टापद तीर्थ पर विराजित चौबीस तीर्थंकरों को वन्दन किया जाता है। प्रबोध टीका के अनुसार इस सूत्र की आदिम तीन गाथाएँ गणधरकृत तथा शेष दो पूर्वाचार्य रचित हैं। ___ सव्वस्सवि-सूत्र- इस सूत्र के द्वारा तीन योगों से जो कुछ अशुभ किया हो उसका मिच्छामि दुक्कडं दिया जाता है। यह सूत्र पूर्वाचार्य कृत है।
सुगुरुवंदन सूत्र- इस सूत्र में गुरु के चरण स्पर्श आदि करने के भाव से बारह प्रकार की आवर्त विधि कही गई है। इसी के साथ गुरु सम्बन्धी आशातनाओं की क्षमायाचना की गई है। इस पाठ का उल्लेख आवश्यसूत्र के तीसरे वंदन आवश्यक में है। इससे यह प्राचीन-गणधरकृत सिद्ध होता है।
इच्छामिठामि सूत्र- इस सूत्र के द्वारा अहोरात्रि में लगे हुए पाँच आचार एवं बारह व्रत सम्बन्धी दोषों की आलोचना की जाती है। यह गणधरकृत