Book Title: Prastavik Duha Sangrah Author(s): Manivijay Publisher: Devchand Dalichand View full book textPage 7
________________ कागा कोसिका धन हरे, कोयल किसिकु देत । एक जीभके कारणे, जग अपना कर छेत ॥ ५३ ॥ काळ काढशे केटलो, आदरी अधम उपाय । पळमां काळ पछाडशे, घडीये धुंट भराय ॥ ५४ ॥ कागा वाहालुं कुंभ जळ, स्त्रीने वाली बात । भोजन वालु ब्राह्मणने, गद्धाने वाली लात ॥ ५५ ॥ काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । अवसर वीत्यो जात है, फेर करेगो कब ॥ ५६ ॥ केरी बंदु कस्म, बळी विशेषे बोर । उपर से रलीयामणा, भीतर कठीण कठोर ॥ ५७ ॥ कुंकुम कज्जल क्रेवडो, भोजन क्रूर कपूर । कामिनी कंचन कपडा, ए सब पुण्य अंकुर ।। ५८ ।। करे कष्टयां पाडवा, दुर्जन कोटी उपाय । पुन्यवंतने ते सहु, सुखना कारण थाय ॥ ५९ ॥ वरसादे वन रायजे, सवी नव पल्लव थाय । जाय जवासानुं कीभुं, जे उभो सुकाय देखी न शके पारकी, रिद्धि हैये जस खार । सावर थाये दुबळो, वरसंते जलधार ॥ कोळी भाइना कच्चा बच्चा, जुवार वंटी खाय । अवाडाना पाणी पीये, एम ज मोटा धाय ॥ ६२ ॥ कृष्ण केरी कुलडी, सरणे पठयो दम्म । सत बीहे रे बापडा, नहि काढु आजम्म ॥ ६३ ॥ क्रोडो ग्रंथ तपासता, पाता मीलती दोय । सुख आपे सुख होत है, दुःख आपे दुःख होय || ६४ ॥ कोयल करकर कुकुआ, केम करी छुटीश माण । हेठे उभो पारधी, उपर भमे सींचाण । ६५ ।। पारधी विषधर डंकीयो, करशुं छुट्यो बाण । कोयल जा घर आपणे, वाण लाग्यो सींचाण ।। ६६ ॥ अळी गति छे दैवनी, जो जो जगपति कोय । आरंभ्यो एम ज रहे, अवर असंभ्रम होय ॥ ६७ ॥ ॥ ६० ॥ ६१ ॥ Scanned by CamScannerPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54