Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
२०१ (ना
मान
श्री बीतरागाय नमः
प्रस्ताविक दुहा संग्रह
SACARE
संग्राहक:तपागच्छाधिपतिः पूज्यपादः श्रीमान् मुलचन्दजी (मुक्तिविजयजी) गणिवर्य शिष्यवर्य
श्रीमान् गुलाबविजयजी महाराज शिष्य श्री मणिविजयजी महाराज
प्रकाशकः-श्री मासररोड ग्रामस्थ शा. देवचंद दलीचंद तरफथी शा. मणिलाल फूलचंद आवृत्ति बीजी संवत १९९७ अमूल्य भेट.
मत ५०० अबकः-शा. मणीलाल छगनलाल श्री नवप्रभात प्रीन्टींग प्रेस अमदाबाद.
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
मुनिराजश्री मणिविजयजीकृत पुस्तको। मक्तिमार्गदर्शन अने जैनधर्मनी प्राप्तिना हेतुओ। व
जावाजा २ भव्यजीवोने योग्य हितोपदेश । र ३ सप्तव्यसन निषेध ।
धन्यवाद ४ तीर्थगुणगण मणिमाला । ५ घरसंसार।
आ दुहासंग्रह छपाववामां मासररोड ६ व्हेन रूपालीनी पतिभक्ति ।
गामनिवासी शा. देवचंद दलीचंदनी विधवा ७विविध विषय विचारमाला भाग १-२-३-४-५। बाद नाथीपाइप रु. १२५) आफी उदारता
(छट्टो भाग छपाय छे.) ८ अष्टाद्विका व्याख्यान भाषांतर (आवृत्ति धीजी)।
बताववाथी ते अत्यंत धन्यवाद तेमज प्रशंसाने ९ चोमासी व्याख्यान भाषांतर अने तेर काठीयार्नु पात्र छे.
स्वरूप (आवृत्ति बीजी)।
KI
* आ चिहवाळी पुस्तको शिलिकमां नथी उपरनां दरेक पुस्तको खपीने भेट अपाय छ । प्रथम आवृत्ति खलास थइ जवाथी तथा घणा साधु-साध्वीओ तरफथी मागणी वारंवार थवाथी फीयी वचारो की बीजी आवृत्ति छपावेल 'छे.
RAME
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
श्री गौतमाय नमः प्रस्ताविक दुहा संग्रह।
अक्षर एक न आवडे, पण अभिमान अपार । जगमां तेने जाणवो, सहु सुरख शिरदार ॥१॥ अरगुण उपर गुण करे, ए सजन अभ्यास । मुखड जो सळगाचीये, आपे सरस मुबास ॥२॥ अनुमोदनथी फल वधे, निदायी घट जाय । मुकृतकी अनुमोदना, पाप निंदामां चाय ॥३॥ अणगमतो अणपीछतो, कहो केम आवे दाय । परणा बात तो वेगळी, पज वाते मीले बलाय ॥४॥ अबळी गति के देवनी. जगपति जोजो कोय । आरंभ्यो एम ज रहे, अवर असंभ्रम होय ॥५॥ अति घणुं नहि ताणीये, ताणे तुटी जाय । तुझ्या पछी जो सांघीये, बच्चे गांउ रही जाय ॥६॥ अति भलो न बोलणो, अति भलो न चूप । अति भलोन वरसषो, अति भलो नहि भूप ॥७॥ अंधा आगळ आरिसो, बहेरा आगळ गीत । मरख आगल रस कथा, प्रणेते एकरीत ॥८॥
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री प्रस्ताविक
दुहा
संग्रह
॥२॥
अति गहना के अपारा, संसार सागर खारा। बुजो बुजो रे गोरख जंपे, सारा धर्म विचारा ॥ ९ ॥ अक्कर जाणा मकर जाणा, जाणा हिंदुस्ताना । ए तीनोका संग न करना, लूला लंगड और काणाका ॥ १० ॥ अमाण हव एसठा, निष्फलं नहि हुति भंति । पाणि घणुं वलोइये, कर चोपडा न हुंति ॥ ११ ॥ अगन पलीता राजदंड, चोर मुशले जाय । इतना दंड दुनिया सहे, धर्म दंड सह्यो न जाय ॥ १२ ॥ अंधाने अंघो कहे, कडं लागे वेण । धीरे रहीने पूछीये, भाइ शाथी खोया नेण ॥ १३ ॥ अंक विनाना शून्ययी, काम सरे नहि कोय । घांचीनो बेल बहु फरे, पण रहे त्यांनो त्यांय ॥ १४ ॥ आनंद कहे परमानंदने, चीजे चीजे फेर। एक लाखे शेर मले, नहि एक टके शेर ॥ १५ ॥ आनंद कहे परमानंदने, कजीयामां नहि जाशुं । खीचडी खावी गांठनी, ज्यां त्यां रजळीभुं ॥ १६ ॥ आनंद कहे परमानंदने, माणसे माणसे फेर। एक आपे छे दानने, एक मागे घेर घेर ॥ १७ ॥ आव मया जाव मया, घरबार तुमारा । गांठ की खावो खीचडी, बासण हमारा ॥ १८ ॥ आली लुली जीभडी, बोले आळ पंपाळ । अंदर पेसे बोलीने, जोडा खाय कपाल ।। १९ ।। आव नहि आदर नहि, नहि नेंनर्म नेह । वो घर कदी न जाइये, पत्थर वरसे मेह ॥ २० ॥ आव महारा प्रीतमराय, लळी लळी लागु तुमारे पाय । ( हुं तो प्रणतुं तमारा पाय )
[ तने करावीश लीला लहेर ॥ २२ ॥
तुं छे रे सुकुलणी नार, तारा गुण तो अपरंपार ॥ २१ ॥ महारा कर्मे कीधुं जोर, खाइ गया लाडवा ने मर गया चोर । हुं तो लाव्यो डाबलो घेर
॥ २ ॥
Scanned by CamScanner
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
एक पखे जे पीतडी, ते जाणो दुःखदाय । एकण मन झुरी मरे, एक तणे मन वाय ॥ २३ ॥ एक कहे मुजमां बळ झाझु, बीजो कहे तुज साथे वाच । त्रीजो कहे तुं गद्धा तोले, चोथो मम्मो चच्चो बोछे॥२४॥ एरणनी चोरी करे, दीये सोयनां दान । उंचो नीचो उछळे, क्युं नाव्युं वैमान ॥ २५॥ एक पुत कालु करे, बीजो उज्ज्वळ प्रकाश । दीपक का बे दीकरा, काजळ अने अजवास ॥ २६॥ एक अवगुणे आपणु, आखु बगडे अंग । चपटी हळदर नाखता, जेम खीचडीनो रंग ॥ २७॥ ओकी दावण जे करे, लोढी देवर खाय । दुधे वाल जे करे, वो घर वैद्य न जाय ॥२८॥ तुंबा पाणी जे पीये, लोढी देवर खाय । भोय पथारी जे करे, वो घर वैद्य न जाय ॥ २९ ॥ दांत लुण जे वापरे, कवळे उणु खाय । डाबु पडखु दाबी सुवे, वो घर वैद्य न जाय ॥ ३०॥ उदारता धननी करे, एवा लाखो लोक । टाणे शिर आगळ धरे, एवा विरला कोक ।। ३१ ।। उंचा जोयो आंखलो, नीचा जोइ नार । एकल वायो वाणीयो, ए त्रणेनुं मोढुं बाळ ॥ ३२ ॥ कन्या विक्रय जे करे, तेहने लागे पाप । दुःखी दरिद्री दोषित थइ, पामे बहु संताप ॥ ३३ ॥ कपटु चोरी दाम मागे, डाह्यो एवो दरजी । एवा पासे क्यारे जइये, पूरा होइये गरजी ॥ ३४॥ कपटीना मन एहवा, जेवा पाका दोर । बाहिर सुंदर पेखीये, मांहे कठीण कठोर ॥ ३५॥ करसण कीधे जीव संहार, करसण कीधे पाप अपार । करसण कीधे जे नर जीवे, पढे नरके ते लीधे दीवे ॥३६॥ कडवो होये लींबडो, पण तस मीठी छांय, बंधव होय अबोलणा, तोय पोतानी बांय ॥ ३७॥
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
प्रस्ताविक
संग्रहः
कच्चा पारा ब्रह्म अंस, शिव निर्माल्य जो खाय । गुरु कहरे बापडा, जडा मूळसे जाय ॥ ३८॥ कंचन तजयो सेल छे, परनारीनो स्नेह । पर निंदा पर इा, दुर्लभ तजवा तेह ॥ ३९॥ कबीर कहे कमाल कु, दो बाता शीखले । कर साहेब की बंदगी, भूख्या कु कुच्छ दे ॥४०॥ करक्त कातर दुर्जन, ए मेरी जूदु करंत । सुइ सुहागो सुजन, ए भांग्याने सांधत ॥४१॥ कवण केरा हाथी तुरंगम, कवण केरी नारी । माहे मूहियो मूढो जपे, म्ह आ मारी मारी ॥१२॥ कर भक्ति किरतारनी, कर परमारथ काम । कर मुकृत जगमें सदा, रहे अविचल नाम ॥४३॥ कक्षु न नीपजे एकथो, फोगट मन फूलाय । कमाडने तालु मली, घरनुं रक्षण थाय ॥ ४४ ॥ कहेना हे सो कह दीग, अब क्या बजावू ढोल । एक श्वासमां जात हे, तीन लोक का मोल ॥४५॥ करम विनाना करसनीया, कोनी जाने जाइश । करममां लखी राबडी तो, लाडु क्याथी खाइस ॥ ४६॥ कन्या काय कुमारीघणी, कृषण लच्छी वाचे शाभणी। वाडी तात कहो केम करे, त्रणे उत्तर धो एक अक्षरे (उत्तर-नवरी) काजळ तजे न शामता, मोती तजे न श्वेत । दुर्जन तजे न कुटिलता, सज्जन तजे न हेत ॥४८॥ काला कुशल न पूछीये, नीत नीत हाण विहाण । इक्के के वासर गळे, आयु नवले भाण ॥४९॥ कातर सम दुर्जन कह्या, सज्जन सोय समान । कातर काषी जुदा करे, सोय करे संधान ॥५०॥ कार्तिक मासके कुतरे, तजे अन्न और प्यास । तुलसी वांकी क्या गति, जीसके बारे मास ॥५१॥ काने सुण्यो न मानीये, आंखे दीढुं सच्च । भांग्या कदी न सांधीये, मन मोती वळी कच ॥ ५२ ॥
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
कागा कोसिका धन हरे, कोयल किसिकु देत । एक जीभके कारणे, जग अपना कर छेत ॥ ५३ ॥ काळ काढशे केटलो, आदरी अधम उपाय । पळमां काळ पछाडशे, घडीये धुंट भराय ॥ ५४ ॥ कागा वाहालुं कुंभ जळ, स्त्रीने वाली बात । भोजन वालु ब्राह्मणने, गद्धाने वाली लात ॥ ५५ ॥ काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । अवसर वीत्यो जात है, फेर करेगो कब ॥ ५६ ॥ केरी बंदु कस्म, बळी विशेषे बोर । उपर से रलीयामणा, भीतर कठीण कठोर ॥ ५७ ॥ कुंकुम कज्जल क्रेवडो, भोजन क्रूर कपूर । कामिनी कंचन कपडा, ए सब पुण्य अंकुर ।। ५८ ।। करे कष्टयां पाडवा, दुर्जन कोटी उपाय । पुन्यवंतने ते सहु, सुखना कारण थाय ॥ ५९ ॥ वरसादे वन रायजे, सवी नव पल्लव थाय । जाय जवासानुं कीभुं, जे उभो सुकाय देखी न शके पारकी, रिद्धि हैये जस खार । सावर थाये दुबळो, वरसंते जलधार ॥ कोळी भाइना कच्चा बच्चा, जुवार वंटी खाय । अवाडाना पाणी पीये, एम ज मोटा धाय ॥ ६२ ॥ कृष्ण केरी कुलडी, सरणे पठयो दम्म । सत बीहे रे बापडा, नहि काढु आजम्म ॥ ६३ ॥ क्रोडो ग्रंथ तपासता, पाता मीलती दोय । सुख आपे सुख होत है, दुःख आपे दुःख होय || ६४ ॥ कोयल करकर कुकुआ, केम करी छुटीश माण । हेठे उभो पारधी, उपर भमे सींचाण । ६५ ।। पारधी विषधर डंकीयो, करशुं छुट्यो बाण । कोयल जा घर आपणे, वाण लाग्यो सींचाण ।। ६६ ॥ अळी गति छे दैवनी, जो जो जगपति कोय । आरंभ्यो एम ज रहे, अवर असंभ्रम होय ॥ ६७ ॥
॥
६० ॥
६१ ॥
Scanned by CamScanner
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
मस्ताविक
सग्रहः
जेने तुं तारुं गणे, ते तारु नयी हाथ । ए सहु रहेशे आंगणे, घडीये घुट भराय ॥१८॥ हाथे ते साये थशे, पुन्य पाप समुदाय । बीजुं इहां रही जशे, घडीये घुट भराय ॥ ६९॥ धारी धारणा ध्यानमां, रहेशे मननी मांय । मुइ जवू समशानमां, घडीये घुट भराय ॥७॥ कोक वात करतो होय त्यां, वचमां जइने बोले । लालो कहे छे मालाने, ते तणखलाने तोले ॥ ७१॥ वगर नोतरे जमवा जइने, सारु नरम बोले । लालो कहे छे मालाने, ते तणखलाने तोले ॥ ७२ ॥ कथामां जइने वचमां बोले, डाह्यो थइने डोले । लालो कहे छे मालाने, ते तणखलाने तोले ॥ ७३ ॥ वेळा कवेळा समजे नहिने, वगर विचायु बोले । लालो कहे छे मालाने, ते तणखलाने तोले ॥ ७४ ॥ बधी वातमा मोण घालीने, फांकडो थइने बोले । लालो कहे छे मालाने, ते तणखलाने तोले ॥ ७ ॥ ज्यां त्यां धामो नाखी बेसे, वगर बोलाव्यो बोले । लालो कहे छे मालाने, ते तणखलाने तोले ॥७६ ॥ घेर घर जइने चीज मागे, रांक जेबो थइ बोले । लालो कहे छे मालाने, ते तणखलाने तोले ॥ ७७॥ खानदानी पडी खांजरे, गयुं अमीरी नूर । शाहजादा सोंघा थया, मोंघा थया मजुर ॥ ७८ ॥ गग्गे काम गवी भली, तत्ते सुरतरु वृक्ष । मम्मे मणि चिंतामणी, गौतमस्वामी प्रत्यक्ष ॥ ७९ ॥ गद्धासे गद्धा मीले, लात लात और लात । ज्ञानिसे झानि मीले, बात बात और बात ॥८॥ गयु धन ते सांपडे, गया वळे छे बहाण । गयो अवसर आवे नहि, गया न आवे माण ॥८१॥ गाळो सहन करीये सदा, गाळे गुमडां नहि थाय । जे गमार जन गाळ दे, मुख तेनुं गंधाय ।। ८२॥
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
गांजो पीतां जगतमां, लाज घटे बहुवार । गंजेडी केफी कहे, निंदे लोक अपार ॥ ८३॥ भंग रंग पीवा थकी, उपजे अवगुण अंग । भंगी तो रंगी दीसे, छोडे मुगुणी संग ॥ ८४ ॥ अमल भखंतां आळसु, निद्रा नेण अपार । लालचमां लपटी रहे, मुखथी को खबाद ॥ ८५॥ गुणतो गर्दधना कर्या, लांबा न कर्या कान । पूंछ करता मूछ करी, भुली गया भगवान ।। ८६ ॥ गुरुजी गुरुजी बोले सहु, गुरुजीने घेर बेटाने वह । गुरुजीने घेर ढांढा ढोर, अख्खो कहे आप वळावो ने आपज चोर॥८७॥ गुरु लोभी चेलो लालची, दोनुं खेले दाव । दोनुं बुडे बापडा, बेठे पत्थर की नाच ॥ ८८॥ गुणवंता गंभीरनर, दयावान दातार । अंतकाल तक न तजे, धैर्य धर्म उपकार ॥ ८९ ॥ गुण बोले निदे नहि, ते सोभागी होय । अवगुण बोले परतणां, ते दुर्भागी होय ॥९॥ गोधन गजधन रतनधन, कंचन खान सुखान । जब आवे संतोष धन, सब धन धूल समान ।। ९१ ॥ गोरख जंपे सुण रे बाबू, न गणीश आप पराया । जीवदया कु अविचल पालो, अवर धर्म सवि माया ॥ ९२ ॥ चतुरने चिंता घणी, मूरखने नहि लाज । भली बुरी जाणे नहि, पेटभर्यानुं काज ।। ९३ ॥ चंपा तुजमां तीन गुण, रूप रंग और वास । पण तुजमें अवगुण भर्या, भ्रमर न आवे पास ॥ ९४ ॥ चित्त अलुद्धा माणसा, जइ विलग्गे कंठ । टुट्या पछी जो सांधीये, तोय विचाले गंठ ॥ ९५॥ चिद् ज्योति जो नयन, अंतर भाविप्रकाश । करधंध सब परहरी, एक विवेक अभ्यास ।। ९६ ॥ चौदह चूके बारह भूले, छकायका न जाणे नाम । नगर दंदेरा फेरीया, श्रावक हमारा नाम ।। ९७ ॥
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री प्रस्ताविक
दुहा संग्रहः
*
श्रावक के कुलपायके, लीवो न प्रभुको नाम, जैसे कुवा जल बिना, हुआ तो कौन से काम ॥ ९८ ॥ छप्पन बखारने भारो कुंची, वेपार थोडो ने नजरो उंची ॥ ९९ ॥
जरा घुतारी धोरणी, धोया देश विदेश । विण पाणी विण साबुये, उजळा कीवा केश ॥ १०० ॥ जणमण चिंते अपणे, मनवंछित पुरीश । दैव भणे रे बापडा, हुं पण अवर करीश ॥ १०१ ॥ जब तूं आया जगतमें, जग इसे तुं रोय । अब करणी ऐसी करो, जगमें इसे न कोय ॥ १०२ ॥ जननी जतो भक्तजन, कां दाता कां सूर । नहि तो रहेजे वांझणी, मत गुमावीश नूर ॥ १०३ ॥ जब लग जोगी जग गुरु, जब लग रहे उदास। जब जोगी आशा करे, तब जोगी जगदास ॥ १०४ ॥ जब लग तेरे पुण्य का, पोहोंच्या नहि करार । तब लग तुज को माफ हे, अवगुण कर हजार ।। १०५ ॥ जानुं जीवाभाइनी जानमां, गावुं बजायुं तानमां । खावुं पीव्रं असमानमां, मुइ रहेवुं मेदानमां (सुतुं जइ स्मशानमां) ॥१०६ ॥ जाके लक्षण शुद्ध है, ताको संग कुसंग | चंदन विष लागे नहि, लिपट रहे भुजंग ॥ १०७ ॥ जीवंत जग जस नहि, जसविना कां जीव । जे जस लइने आथम्या, ते रवि पहेलां उगंत ॥ १०८ ॥
से जीनका मीलना, ताकु क्या हय दूर । पदमिणी रही तलाब में, आकाशे रह्यो सूर ॥ १०९ ॥ जीवन जोबन राजमद, अविचल रहा न कोय। जो दिन जाय सतसंगमें, जीवन का फल सोय ॥ ११० ॥ जीभणीये भलाने, न गुणाने पणजी । न गुणा न होत जो जगतमां, तो भला संभारतकीं ॥ १११ ॥ जुहार जुहार सहु कहे, न जाणे जुहार का भेद । भेद जाण्या विन रहत है आठे महर बहु खेद ॥ ११२ ॥
॥ ५ ॥
Scanned by CamScanner
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
कमति, जे बोले
लहार ने लोड गम
नहि ताड ।।
जज्जामां जगदीस है, हहामा हरि सार । सरामां राम माम हे, तेणे भयो जुझार ॥११॥ जज्जो जैन धर्ममो, हैये हर्ष अपार । ररो रिषभ जिणंदनो, तेणे भयो जुहार ॥ १९४ ॥ जे बोले बालकमति, जे बोले अणगार । जे बोले वर कामिनी, झूठ पडे न लगार ॥ ११५॥ जे पर जेनु मन हुवे, ते पर करे विचार । लुहार ने लोड गमे, वाघळ गमे सुतार ॥ ११६ ॥ जेवा बीजने वावशे, तेवा उगशे झाड । आंधानुं फळ वावशो, तो उगशे नहि ताड ॥ ११७ ॥ जेवू पाकुं बोर, तेवु मन दुर्जन तणुं । भीतर कठीन कठोर, बाहारथी रातुं घणुं ॥ ११८ ॥ जेर न लागे कप्पड, जामा होय पलीत्त । तस्त खाधी मानसां, ते केम निर्मल चित्त ॥ ११९ ॥ जे सज्जण ते सज्जण, जे रुठया सो वार, अंब न होये लींबडो, जे जाते सहकार ॥१२०॥ जे घर पुत्त सपुत्तनो, कायको धन संचेय, जो घर पुत्त कपुत्तनो, कायको धन संचेय ॥ १२१ ॥ जे घर जिन मंदीर नहि, जे घर नहि मुनिदान । जे घर धर्म कथा नहि, ते नहि पुन्य स्थान ॥ १२२ ॥ जैसी करणी वैसी भरणी, आज क्या कल पावेगा । धोको देता गया रे कां, आपही धोका पावेगा ॥१२३ ॥ जोइये तेमां एक पण, ओछो नहि नीभाय । पाया इसो उपळा, मळी खाटलो थाय ॥ १२४ ॥ जो जाको मुन जानते, सो ताको गुन लेत । कोयल आमली खात हे, काग लींचोली लेत॥१२५ ॥ उहा ठीक मांई रहो, ठीक रया ठीक थाप । ठीक विनाना मीक्डा, पड्या चोरसीमांय ॥ १२६ ॥ तरवर सरबर संतजम, चोथो घरसे मेह । परमारकने कारणे, चारे धरिया देह ।। १२७ ।।
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
श्री मस्ताविकता
दुहा
संग्रहः
तन धन घरणी धाम मुत, मात तात भरु माण । एक धर्म के आगळे, हे सब तुच्छ समान ॥१२८॥ तमाकुमां तीन गुण, खावे पीवे लेवे नास । जो तमाकुनी निंदा करे, तो जाय सत्यानाश ॥१२९॥ तमाकुमा अवगुण तीन, हैयु जळे ने हाथ । हाथमां जाले ठीकरु ने, घरघर मागे आग ॥१३०॥ होकामां हिंसा घणी, पाप तणो सो पुर । जो सुख चाहे जीव का, तो होको कर दे दूर ॥१३१॥ नसा न नर को चाहिये, द्रव्य बुद्धि हर लेत । नीच नशाने कारणे, सब जग ताली देत ॥१३२ ।। पच्चीस बीडी रोजनी, सो बरसे नव लाख । धर्म धातु धन हणे, छाती थाये खास ॥१३३॥ ताबूत ताबूत शुं करो, मन राखो मजबूत । समजाव्यो समजे नहि, ते पंडे ताबूत ॥ १३४ ॥ तानसेन का तान में, सब तान गुलतान । आप आपके तान में, गद्धा भी मस्तान ॥ १३५ ॥ तिलक करतां त्रेपन यया, रुंडमालाना नाका गयां । कथा मुणी सुणी फुव्या कान, तोय न आव्यु ब्रह्मज्ञान ॥ १३६॥ तिलभर मछली खायके, कोटी गौ दे दान । कासी करवत लइ मरे, तोभी नरक निदान ॥ १३७॥ तुलसी कबु न कीजीये, वणिक पुत्र विश्वास । धन हरे धीरज दहे, रहे दास को दास ॥१३८ ॥ तुजको जो कोइ देवे मूल, तो तुं दे उसको फूल । तुजको फूल का फूल मिलेगा, उसको शूल का शूल ॥ १३९ ॥ थल उपनी जल में बसी, जलका जीव न खाय । जीवह कारण बापडी, क्षण आये क्षण जाय ॥१४॥ दी वाळे ते दीकरा, कां धोरी कां धरा । कां कपासना जीडवा, कां तलनां तलसरा ॥१४१॥ दुःखमें प्रभु को सब भजे, सुखमें भजे न कोय । मुखमें मधु को जो भजे, जगमें इसे न कोय (तो दुःख कहां से होय)॥१४२॥
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
दुर्जन की करुणा पुरी, भलो सज्जन को त्रास । जव सुरज गरमी करे, तब इससन की मास ।। १४३ ॥ देराणी जेठाणीनी गोठडीमां, खोरा सकरपारा । नणंद भोजाइमी मोठडीमा, सदना अंगारा ॥१५॥ देश गयो विदेश गयो, शीखी लाम्यो वाणी। वॉटर करतां जीव गयो, ने साष्टछा हेठे पाणी । १५॥ देखता जग उजळा, एक पगे एक ध्यान में जाण्यु कोइ संत है, पण छुड कवट की साम ॥१४॥ धनवंत को कांटो लगे, स्वमा करे सहु कोय । निर्घन इंगर से गिरे, खबर न पूछे कोष ॥ १४७॥ वर्ग घटेवा पन घटे, धन घट मन घट जाय । मन थाटतां मनसा घटे, घटत घटत घट जाय ॥ १४८॥ धर्य वदंता अन बढे, धन बढ़ मन बढ जाय । मम बढता ममता बढे, बठत बढत बढ पाय ॥१४९ ।। धूरि आडंबर होय, धूर माणस बोले घणुं दीसे घिरला कोय, विण बोले करे यछु ॥१५॥ नर नारीना रमकडा, नर नारीना दास । मचाव्या नाचे नरमणि, माणे बास विलास ॥१५१॥ नयन तणी गति अलख है, किणथी कली न जाय । लाख लोक कु त्याग कर, ससमेहि पर जाय ।। १५२ ।। नमे यांचा आंवली, नमे छे दाडिम द्राख । एरंडा विचाराशुं करे, जेहनी ओछी छांय ॥ १५३ ॥ नारी जन कहेवाय छे, कजीयानी करनार । चार मळे जो चोटला, भांगे जन घरवार ॥१५४ ॥ नाय विनानो बळदीयो, नाथ विनानी नार। वंठी जातां वार शी, सजन करो विचार ॥ १५५ ।। नागणीसे नारी बृरी, दोन मुखसे खाय । जीवता खाये काळजा, मुवा नरक लइ जाय ॥ १५६॥ नारी तो झरी छुरी, मत लगावो अंग । दस शिर रावण के कटे, परनारी के संग ॥१५७ ॥
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
भी
पस्ताविक
संग्रह
नाचे कुदे तोरे तान, दुनिया उसका राखे मान । शील संतोष यूपकी परे, दुनिया उसकी मश्करी करे ।। १५८॥ नाइ पोइने पाटले पेसे, उभा ताणे टीला । पारके घेर जमयान होय तो, पोतीया मुकेटीला ॥१५९ ।। निर्धनीयो धन इकहो घणु, पुन्य न की) पूरयतणु । सांज पडे संभाळे मेळ, सांधे नय ने तुटे तेर ॥ १६०॥ निंदा परनी जे करे, कूटा देवे आल । मर्म प्रकाशे परतणा, तेथी भलो चमन ।। १६१ ॥ निंदक धोषी दो जणा, पोयतो सब मेल । धोबी पेसा लेत है, निंदक ठेलम ठेल ।। १६२॥ निंदा हमारी जो करे, मित्र हमारा होय । साघु लेके गांठ का, मेल हमारा पोय ॥ १६३ ।। निर्लज्ज नर लाजे नहि, करोने कोटी उपाय । नाक कपायुतो कहे, अंग ओछो भार ॥ १६४ ॥ नीनु जोइने चालता, प्रण गुण मोटा होय । काटा टळे, दया पळे, पग पण नहि खराय ॥ १६५ ॥ नीची द्रष्टि नपि करे, मोटा जे कहेवाय । सिंह लोधणो सो करे, तोपण तृण नब खाय ।। १६६ ।। नेह विणडे मन गये, शीकी जे ताणाताण । भाग्यो मोती जो जुड़े, तो मन भावे ठगम ॥ १६७ ॥ नाना महाराजने मोटु टील, पापडीढीली ने मोई पील । टुकी पोतडीने वळसी पारा,पएपाणीये ग्रामणवाग॥१६८॥ नाजुक नार ने घरेणा भारी, काली चेली ने पाले चमकाळी पापडीयो मोटी ने शेठमी जान, एएपाणी वाणीयावाग। हाथमाहोको ने करे खोखारा, मण्डी बांकी ने बाळ रूपाळा | आंगणेघोडीने पगातोग, ए एपाणीये रजपूतवाग॥१७॥ भंस घणी ने पळद बरेरा, लुगा जाग ने घासना भारा । पालक रमे पारंपराग, एएपाणीये कणवीवाडा॥१७॥ परिव रेडक भला, जल विण क्षण न रहत । मिय विण उत्तम नारीने, क्षण एक बरसात ॥ १७२ ॥
॥
७
॥
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
परदेश जमाइ माणेक मूलो, देश जमाइ सोवन तुलो । गाम जमाइ भाखर मूलो, घर जमाइ टावर तुलो ॥१७३॥ परदेशयी आव्या ने मोतीडे वधाव्या । खर्ची खुटी ने, टाणे सिधान्या ॥१७४ ॥ परनरनो पाणी ग्रही, हेते करती हास्य । हवा दवामां दोडती, घरमां गमे न वास ॥ १७५ ।। पप्पासं परच्यो नहि, ददो रह्यो दूर । लल्ला लागी रह्यो, नन्नो रह्यो हजूर ॥ १७६ ॥ पगलु भरता मानवी, पहेला खूब विचार । क्यांची आव्या आपणे, पाछा क्यां फरनार ।। १७७॥ पंडित भये मशालची, बाता करे बनाइ । औरन कु उजारा करे, आप अंधारे जाई ।। १७८ ॥ पापे जे धन मेलीयो, ते धन केम थिर थाय । मेलणहारो मरी गयो, ते धन कोकज खाय ॥ १७९ ॥ पाण सयांहे माछला, सच्चो नेह सुजाण । जब कीजे जळ जुजुआ, तबही छंडे प्राण ॥ १८० ।। पाप छीपाये ना छीपे, छीपे तो मोटे भाग । दावी दुबी ना रहे, रूइ लपेटी आग ।। १८१ ॥ पांख सहित उडे गगन, गंगाजळमां नाय । हंस कहे तोये कीमे, वायस हंस न थाय ॥ १८२ ।। पाणिमां पाषाण, भींजे पण गळे नहि । मृरख आगळ वाण, रीझे पण बुझे नहि ॥ १८३ ॥ प्राकृत भाषा कहत हे, संस्कृत भाषा मूल । मूल रहत हे धूलमें, शाखा ने फळ फूल ॥ १८४ ॥ पीते भले पारेवडा, रूपे भलेरा मोर । पीत करी जे परिहरे, ते माणस नहि पण ढोर ॥ १८५॥ पुन्य पूरा जव होत हे, उदय होय तब पाप । सुके वनकी लाकडी, प्रजळे आपो आप॥१८६ ॥ पुत्ता मित्ता होइ अनेरा, कवण केरी नारी । नरके जाता कोइ न राखे, हैये जो जो विचारी ॥१८७ ॥
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री मस्ताविक दुहा
संग्रह
॥ ८ ॥
पुत्रीने परणावीये, कोढी न धरीये हाथ । यथाशक्ति परणावीये, योग्य पुरुषमी साथ ॥ १८८ ॥ पुरब देखा पश्चिम देखा, देखा मूलक राणेका । ए सीनोका विश्वास न करना, अंबे तु काणेका ॥ १८९ ॥ पोथी पढ पढ जग मूआ, पंडित मया न कोय । अढाई अक्षर प्रेमका, पढे सो पंडित होय ॥ १९० ॥ बडा बडाइ ना करे, वडा न वोळे बोल हीरा मुखसे ना कहे, लाख हमारा मोठ ॥ १९१ ॥ मन की गड़बडी, रायन की गइ लंक | दोनुं दुःख समान है, एइ रावसो रंक ॥ १९२॥ बस्थी बुद्धि आगली, जे उपजे ततकाल । वानर बाघ विगोइया, एकलडे शीया ॥ १९३ ॥ बहोत बाणीज बहू बेटिया, दो नारी भर्तार । उसको दय कया मारना, मार रहा किरतार ॥ १९४ ॥ बात बात सब एक है, बतलावन में फेर एक पवन वादल मीछे, एक ही देव विखेर ॥ १९५ ॥ बार बोलावणं, बीई ये कर जोट । पांच बच्चा जिण घर हुवे, तस घर जाइये दोड ॥ १९६ ॥ बाकर दवा लाख लाखे विचारा सिंहण कथा एक, एके हजारा ॥ १९७ ॥
वृरा बुरा सबको कहे, बुरा न दीसे कोय। जो घट शोधुं आपणा, तो हमसे बुरा न कोय ॥ १९८ ॥ बेरा आगळ गावणं, मुंगा आगळ बात । अंधा आगळ नाचणं, ए त्रण सावडे सात ॥ १९९ ॥ बथाणीने वायटी, बेनो एक स्वभाव । मोदेवी नाना कहे, पण लीवा उपर भाव ॥ २०० ॥ राणी पाणी ने पांडा, ऋणनो एक स्वभाव । उंचे कुठे अवतरी, नीचा उपर भाव ॥ २०१ ॥ यो पाटो ने पारधी, श्रणनो एक स्वभाव के मार्या के मारशे, मार्या उपर भाव ॥ २०२ ॥
२ ।। ८ ।।
Scanned by CamScanner
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
वैध वेश्या वकील ए, अपनो एक स्वभाव । रोकडथी राजी रहे, उधारे अभाव । २०३। राजा बाजा ने बांदरा, वणनो एक स्वभाव । रीजे तो राजी रहे, खीजे घाले घाव ॥ २०४॥ भणी भाषथी भामिनी, सुधारानो सार । नीति केरा नाम पर, काजळ घसे अपार । २०५।। भणतां भवतां बहु भयो, पिथा अन्य अनेक । पण शरीर साचबवा तणो, अक्षर म भयो एक ॥ २०६ ॥ भर्या सो छलके महि, छलके सो अद्धा । घोडा सो मुंके नहि, अंके सो गदा । २०७॥ भले लक्षण शुद्ध होय, तो क्या संग कुसंग । चंदन विष लागे नहि, लीपट रहे भुजंग । २०८ ॥ भलो रे माहारो आयो, के थयो पूजवा जोगो । पली रे माहारी मुहपति, के पाम्बो सुख संपत्ति ॥ २०९॥ भली करत लगत विलंब, विलंब न पुरे विचार । भवन बनावत दिन लगत, पडत न लागत वार ॥ २१ ॥ भला बुरा सब एक हे, जब लग बोलत नांहि । जाण पडतहे काक पीक, रतु वसंत के मांहि । २११ ॥ भारत वासी बंधुओ, खास राखजो ख्याल । स्वधर्मने नहि छोडशो, कहे कवि अंबालाल ॥ २१२ ॥ भाइ केम छो उदासी, नथी कोइ मळ्यो विश्वासी । जो मळे विश्वासी, तो जाय अमारी उदासी ॥ २१३॥ भुख रांड झंडी, आंख जाय उंडी । पग थाय पाणी, आंसु लावे ताणी ॥ २१४॥ मन मेला तन उजळा, बगलेका सा ध्यान । में जाण्या कोइ संत हे, मरी कपटकी खान । २१५॥ मन मांहि भावे मुंह इलावे, नं.नं. जं. कही लोक मुगावे । मनकी बात कबहु कोन जाणे, कपट चिन्ह एमालखाणे॥२१६॥ मंगनकु मलो बोलणो, चोरन की भली चुप । माली को भलो वरसपो, धोबी कुभली धप । २१७॥
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
प्रस्ताविक
संग्रहः
माखी चंदन परिहरे, दुष्मळ उपर जाय । पापी धर्म न सांभळे, उचे के उठी जाय ॥ २१८॥ माता पासे बेटा मागे, करबकरे का साटा । अपना पुत खीलावत चाहे, पूत दूजे का काटा ॥ २१९ ॥ मागे धोरी ठोठ गुरु, कुवेज खारु नीर । गाम ठाकुर ग्रहे कुभारजा, ए पांचे दहे शरीर ॥ २२० । माया माथे शींगडा, लांबा नव नव हाथ । आगे मारे शींगडां, पाछळ मारे लात ॥ २२१ ॥ मार मार ओ नंग तडाका, ए पनीहारी में भीख मंगा । जो कीया सो नंगा ने कीया, संगतका फल मेने लीया ॥२२२॥ मानव जाणे में करु, करतब दूजो होय । आदरीया अधवच रहे, हरि करे सो होय ॥ २२३ ॥ मागन मरण समान हे, मत कोइ मागो भीख । मागणसे मरणा भला, ए सद्गुरुनी शीख ॥ २२४ ॥ मान अपमान गणे नहि, एसे शीतल संत । भवसागर उतर पड़े, तोडे जमका दंत ।। २२५ ॥ मींदडीने माळो नहि, उंदरने उचाळो नहि । नागर बच्चो काळो नहि, ब्राह्मग घेर पाळो नहि ।। २२६ ॥ मुरखने प्रतिबोधतां, मति पोतानी जाय । टपलो सराण चढावतां, आरिसो नवी थाय ।। २२७॥ मुरखनी संगतिथी लहे, भला जनो दुःखभार । माकडना मेलापथी, खाय खाटलो मार ॥ २२८ ॥ मुसल्ला सामा मळे, जुग जुग करे सलाम । साधु कु वंदे नहि, एसा चित्त हराम ॥ २२९ ॥ मेतो वांचे चोपडा, ने छोकरा करे मजा । त्रीश दिवसनो महिनो ने, एकत्रीश दिवसनी रजा ॥ २३०॥ मेरे मनमें ओर है, करता के मन और । आधो कहे माधो सुनो, जुठी मन की दोर ॥ २३१ ॥ में मेरा ए भावथी, वधे राग अरु रोष । जो बो में मनमें हुवे, तोला मिटे न दोष ।। २३२ ॥
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
मोटाने कहेवाय नहि, नानाने कहेवाय । सामुना सो वांक पण, वहूनो बांक कढाय ॥ २३३ ॥ मोटा जे करे ते छाजे, उपर ढोल नगारा वाजे । नाना जे करे ते जाय, उपर गडदा पाटु खाय । २३४ ॥ रत्न पडघु छे बजारमां, चौटा केरा मांय । मूरख जाणे कांकरो, चतुर लीये उठाय ॥ २३५ ॥ राती गमाइ सोवके, दिवस गमाया खाय । हीरा जैसा नरभव, कबडी बदले जाय ॥ २३६ ॥ राग द्वेष जाकु नहि, ताकु काळ न खाय । काळ जीत जगमें रहो, एहज मुक्ति उपाय ॥ २३७॥ राज भुजंगम वीसहरन, जपो मंत्रविवेक । भववन मूल उच्छेदकी, विलसे पाकी टेक ॥ २३८ ॥ राग बाप खुंखार भणीजे, कथा बाप हुंकार भणीजे । प्रीति बाप जीकार कहीजे, कलह बाप तुंकार भणीजे लघुतासे प्रभुता वधे, प्रभुतासे लघुता दूर । लघुता मनसे मानीये, प्रभुता आवे हजुर ॥ २४० ॥ लहेणा की जड मांगणा, रोगो की जड खांसी । दालिद्रिकी जड खाउ खाउ, लडाइ की जड हांसी। २४१ ॥ लांबी घाले लेखणो, ने उजळे लुगडे फरे । लोको मनमा एम जाणे, आ मुसद्दीयो क्यारे मरे ॥ २४२॥ लेता उसे देता डसे, उपर चडावे पाड । वैरी विस हर ने विसेस, पण न विसेस की राड ॥ २४३ ॥ वणज करे ते वाणीया, बहु वेपारे वाय । अबळानुं सबळु करे, गोळने पाणिये नाय ॥ २४४ ॥ वखत विचारी वाणियो, मूछ चडावे कान । वखत विचारी मूछ वळी, नीची करे प्रणाम ॥ २४५ ॥ वडा वडाइ ना करे, वडा न बोले बोल । हीरा मुखसे ना कहे, लाख हमारा मोल ॥ २४६ ॥ वाणी पाणि बेसदा, पवित्रता करनार । ललना लालच बेसदा, आपदना दातार ॥ २४७ ॥
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
श्री
प्रस्ताविक
संबहः
॥१०॥
वा फरे वादळ करे, फरे नदी का पूर । पण उत्तम बोल्या नवि फरे, जो पत्रिम उगे सर । २४८ ॥ बाहरे वाह प्रभु बाहरे वाह, अजब तेरी दुनिया अजब तेरा खेल । छछदर के शिरमें, पंचेली का तेल ॥ २४९ ॥ बावीये कडवो तुंबडी, उतरे तुंच हजार । एक एकथी अधिकतर, कडवा अपरंपार ॥ २५०॥ बांस वधे वीस कातळी, तोय पोलो ने पोलो । गोलो गादी बेसारीये, तोय गोलो ते मोजे । २५१ ॥ बींची केरी वेदना, जेने बीती होय । जाणे ते जन एकलो, अपर न जाणे कोय ॥ २५२॥ वीण परणेला परणवा, परणेला त्यजवा चहाय । लक्कड लाडु खाय ते, म खाय ते पस्ताय । २५३ ॥ विक्रम बिसातीस पछी, याशे धर्म प्रकाश । साधु महिमा वाधशे, मत पाखंड खसी जाय । १५५ । चहेता पाणी निर्मला, बांध्या गंदा होय । साधु तो भमता भला, डाघ न लागे कोय ॥ २५५ ॥ वैद्य वेश्या वकील ए, त्रणे रोकडीआ । जोशी डोशी ने बटेमार्ग, त्रणे फोगटीया ॥ २५६ ॥ वने न देखु पारधी, अंगे न देखु बाण । हुं तुज पुछु पंडीआ, केणी पेरे गया प्राण ॥ २५७ ॥ जल योडा ने नेह घणा, मीतका लाग्या बाण । तुं पी तुं पी तुंज पी, एणी परे गया प्राण ॥ २५८ ॥ श्रावक के कूळ पायके, लीयो न प्रभु को नाम । जैसे कुवा जळ विना, हुवा तो कौनसा काम ॥ २५९ । श्वान साथे मीतडी, दोषांतिका दुःख । खीज्या काटे पांवको, रीश्या चाटे मुख ॥ २६॥ शुं लइ आच्या साथमां, सुं लइ नीकळनार । खाली हाथे आव्या, खाली हाये जमार ॥ २६१। शोभायां लुगडा ने सरभरामां चा । घरेणामां घडियाळ, अने खावामां वा ॥ २६९ ॥
॥१०॥
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
सस्से सामोलीये, बरे वीजे पान । जबजे जीवने पासीये, वेणे सदा जैन नाम ॥ २६ ॥ सवसायी सह को पीये, मामेज नाय । पाप तणो मागे नहि, भोग भवानी माय ॥ २४ ॥ सहेज मील्या सो दुध परावर, मांग लीया सो पाणी । खेंच बीया सो रगत परावर, गोरख पोख्या वाणी ॥ २६५ ॥ सजन एषा माणीये, जेवा हुवामा कोष । पाये करीने ठेलीये, दोयम आणे रोप ॥ २६६ ॥ सहन इयकी में कही, मोवी म भाथ्यो हाथ । सागर को क्या दोष है, पीन हमारे भाग्य ॥ २६७ ॥ सत्य वचन और दीमता, परनी मात समान । एतेसे स्वर्ग नहि मीले, तो तुलसीदास जमान ॥ २६८ ॥ सत्य वचन बदता थका, पामे यश भरपूर । असत्यथी अते थशे, भूगाइ भरपूर ॥ २६९ ॥ संगत कीजे संतकी, निष्फळ कवी न होय । लोहा पारस फरससे, सोभि कंचन होय ॥ २७० ॥ संत यही परमारथी, मोटो जिनको मन । मृठी भर भर देत , धर्म रूपीयो धन ॥ २७१ ॥ संगत विचारी क्या करे, हृदय भया कठोर । नबनेजा पाणि चरे, पत्थर म मीने कोय ॥ २७२ । सरोबर जल तंबाल मणि, वृक्ष निशा ने नार । भोजन मेघवाहन प्रमुख, एसबी बलमसार । २७३ ॥ सायो बोध सज्जन रचे, दुर्जन देखे भूल । मूरख कधु माने नहि, हायो करे कबूल ॥ २७४ । साजु होय शरीर जो, सघळी वाते सुख । नहि तो माणु बहु छता, दिन दिन प्रत्ये दुस्ख ॥ २७५ ॥ शिर मुंडाये तीन गुण, सीरकी मीट गह खान । खामेक रोटी मीसे, कोक को महाराज । २७६ । सीस घृणावे चम्कीयो, रोमांचित करे देह । विकसित नयन, बदन, सदा, श्रोता रस दीये ह । २७७ ॥
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
प्रस्ताविक
संग्रहः
4॥११॥
शिखामण तो दइये तेने, जेने शिखामण लागे । वांदराने शीखामण देतां, सुघरीनो माळो भांगे ॥ २७८ ॥ सुम शीयाल ने काचबो, परघर पोहोळा थाय । समो आवे घर आपणे, तो अंग संकेली जाय ॥२७९ ॥ मुरतसे कीरत बडी, विना पंख उड जाय । सुरत तो जाती रही, कीरत कभी न जाय ॥ २८०॥ मुखीया दुःख देखे नहि, जमेल न जाणे भूख । भोजन त्यारे सांभळे, काळे ककळे कुंख ॥ २८१ ॥ सोनु रूपु सोनी चोरे, नंग बदले जडीयो । मोडा आवी चवेणु मागे, ए सुतार ने कडीयो ॥ २८२॥ सोये फलु हजारे का[, तेथी अधिक नीच जाणुं । जो पडे अंधेसे काम, तो लज्जा राखे सीताराम ॥२८३ ॥ सो बोगा सो बोगली, सो बोगणका बच्चा । गुरुजी मारे गप्पा, चेला जाणे सच्चा ॥ २८४ ॥ सो बोगा सो बोगली, सो बोगणका बच्चा । हकडो केवे गप्प, मींडो केवे सच्च ॥ २८५ ॥ स्त्री पियर नर सासरे, संजमिया स्थिरवास । ए त्रण होय अळखामणां, जइ कोइ करो तास ॥२८६ ॥ स्त्री तो पाकी बोरडी, होस सहुने थाय । सौने लागे वालही, मूलवी नावे काय ॥ २८७ ॥ हडफामां तो हडीयु काढे, पटारामां पाणा । जगो पूछे भगाने, काले शेना लेछु दाणा ॥ २८८ ॥ हंस सरोवर पीत कुण, विपत पडे उड जाय । साची प्रीत जलकमलकी, दोनु साथ मुकाय ॥ २८९ । हंसकी शी पीत कीजीये, जळ सुके उड जाय । साची भीत सेवाळकी, जळ मुके मुकाय ॥ २९ ॥ हंस बगला एकरंग, मान सरोवर मांहि, बगला दुढे माछली, इंसा मोती चाही ॥ २९१ ॥ हाथ घसे मुंआ हणे, जीमे तालु दीध । मरण वेलाये सांभरे, हा में धर्म न कीघ । २९२ ॥
H
॥११॥
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
हुं सुरखी खलु वत्तडी, ताणी नेह म तोड । कतुआरीना ताग जेम, जेम तुटे तेम जोड ॥ २९३ ॥ होण हार डिये बसे, विसर जाय शुद्ध बुद्ध । जो होणी सो होत है, बेसी उपजे बुद्ध ॥ २९४ ॥ ज्ञानी ध्यानी सुघड नर, तीनो रहेत उदास । खर घुबड मूरख पशु, सदा सुखी पक्षीराज ॥ २९५ ॥ ज्ञानीसे ज्ञानी मीले, तव रस लुटालुट । अज्ञानीको ज्ञानी मिले, तब होय माथाकूट ॥ २९६ ॥ विना विचारे जे करे, ते पाछल पस्ताय । काम बिगाडे आपणुं, जगमां बहोत हसाय ॥ २९७ ॥ विषयरूप अंकुरथी, टले ज्ञान ने ध्यान । लेश मदिरा पानथी, छाके जेम अज्ञान ॥ २९८ ॥ नारी विषनी वेलडी, नारी नागण रूप । नारी करवत सारिखी, नारी नाखे भवकूप ॥ २९९ ॥ ब्रह्मचर्य पालन थकी, सुंदर थाय शरीर । भाग्यवंत बलवंत तेम, ओजसवंत सधीर ॥ ३०॥ पाप घडो अधुरो हतो, त्यांमुधी रहे पुन्य । पुन्य नाशे द्रव्य क्या रहे, मुख रहे पछी शून्य ॥ ३०१॥ नारी वदन सोहामणुं, मीठा बोली नार । जे नर नारी वश पड्या, लुंटया तस घरबार ॥ ३०२॥ धन जोबन नररूपनो, गर्व करे जे गमार । कृष्ण वलभद्र द्वारिका, जतां न लागी वार ॥ ३०३ ॥ उदारता धननी करे, एवा लाखो लोक । टाणे शिर आगल धरे, एवो वीरलो कोक ॥ ३०४॥ साचो बोध सजन रुचे, दुर्जन देखे भूल । मूरख कर्जा माने नहि, डायो करे कबूल ॥ ३०५॥ सज्जन एवा कीजीये, जेवा कुवाना कोष । पाये करीने ठेलीये, तोय न आणे रोष ॥ ३०६।। भ्रष्ट करे भणनारने, उपजी आलस अंग । भक्ति करता भक्तने, करे भजनमां भंग ॥ ३०७॥ .
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री प्रस्ताविक
दुहा संग्रह:
॥ १२ ॥
साकर तजे न सरसपणुं, सोमल राजे न जेर। सज्जन तजे न सज्जनता, दुर्जन तज्ञे न बेर ॥ ३०८ ॥ अंधा आगळ आरसी, बहेरा आगळ गीत । मूरख आगळ रस कथा, र त्रणे एकज रीत ॥ ३०९ ॥ संपत देखी नवि राचीये, विपत पढे मत रोय । जिहां संपत विहां विपत है, कर्म करे सो होय ॥ ३१० ॥ कोटी कोटी जोडीने, धनी थाय धनवान । अक्षर अक्षर शीखता, ज्ञानी थाय विद्वान ॥ ३११ ॥ मन मरो माया मरो, मर मर गये शरीर । आशा तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर ॥ ३१२ ॥ अनुमोदनथी फल बधे, निंदायी घट जाय । सुकृतकी अनुमोदना, पाप निंदामां थाय ॥ ३१३ ॥ गुणवंता गंभीर नर, दयावान दातार । अंतकाल तक न तजे, धैर्य धर्म उपकार ॥ ३१४ ॥ संगत कीजे संतकी, निष्फल कदी न होय । लोहा पारस फरससे, सोभि कंचन होय ॥ ३१५ ॥ मान नहि अपमान नहि, एसे शीतल संत । भवसागर उतर पडे, तोडे जमका दंत ॥ ३१६ ॥ जेसे उबर के जोरसे, भोजन की रुचि जाय । तेसे कुकर्म के उदये, धर्मवचन न सुहाय ॥ ३१७ ॥ बहोत गई थोडी रही, मन मत आकुल होय । धीरज सबको मित्र हे, करी कमाइ मत खोय ॥ ३१८ ॥ विनय वेरीने वश करे, विनयथी बाधे माम । विनय कर्यो कामण कर्यु, विनयबशे आराम ॥ ३१९ ॥ गुण बोले निंदे नहि, ते सोभागी होय । अवगुण बोले पर तणां, ते दुर्भागी होय ॥ ३२० ॥ परनारी विपवेल है, नहि जिसका विश्वास । चाहत मूरख अङ्गनर, तिससे सुख की आश ॥ ३२९ ॥ मन अहंकार मूरख करे, मुजथी सघलु थाय । तेतो जूठु जाणजो, आप कर्मयी खाय ॥ ३२२ ॥
॥ १२ ॥
Scanned by CamScanner
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
पीति ऐसी कीजीये, जैसा टंकणखार । आप जले पर रीजवे, भांग्या सांधे हाड ॥ ३२३ ।। मन मेला तन उजला, बगला कपटी अंग । तासे तो कौवा भला, तनमन एक ही रंग ॥ ३२५ ॥ अभिमाने दुःख उपजे, अभिमाने जस जाय । मिथ्या अभिमाने कदी, जीवनो जोखम थाय ।। ३१५॥ चोसठ दीवा जो बले, वारे रवि उगंत । तस घर तोहे अंधारई, जस घर पुत्तम हुत ॥ ३२६ ॥ राज्यमोग संपत्ति सुकुल, विद्या रूप विज्ञान । अधिक आयु आरोग्यता, प्रगट धर्म फल बान ॥ ३२७॥ दुध पाणी जुदा करी, पीये छे जेम इंस । तेम सद्गुण शोधे गुणी, लेवा तत्त्वनो अंश ॥ ३२८ ॥ दुस्तर आ भवनिधि विषे, मोह मगर बलवंत । फेरवी गति गुफा विष, पीडा देत अनंत ॥ ३१९ ॥ उघाडो दीपक रखे, पतंग जेम जपलाय । तेम नारीना नेत्रमा, मूरख जन भरमाय ॥ ३३०॥ बादलना गर्जन थकी, श्वान हडकायु थाय । तेम स्वीना ठमकारयी, मूरख जन ललचाय । ३३१॥ धननी ज्यां लालच वधी, न गणे कुलनी लाज । दीकरी बेन गणे नहि, नमुणे दीन अवान ॥ ३३२ ॥ इजारो भेगा करी, लाखोमां ललचाय । अबजे पण संतोष नहि, उदर केम भराय ।। ३३३ ॥ राजा मंत्री मे सीपाइ, धनना भिक्षुक होय । लाग आवे मूके नहि, भूले भोला कोय ॥ ३३४।। माता के पिता रडे, रडे बहूला बाल । चाकर के शेठ ज रडे, तोय न छोडे काल ॥ ३३५॥ जेणे शुभ कारज कर्या, लइने सारो लाव । जरुर ते जीती गया, दुनिया मध्ये दाव ।। ३३६ ॥ समर्थ थइ राखे क्षमा, जुवान जीते काम । एज अधिक वखणाय छे, दाखे दलपतराम ॥ ३३७ ॥
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
मस्ताविक
सग्रह
॥१३॥
क्रोधी नरने दूरथी, करीये सदा प्रणाम । जे अडके जइ अग्निने, दाखे दलपतराम ॥ ३३८ ॥ क्रोधी जनने आशरे, करीये नहि विश्वास । ज्यां वावल ने बोरडी, रहो न दलपतराम ॥ ३४१ ॥ करीये चर्चा ज्ञाननी, अति उमंग धरी उर । पकडे रूप लडाइ, देखी खसीये दर ॥ ३४॥ साधु शब्दमां परखीये, विपत पडे घरनार । शूरा जब ही परखीये, जब नीकले तरवार ।। ३४१॥ कूप पडी मखु भलु, पीनु भलु विषपान । अनेक दुःखनी आपदा, नहि व्यभिचार समान ॥ ३४२ ॥ दुर्जन मुखमां दुर्वचन, सज्जन मुख मीठाश । सज्जन दुर्जन संगयी, लहे अधिक कडवाश ॥ ३४३॥ दुष्ट वजे नहि दुष्टता, कदी करीये सत्कार । नित्य दुध पाओ नागने, पण करडे कोइ वार ॥ ३४४ ॥ वाघ वेश्या ने वाणियो, व्याध वमुघापाल । मित्र नहि ए कोइना, काम सरे विकराल ॥ ३४५ ॥ नीरथी पाप टले नहि, जो मन मेल न जाय । खाल कुंडीनुं हांडलं, धोये उपर शुं थाय ॥ ३४६॥ लाम न दीसे लेश तो, रहे कुटे शृं थाय । दमनी पीडा पामीये, कांतो आंखो जाय ॥ ३४७॥ पीत विहां पडदो नहि, पडदो त्यां नहि पीत । प्रीत करी पडदो करे, ए नहि सजन रीत ॥ ३४८॥ आळस मुंडी भूतडी, व्यंतरनो बलगाड । पेसे जेना पंडमां, बहुधा करे बगाड ॥ ३४९॥ एक घडी आधि घडी, आधिौ पण आध । तुलसी संगत साधुकी, कटत कोटी अपराध ॥ ३५० ॥ क्षणभंगुर आ देहनो करवो शो विश्वास । पळमां काळ करे घणो, काया केरो नाश ॥ ३५१ ॥ चडती पडती सर्वनी, ए दुनियानी रीत । चंद्रकला शुदमां वधी, वदमां घटे खचित ॥ ३५२॥
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
आवे प्राणी एकलो, जाय एकलो आप । साथे पुत्र कलत्र नहि, साथे पुन्यने पाप ॥ ३५३॥ क्षण क्षण आवरदा घटे, घटे दिवस ने रात । आज करो हमणां करो, काल तणी शी वात ॥ ३५४ ॥ कादव कीट सम मानवी, लेश न कर अभिमान । हुं तुं आ संसारमा, ये दिनना मेमान ॥ ३५५ ॥ पूर्ण ज्ञानी जे जन हशे, ते गुण गंभीर थाय । सागर जल जुओ कदी, छलकायु नहि जाय ॥ ३५६ ॥ किंहां जन्म्या विहां उछर्या, किंहां लडाव्या लाड । तुलसी आ शरीर का, किंहां पडेगा हाड ॥ ३५७ ॥ दैव नचावे जेणी परे, तेम नाचे रंक राय । कुमारपाल नर सारिखा, परना धोवे पाय ॥ ३५८ ॥ विण पावकथी पर जले, अदेखातणु उर । अन्य तणी उत्कृष्टता, जोइ न शके जरुर ॥ ३५९ ॥ शके नहि गुण मेळवी, राखे हृदये रोष । अकलाइ पर उपरे, मिथ्या मुके दोष ॥ ३६० ॥ खीज्यो करडे कुतरो, भुख्यो करडे वाघ । विश्चासे करडे बागियो, दाग्यो करडे नाग ॥ ३६१ ॥ जे उगे ते आथर्म, फुले ते करमाय । जे उगे ते विणसे, जन्म्यो ते बली जाय ॥ ३६२ ॥ लोभे जग अंधो भयो, माने गयो विवेक । क्रोध करि तप बालीयो, दुःख लहे जंतु अनेक ॥ ३६३ ॥ मन विनाना प्रेममां, मजा न आवे लेश । लुण वगरनी रसवती, खाता न आवे टेश ॥ ३६४ ॥ जुगारी घर रिद्धडी, मर्कट कंठे हार । घेली माथे बेडलो, रहे केटली बार ॥ ३६५ ॥ मूरख जगना मानवी, शीख न माने सार । देता शीख देनारनु, रहे न मान लगार ॥ ३६६ ॥ विषधरनुं पय पानथी, विष कदि नव जाय । तेम मूरखने वोपथी, ज्ञान कदि नव थाय ॥ ३६७ ॥
S555
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
प्रस्ताविक दुहा संग्रह
॥१४॥
चंदम च) अंगने, गर्दभ गाय न थाय । मृरख नरना मन विषे, शाम कदि नप याय ॥ ३६८॥ ज्ञान समो कोइ धन नहि, समता समो नहि सुख । जीवित सम आशा नहि, मरण सम महि दुःख ॥ ३६९॥ जाण्यु तो तेहन खरु, जे मोहे नविलेपाय । सुखदुःख आवे जीवने, हरख शोक नपि धाय ॥ ३७० ॥ गुरु दीयो गुरु देवता, गुरु विना घोर अंधार । जे रुरु वाणीथी वेगला, ते रडवढीया संसार ॥ ३७१ ॥ उत्तम कुल नर भव लही, पाम्यो धर्म जिमराय । ममाद मुकी कीमीये, क्षण लाखीणो जाय ॥ ३७२॥ माता पिता ते जाणवा, जाणवा प्यारा मित्र । वरील तेने जाणवा, शीखवे धर्म पवित्र ॥ ३७३ ॥ किहां चंदन किंहा मलयागिरी, किंहा सायर किंहा नीर । ज्यु प्यु पडे विपत्तही त्युं त्यु सहे शरीर ॥ ३७४ ॥ मुता बेसता उठता, जे समरे अरिहंत । दुखियाना दुःख मांग, रेशे मुख अनंत ॥ ३७५ ॥ घर छोडी उपाश्रये, आच्या वेगे दोडी । भगवू चित्त चोटी, महि तो किम्मत कोडी ॥ ३७६ ॥ उद्यमना उमेदवारथी, जे नर हारी जाय । तेने नर नहि जाणवो, खर सम तेह कहेवाय ॥ ३७७॥ वगर बुद्धिए जोरथी, यतुं होय जो राज । वाघ वरु ने वांदरा, करत जगतमा राज ॥ ३७८ ॥ जे निज वल जाणे नहि, वरते पर आधीन । हायी अज्ञाने रहे, मावत आगल दीन ॥ ३७९ ॥ मधुर कथा रचना मधुर, बक्ता मधुर तेम होय । मधुर ए तो घे मधुरता, जो होय श्रोता कोय ॥ ३८०॥ समता रमता उर्वता, ज्ञायकता मुखभास । वेदकता चैतन्यता, ए सवी जीव विलास ॥ ३८१।। तनता मनता वचनता, जडता जड संमेल । लघुता गुरुता गमनता, ए अजीवका सब खेळ ॥ ३८२ ॥
॥१४॥
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
मायावी माणस तणी, केम प्रतित रखाय । मोर पीछे मधुरो लवे, साप सपुंछथी खाय ।। ६८३ ॥ आवल फुल अती फुटडा, पगे न पूजे कोय । चंपा फूल अमूल्य गुण, शिर चढे सहु कोय ॥ ३८४ ॥ वार वर्ष बाली बदले, तरुबर बदले शाखा । बुट्टापणामां केश बदले, लखण न बदले लाखा ॥ ३८५ ॥ काम क्रोध तृष्णा घणी, कंध लगा जे आहार । मान धन निद्रा बहु, दुर्गति जावनहार ॥ २८६ ॥ निद्रा आळस-परिहरी, करजे तत्त्व विचार । शुभ ध्याने मन राखजे, श्रावक तुज आचार ॥ ३८७ ॥ नर जे कडवा तुंबडा, गुणे करीने मीठ । ते माणस केम बीसरे, जेह तणा गुण दीठ ॥ ३८८ ॥ कृपण - कोथली - श्वान भग, दोनो एक समान । घालत ही सुख उपजे, नीकलत नीकसे प्रान ॥ ३८९ ॥ अवगुण ढांके गुण लहे, नव दे निठुर बान । माणस रूपे देवता, निर्मल गुण की खान ॥ ३९० ॥ घर नहि तो मठ बनाया, धंधा नहि तो फेरी । बेटा नाह तो चेला मुंडा, एसी माया गेरी ॥ ३९१ ॥ समकित श्रद्धा अंक है, ओर अंक सब शून्य । अंक जतन कर राखीए, शून्यशून्य दस गुण ॥ ३९२ ॥ मरना भला है उसका, जो अपने लीये जीये। जीता है वह जो मर चूका, इन्सान के लीये ॥ ३९३ ॥ नसों में रक्त भारत का, उदर में अन भारत का । करो में शक्ति भारत की, सभी सामान भारत का ॥ ३९४ ॥ अन्धकार है वहां, जहां आदित्य नहीं है । है वह मूर्दा देश, जहां साहित्य नहीं है ॥ ३९५ ॥ जगतमां जन्म लेता हा, हत्ती बांधी मुठी मारी। उघाडी लेइने हाये !, हवे हुं तो जमानो हुं ॥ ३९६ ॥ मनुष्य आ देह छे मोंघो, रमाचे कां गणी सोंधो। अरे ! शुं धमां उंघो, पलकां प्राण जावानो ॥ ३९७ ॥
RE
444444
Scanned by CamScanner
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
प्रस्ताविक
दुहा संग्रह
॥१५॥
जीवन दिन चारनुं चटकुं, नकामो मोह कायानो । उडी जावू अहा अन्ते, करीने त्याग कायानो ॥ ३९८॥ खणे पृथ्वी पडे खाडा, खणेलाओ पडे तेमां । नियम ए नाथनो मानी, शरण तुं श्री प्रभुनुं ले ॥ ३९९ ॥ न पीवायु खोयु, पण नव गयु पृथ्वी परथी । रह्यां तत्त्वो मीगं, उदधि कडवामां भळी जइने ॥४०॥ तमे छो हिंदना बेटा, अमे पण हिंदना जाया। बिरादर आपणे बन्ने, सकळने हिंदनो छाया ॥ ४०१॥ कदी तलवारनी धारे, भले गरदन कपावा दे । तथापि धीर धारीने, नीतिने ना लूटावा दे ॥ ४०२॥ छे वैधव्ये वधु विमळता, व्हेन ! सौभाग्यथी कइ । छे भक्तिमां वधु विमळता, व्हेन ! शृंगारथी कइ ॥ ४०३ ॥ नागणना सो बाळको, पण सिंहणजें एक । हजार तारामां शशी, पण ते एकज एक ॥ ४०४ ॥ जीवन जोबन राजपद, अविचळ रहे न कोय । जो दिन जाय सतसंगमें, जीवनका फळ सोय ॥ ४०५॥ हा ना अक्षर एक, जोतां मूल जानुं नथी । दीजे धरी विवेक, जीवन-मरण तणी जडी ॥ ४०६ ॥ भूख जुवे नहीं टाढो भात, तरस जुए नहीं धोबी घाट । उंच जुवे नहीं टूटी खाट, प्रेम जुए नहीं जात कजात ॥४०७॥ आवीने आ विश्वमां, कर्या न के सत्कर्म । जावू आजे नरकमां, त्यागीने सद्धर्म ॥ ४०८॥ जब लग नाता जगतका, तब लग भक्ति न होय । नाता तोडे हरि भजे, भक्त कहावे सोय ॥ ४०९ ॥ साधु एसा चाहीये, जैसा मूप सुहाय । सार सारको ग्रही रहे, थोथा देइ उठाय ॥ ४१०॥ परलोके सुख पामवा, कर सारो संकेत । हजी बाजी छे हाथमां, चेत चेत नर चेत ॥ ४११ ॥ जेना हृदयमा उच्च जीवननी झलक जागी नयी । व्यर्थ जीवन मानवीनु, जौंदगी मिथ्या धरी॥ ४१२॥ ..
॥१५
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
रुंए रुएकी जबानपर, ये सखुन ज्यारी है। जान प्यारी नहीं, दुनिया में वफा प्यारी है ॥ ४१३ ॥ मुसीबतके डर रंजके हालसे, बहादुरबदलते नहीं कालसे। खुदा ले या तू ले जान एक है, मगर बात एक और जवान एक हैं हुं तुंही वारु साधु जण, दुज्जण संग निवार । हरे घडी जल जल्लरी, मत्थे पडे प्रहार ॥ ४१५ ॥ नीच सरिस जो कीजे संग, चडे कलंक होय जस भंग । हाथ अंगार ग्रहे जो कोय, के दाजे के काळो होय ॥ ४१६ ॥ संपत्ति सहु वेहेंचे मली, विपत्ति न वेहेंचे कोय । संगत उनकी कीजीये, भांग्या मेरु होय ॥ ४१७॥ .. सजन ऐसा कीजीये, जामें लखन बत्तीस । भीड पडे भांजे नहि, संपे अपनो सीस ।। ४१८॥ सो सज्जन लख मित्र कर, ताली मित्र अनेक । सुख दुःख जामु कीजीये, सोलाखु में एक । ४१९ ॥ सज्जन एसा कीजीये, जैसी नीसी ओर चंद । चंद बिना नीसी आंघली, निसी बिना चंदा अंध ॥ ४२० । पठन गुनन कवि चातुरी, ए तीनो गुण सहेल । काम दहन मन वस करन, गगन चढन मुसकेल ॥ ४२१ ।। संपत देखी न हरखीये, विपत देखी न रोय । संपत छे त्यां विपत छे, कर्म करे ते होय ॥ ४२२॥" भूख्यो ब्राह्मण बगायो ढोर, चाप्यो नाग नासंतो चोर । चंड भांड ने मातो सांद, ए सातेयी उगरीये मांड॥ ४२३ ।। समजी पोते सुधरीये, सहुजन नहि सुधराय । पगे पगरखां पहेरीये, पृथ्वी नहि ढंकाय ॥ ४२४ ॥ बळतां घर पोतातj, तेनी पीडा टाळ । परनी तारे शी पडी, तुं तारु संभाल ॥ ४२५ ॥ पहेलुं ज्ञान पछी दया, दसवैकालिक वाण । ज्ञान विना किरिया करे, ते नवि होय प्रमाण ॥ ४२६ ॥ जेम पावक संजोगयी, कंचन निर्मल थाय । तेम वर जप जपवा थकी, क्लिष्ट कर्म मल जाय ॥ ४२७ ॥
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रस्ताबिक दुहा संग्रहः
॥ १६ ॥
समता सम सुख को नहि, एम भांखे भगवंत । भरतादिक भवमल वर्मा, समता चिच घरंत ॥ ४९८ ॥ अनंत सीर्येकर कहे, रागद्वेष भव मूल । रागद्वेषने जीतना, समता के अनुकूल ॥ ४२९ ॥ आभव सेवी आतमा, पामे दुःख समुदाय । वीतराग पूजा बिना, चउ गति गोषां खाय ॥ ४३० ॥ राज्य रमा दुर्लभ नहि, दुर्लभ नहि पुर धाम । अति दुर्लभ छे जीवने, बोधि रत्न अभिराम ॥ ४३१ ॥ जन्म जरा मरणे करी, भरीयो आ संसार । जे प्रभु आणा मानशे, तस नहि बीक लगार ॥ ४३२ ॥ श्रुती दुर्मति दुरटले, श्रुतथी जाय विकार । श्रुतथी व्रत संजम पछे, श्रुतयी भवजल पार ॥ ४३३ ॥ ज्ञाने संशय दुरटले, ज्ञाने पाठिक जाय । ज्ञाने निर्मळ आसमा, ज्ञाने शिवसुख धाय ॥ ४३४ ॥ विनय वडो संसारमां, विनय धर्मनो सार । विनये विद्या आवडे, विनये जस विस्तार ।। ४३५ ।। मंत्र फले जग जस मले, दुर्गति दुःख पलाय । ब्रह्मचर्य प्रभावयी, सिंहादिक भय जाय ॥ ४३६ ॥ शालिभद्र धन्नो तथा उत्तन चरित्र कुमार । सुपात्र दान प्रभावयी, पाम्या रिद्धि अपार ॥ ४३७ ॥ जेम गिरिमां सुरगिरिबडो ज्ञानमां केवल ज्ञान । तरुगणमां सुरतरु वडो, दानमां अभय प्रधान ॥ ४३८ ॥ बडा हुवा तो क्या हुवा, बडी लंबी खजूर। पंथीकुं छाया नहि, फल रह गये दूर ॥ ४३९ ॥ मुखे पजण पंजता, क्या कुमरुडी धाइ । पींजण वेचके बंधुक ली, गपके गोळी खाइ ॥ ४४० ॥ विद्या ल्हो वरसा लगी, बुद्धि विण न काम । हेतु समज्या बगरनुं, ए पोपटीयुं ज्ञान ॥ ४४१ ॥ भरवगडामा लुंटता, कोळी ठाकर भील । भर नगरीमां लुंटता, वेश्या वैद वकील ॥ ४४२ ॥
॥ १६ ॥
Scanned by CamScanner
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
दुस्खयां तो धीरज रहे, मुखमा मद नवि थाय । या मंत्र नपाक्षरी, आपण दिन वही जाय ॥ ४४३॥ अवसर परण निकटणो, जब जाणे चुध लोय । तब विशेष साधन करे, सावधान अति होष । ४४४ ॥ धर्म अर्थ अरु काम शिव, साधन जगमें चार । व्यवहारे व्यवहार लख, निचे निज गुणधार ॥४४५॥ मूर्खकूल आचारथी, जाणे न धर्म सदीव । वस्तु स्वभाव धर्म सुधी, कहत अनुभवी जीव ॥ ४४६ ॥ खेह खजाकुं अरथ, कहत अज्ञानी जेह । कहत द्रव्य दरसावकुं, अर्थ मुबानी तेह ॥ ४४७॥ दंपती रति क्रीडा प्रत्ये, कहत दुरमति काम । काम चित्त अभिलाखकुं, कहत सुमति गुणधाम ॥ ४४८ ॥ इह लोककुं कहत शिव, जे आगम इग हीण । बंध अभाव अचल गति, भाखत नित्य प्रवीण ॥ ४४९ ॥ एम अध्यातम पद लखी, करत साधना जेह । चिदानंद जिन धर्मनो, अनुभव पावे तेह ॥ ४५० ॥ समय मात्र प्रमाद तज, धर्म साधना मांय । अथिर रूप संसार लख, रे नर कहीये ज्यांह ॥ ४५१ ॥ छिजत छिन्न छिन्न आउखो, अंजली जल ज्यू मीत । काल चक्र माथे भमत, सोबत कहा अभीत ॥ ४५२॥ तन धन जोबन कारमा, संजाराग समान । सकल पदारथ जगतमें, सुपन रूप चित्त जान ॥ ४५३ ॥ मेरा मेरा क्या करे, तेरा हे नहि कोय । चिदानंद परिवासा, मेला हे दिन दोय ॥ ४५४॥ एसा भाव निहारतां, कीजे ज्ञान विचार । मिटे न ज्ञान विचार विण, अंतर राग विचार ॥ ४५५ ॥ ज्ञान रवि वैराग्य जस, हिरदे चंद समान । तास निकट कहो केम रहे, मिथ्या तम दुःख खाण ॥ १५६ ॥ आप आपके रूपमें, माणत ममत मल खोय । नित्य रहे समता रसि, तास बंध नवि कोय ॥ ४५७ ॥
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री प्रस्ताविक
दुहा संग्रह:
॥ १७ ॥
परपरणति पर संगनुं, उपजत बिनसत जीव । मिथ्या मोह पर भावको, अचल अभ्यास सदिव ।। ४५८ ॥ जेसे कंचुकी त्यागसें, विनसत नहि भुजंग । देह त्यागथी जीव पण, तेसे रहत अभंग ॥ ४५९ ॥ जो उपजे सोतुं नहि, विनसे ते पण नांहि । छोटा मोटा तुं नहि, समज देख दिल मांही ॥ ४६० ॥ वरण बांखतो मे नहि, जात पातकुल रेख । राव रंक तुंही नही, नहि बाबा नहि भेख ॥ ४६१ ॥ तुं सौमे सौथी सदा, न्यारा अलख सरूप । अकथ कथा तेरी महा, चिदानंद चिद रूप ॥ ४६२ ॥ जनम मरण जिहां है नहि, इतभीत लवलेश । नहि शिर आणा नरिंदकी, सोही आपणा देश ॥ ४६३ ॥ विनाशिक पुद्गल दशा, अविनाशी तुम आप। आप आप विचारतां, मिटे पुन्य अरु पाप ॥ ४६४ ॥ बेडी लोह कनकमयी, पाप पुन्य जग जाण । दोय थकी न्यारा भला, निज स्वरूप पहिछान ॥ ४६५ ॥ जुगल गति शुभ पुन्यथी, इतर पापथी जोय । चारो गति निवारीए, तब पंचमी गति होय ॥ ४६६ ॥ पंचमी गति बिन जीवकुं, सुख तिहुं लोक मोजार । चिदानंद नवि जाणजो, एह मोटो निरधार ॥ ४६७ ॥ एह विचार हिरदे करत, ज्ञान ध्यान रस लीन । निर विकल्प रस अनुभवे, विकलपता होय छिम ॥ ४६८ निर विकल्प उपयोगमें, रहे समाधि रूप । अचल ज्योत जलके विहां, पावे दर्श अनूप ॥ ४६९ ॥ देख दर्श अद्भूत महा, काल त्रास मिट जाय । ज्ञान जोग उत्तम दशा, सद्गुरु एह बताय ॥ ४७० ॥ ज्ञानालंबन प्रौढ ग्रही, निरालंबता भाव । चिदानंद नित्य कीजीये, एही ज मोक्ष उपाय ॥ ४७१ ॥ थोडा सामे जाणजो, कारज रूप विचार । कहत सुनत कछु ज्ञानको, कबू न आवे पार ॥ ४७२ ॥
॥ १७ ॥
Scanned by CamScanner
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
में मेरा ए भाषयी, वधे राग अरु रोष । राग रोस जो लोहिए, तोलों मिटे न दोष ॥ ४७३ ॥ रागद्वेष जाई नहि, वाकुं काल न खाय । काल जीत जगमें रहो, एही ज मोक्ष उपाय ॥ ४७४ । चिदानंद नित्य कीजीये, समरण सासोसास । बखत अमोलख जात है, खास खबर नहि वास । ४७५. पुरुषे सर्व कला साधवी, कीजे वात जे होय अनुभवी । पुरुष वर्गु जीव्यु प्रमाण, समय देखीने साधेशान । ४७६ । पालपणथी विद्या अभ्यास, यौवन पाम्ये भोग विलास । बुद्ध वये मुनिव्रत आदरे, अंतकाले ते दुस्तर तरे।४७७॥ परवीश वर्ष विद्या अभ्यास, वर्ष पचास लगे भोग विलास । तेह उपर मुनिव्रत आदरे, अंतकाले ते दुस्तर तरे। ४७८ ॥ वली बली नहि मानुष्य जन्म, वली विशेष तरतम कर्म । रुडी मति आदरतां धर्म, अनेक जन्मना छुटे कर्म ॥ ४७९ ॥ घन शीयल तप भावे करी, सुण राजा जेणे मती आदरी । परमेश्वरनी भक्ति करेय, भव बंधन छुटे नर तेय ॥४८॥ पटदर्शन मांहे एक देव, जूजूआ नाम अनंता एव । मूल धर्म दया व्रत धरी, साधो जन्म मुबुदे करी॥४८१॥ सर्व विद्या तणो प्रमाण, पालो जीव दया बंधाण । सुगो भैरव नृप उत्तम गति, भगवंत भक्ते होये सद्गति । ४८२ ॥ तीरथ यात्रा कीजे अभिराम, ए मन रहेवानां छे ठाम । जो मन क्षण एक भक्ति थीर रहे, परमलोक माप्ति कवि कहे ॥४८३॥ मन चंचल न रहे क्षण ठाय, ते कारण कीजे उपाय । पटदर्शन उपाये भक्ति, व्यक्त भक्ति करी विचारो युक्ति ॥४८४॥ एम जाणीने कीजे सत्य, जेम पामी जे उत्तम गत्य । मोटो धर्म दया बंधाण, अनंत जन्मनां टले संघाण ॥ ४८५ ॥ अंतकाल जोगीश्वर ध्यान, कीजे तो गति होये मान । सर्व भेद राजा प्रत्ये कही, कोक देव आव्यो घरे सही॥४८६ ॥
बे घडीनी मोज
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
मस्ताविकास
संग्रह
॥१८॥
ताव कहे तुरीयामां वसु, गलकु देखी खडखड हस । जेने घेर जाडी छास, तेने घेर माहरो वास ।। ४८७ ।। फुट डोडाने काकडी, उपर खाधु दंही । ज्वर संदेशो मोकछे, खाटलो पार्यो के नही॥४८॥ भींडा तो भारे पडे, तुरीयु लावे ताव । वालोळो अति वापडी, नीम्ब नीरोगी साव ।। ४८९॥ कारेले कर कर घणी, वायु करे गवार । गीलोडे बुद्धि घटे, नीम्ब नीरोमी साव ॥ ४९० ॥ तुरीयु कहे हुं वांकुं चुकुं, माहारे दीले के सळी । माहारा खावामा स्वाद करे तो, माख लींचु ने मरी ॥४९१॥ कोलु कहे हुं गोळ गोळ, माहरा दीले छे छोल । माहारा खावामां स्वाद करे तो, नाख मेथी ने गोल ॥ ४९२॥ कारेलु कहे हु कडधुं बडवू, माहारे माथे चोटली । जो खावानी मजा करे तो, करो रस ने रोटली ॥ ४९३ ।। दुधी कहे हुँ लांबी लीसी, माहरा दीले छे छाल । माहारा खावामां स्वाद करे तो, नांख चणानी दाळ ॥ १९४॥ घउं कहे हुं रुडो दाणो, मारे माथे चीरो । मारी खबर क्यारे पडे के, बेन घेर आवे वीरो ॥ ४९५॥ घउं कहे में रातो मातो, मारे माथे ली। माहारी खबर तो पडे, जो होय गोळ ने घी ॥ ४९६ ॥ घउं कहे हुँ रातडीयो, माहारे माथे लींटो । माहारुं भलापणुं क्यारे जाणो के, घी गोळमां लइ वींटो ॥ ४९७॥ बाजरो कहे माहारो उचो छोड, माहरे माथे टोपी । माहरो गुण क्यारे जणाय के, खाय दुध ने रोटी ॥ ४९८ ॥ वाजरो कहे में लीलो पीळो, माहारे माथे टोपी । माहारी खबर तो पडे, जुवान घडे रोटी ॥ ४९९ ॥ बाजरो कहे हु लोलुडो, माहारे लांचा पान । घोडा पांखाळा बने, बुड्डा बने जुवान ॥ ५००॥ बलिहारी तुज बाजरी, जेना मोटा पान । घोडे पांखो आवीयो, युवा थाय मुवान ॥५०१॥
॥१८॥
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
धोळढी, माहारे मात्र
पु
नद । बेचार महिना मनपढे मांदो ॥५:
छासठीयो कहे हुं घोळो मोळो, माहारे माथे बुरो । माहारी खबर तो पडे, जो होय घेर दुजाणो ॥५०२॥ जार कहे हुं धोढी, माहारे माथे बुरु । माहारु भलपणुं क्यारे जाणो, के काळ दुकाळमां हुं पुरु ॥ ५०३ ॥ मग कहे हुं लीलो (काळो) दाणो, मारे माथे चांदु । बेचार महिना मने खाय तो, माणस उठाडु मांदु ॥ ५०४ ॥ मग कहे हुं लीलो पीळो, माहरे माथे चांदो । माहरी खबर तो पडे, जो माणस पडे मांदो ॥५०५॥ चोखाकहे मेरा अच्छा खाना, मेराभरोसे गाम नजाना ।खीचडी कहे में आवत जावत, रोटी कहे में धामपहोंचावत ॥५०६॥ चोखो कहे हुं घोलुडो, मारे माथे चांदी । माहरु मलापणुं क्यारे जाणो, के डोसी पडे मांदी ॥ ५०७॥ दाळ भातका सुतराखाना, मेराभरोसे गाउ मत जाना। खीचडी कहे में आवत जावत,रोटी कहे में मजल कपावत ॥५०८॥ मकाइ कहे हुँ झीणो दाणो, मारे माथे चोटी। माहरी खबर क्यारे पडे के, घेर दुजे शोटी ॥ ५०९॥ मकाइ कहे मने झीणी दळी, कर्मसंयोगे वालोळ मळी । मुखे पेयाने पेटे दाम, मक्काइ कहे ए महारु काम ॥५१॥ मक्काइ कहे हुँ झीणो दाणो, माहारे माथे नाकु । मारी खबर क्यारे पडे के, घोड़े आवे थाक्युं ॥५११॥ कोड कहे हुँ राती माती, माहारे माथे टीली । हाय पग तो उधी रहे, सुंठ थाय दीली ॥ ५१२ ॥ वाल कहे हुं मोटो दाणो, घणा लाकडा बाळु । चार दिवस जो मने सेवे तो, सभामां बेसतो टाल्लं ॥५१३॥ चीणो कहे हुं चीपटडो, नवदाणाथी नीचो । माहरुं भलापणुं क्यारे जाणो, के वरसाद थाय ओछो ॥५१४ ॥ कोदरा कहे माहारो खडदाणो, माहरे माथे छोडां । माहरो खप क्यारे पडे के, वरस आवे खोडां॥५१५॥ लांग कहे हुं लांबो दाणो, वचमां एक ठेको । वे चार महीना मने खाय तो, लाकडीनो जलावू टेको ॥५१६ ॥
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
प्रस्ताविक
संग्रह
॥१९॥
शीयाले सोरठ भली, उनाळे गुजरात । बरसावे वागड भली, कछडो बारे मास ॥५१७ ॥ एक सवाया सवा, घरमां बेठा लवा । लवा खाय कढी, ये सवाया अढी ॥५१८॥ एक सवायु सवा, चणा लीधा नवा । तेनी कीधी कढी, बे सवाया अढी ॥५१९ ॥ एक दोङ दोढ, पथारीमा पोढ । पथारीमा मन, बे दोढाने तन ॥ ५२० ॥ एक अदीयु अढी, पोपट गया पढी। पोपटे मारी चांच, बे अढीयाने पांच ॥५२१॥ एक अढीयु अढी, कुक्कड बीलाडी बढी। कुकडे मारी चांच, वे अढीयाने पांच ॥५२२ ॥ एक उंछु उंठ, घरमा पेठे उंट । उट करे छे वात, वे उठाने सात ॥ ५२३ ॥ पंदर एक पार, पाढी करे हुमर । पाडी पाडे चीस, पभरना दुना त्रीस ॥ ५२४ ॥ बाबी एकु वावी, घमां रोटली चावी । घंउनी रोटली संवाळी, वावी दु चुम्माली ।। ५२५ ॥ चाली एकु चाली, बावे घोडी पाळी । घोडी गइ बेसी, ने चाली दुऐसी ॥ ५२६ ।। प्रथम धान्यने बीजे धन, बीजे स्त्री ने चोथे तन । पांचमें होय पशुनो संच, लखाय कागळमां श्रीपंच ॥ ५२७॥
गुरुशिष्य-समस्या-प्रश्नोत्तर पान सडे घोडा हठे, विद्या विसर जाय । अगारे रोटी जळे, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५२८ ॥ फेरव्या विना कण कोठारे सडे अने, कांसु कटाइ जाय । जोगी नर झांखो पडे, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५२९ ॥ राख विना आंबा करे लग रही, भर कर सणे जाय । डोबु दोवा दे नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५३० ॥ बुद्धि विना
M॥१९॥
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
5
भरे चोमासे गढ पडे, घोडा घास न खाय । छते पलंगे भोंय सुवे, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५३१ ॥ पाया विना छते ओजारे चाले नहि, गंजीफे न रमाय । आण पाण ना थइ शके, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५३२ ॥ आवड्या विना मोटुं मोती मुलकमां, सरोवर पीठ न जाय । रावत भागे राडमां, कहो चेला क्यु थाय॥ ५३३ ॥ पाणि नहि सरोवर मोटु पाणी गयु, परजा रुठी जाय । लीयो शाक अमथो रह्यो, कहो चेला शुं थाय ॥ ५३४ ॥ पालि नहि उभावाथी थरहरे, चरखे रु नवि थाय । महीसी दुधे उतरे, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५३५॥ वारि नहि पाक साखी भुखे मरे, भेंस गइ छटकाय । लखतां ओलवांकी लखी, कहो चेला क्युं थाय ॥५३६॥ पाडी नहि घोडो घोडी न हाथीयो, चोर ढंढोता जाय । आइ कमाणी फरी गइ, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५३७॥ जाग्यो नहि घोडे घास न बोटीयो, चाकर रुठो जाय । छते पलंगे भोंये सुये, कहो चेला क्युं थाय ॥५३८ ॥ पायो नहि कंही धुंओ न नीसरे, मोटो वाय न जाय । तीरा मछी वही गइ, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५३९ ॥ जाली नहि काप्यो तुटे बल घटे, खीचड लुखो खाय । कामण नेह वधे नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥५४०॥ चोपड नहि अंकारे हल वहे, पग अडवाणे जाय । ढाढी गावे एकलो, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५४१ ॥ जोडी नहि घर थकी घोडी गइ, गइ अणदोइ गाय । नटी शणगार सजे नहि, कहो चेला क्युं थाय ॥५४२॥ वाली नहि बपैयो पीयु पीयु रडे, खेती सुकाइ जाय । पालपंथी पाछो पडे, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५४३ ॥ पाणि नहि घर आण्यो छुट्यो पशु, वात होवे बीत जाय । विना केश छुटा पडे, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५४४ ॥ बांध्या नहि राजा राज विणस्सियो, दीवे तेजी न थाय । मोमे बेठा सास गयो, कहो चेला क्युं थाय ॥५४५॥ दीवेल नहि
HERS5
-ॐॐन
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
प्रस्ताविक दुहा संग्रह
॥२०॥
मुकी वस्तु जडे नहि, चेटक भुली जाय । लरूतां खोटु लखी गयो, कहो चेला क्युं थाय ॥५४६॥ मुरता नहि घर आयो सऊन गयो, घोडो दोडत जाय । गाढ बंध ढीला पडया, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५४७॥ ताणे नहि मेळ भला शोभे नहि, गामज खावा धाय । हाट श्रेणी शोभे नहि, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५४८॥ वसति नहि दान वात जाणे नहि, धर्म द्वार नहि जाय । तप कर्यो निष्फळ गयो, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५४९ ॥ भाव नहि सज्जन लागे दुरजना, मातपिता न सोहाय । घर त्रिया रूठी फरे, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५५० ॥ हेत नहि दीवे पतंग झपी मरे, परणी परदेश जाय । अणघटता घणा करे, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५५१ ॥ लोभे करीने छते पलंगे भोंय सुवे, घडो छलक्यो जाय । छते डगले टाढये मरे, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५५२ ॥ भो नहि मोटुं शहेर वसे नहि, काया क्षीण ज थाय । अडोदल पाछो हठे, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५५३ ॥ राजा नहि घोडो तो दुर्बल थयो, नोकर स्ठो जाय । विक्षुक तो मुंडो वदे, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५५४ ॥ पाम्यो नहि निज त्रिया अडची फरे, परवज कोरा जाय । मोटा सुत वहाणे फरे, कहो चेला वयं थाथ ॥ ५५५ ॥ संपत्ति नहि खेतर चोरे भेलीयो, गामे चोरी बहु थाय । ताकी दाण आवे नहि, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५५६ ॥ चोकी नहि हाथ चूडी शोभे नहि, अमल चडा न थाय । आप्यो केस खपे नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५५७ ॥ रंग नहि
आंबो तो खाटो लगे, गुमडे पीडा थाय । भर्यो घडो फाटी गयो, कहो चेला शुं थाय ॥ ५५८ ॥ पाक्यो नहि गाये पण शोभे नहि, कूवे नीर न थाय । नवमो ग्रह शोभे नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५५९ ॥ सीर नहि जाडे फल नवि नीपजे, त्रिया गर्भ नवि थाय । वाडी भली शोभे नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५६० ॥ फूल नहि
॥२०॥
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
एक छोड एवो जेना, भाला जेवडां फळ । शाकनो ए राजा छे, कहे तुं क्यु ए फळ ॥ ६२० ॥ भीडो सुरतर्नु उधीयुं, मुंबइनी जात । कतार गामकी कतारी, वखणाय भली भात ॥ ६२१॥ पापडी लांबी लांबी लाकडीने, झाड उपर लटके। तोडी लोक शाक करे, मारी मारी पटके ॥ ६२२ ॥ सरगवानी भींग लीली लीली सळीयो, ने गांठे गांठे चोर । चोर चोरन तो शाक थाय, छोड खाय ढोर ॥ ६२३ ॥ चोळा फळी अणीवाळा आंगळग, तोडी लोक खाय । तरवानी जातनां, शाक तेनुं थाय ॥ ६२४ ॥ गवार लीलो लीलो गोलो, ने अंदर लाल मेवो । लालम लाल लालम लाल, बाळको खावा आवो ॥ ६२५॥ तरबुच मेरु जेवु पतराल, ने बने शाकनो हलवो । बीन सतारनो बावो, कमंडलामा हलावो ॥ ६२६ ॥ दुधी गोळ गोळ कोठीमढुं, धरतीमां थाय । तळी करे काचली, तेन शाक करी खाय ॥ ६२७ ॥ बटाका लीला रगा पीळा रगा, आव्यारे परदेशी सगा। राखशो तो रहीशू, नहि तो त्रण मासे जशुं ॥६२८ ॥ केरी मेश वीयाणी पाडो पेटमां, दुध दरबारमा जाय। चतुर हो तो समजी लेजो, मूरख गोयां खाय॥६२९ ॥ केरी बापे जन्मी बेटडी, वेटीये जन्म्यो बाप । ए वरत तमे उकेलजो, बेटी भली के बाप ॥६३०॥ केरी इंडं हतुं त्यारे बोलतुं, बरच बोटे नहि । बब्बे जुग वही गया, ब्रह्माने मालुम नहि ॥६३१॥ नालीयेर तपेलामा तपेलं ने, मांहि कलंकी घोडो। मारु उखाणुं कहे तेने, आपु सोनानो दोरो॥६३२॥ नालियेर वनहरति-वनफरति, सवा लाख चुनीये जडी हती । उत्यापन बखते श्री नवनीत, पियाजीने धरीती ॥६३३ ॥ दाडम गरम देशनी दीकरी, माथे राखी टोपली। पेटमा राखे छोकरो, तेनी किम्मत पादोकडो ॥६३४ ॥ खारेक
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री प्रस्ताविक दुहा संग्रहः
॥ २३ ॥
घो ने धमक दीये, लही चढयुं सोले । चतुर होतो चेतशो, मूरख कांइ न बोले ॥ ६३५ ॥ एलची पीयु जाजो पाटण शहर, बहोरजो हलदर ने हीर। एक चीज एवी बहोरजो, जेने माथे चार शींग ॥ ६३६ ॥ लवींन नगरमा नागी फरे, वनमां पहेरे चीर । ते तो तमे लावजो, महारी सगी नणंदना वीर ॥ ६३७ ॥ सोपारी छ माणसनुं साटवेल, माणसनुं शुं पडयुं । ताणीने बांधी गांसडी, भांगीने भ्रुको कर्यु ॥ ६३८ ॥ नागरवेलना पान कोणे हीमालो सेवीयो, कोणे सेवी आग। कोणे करवत मुकाबीया, कइ राणीने काज ॥ ६३९ ॥ काथो चूनो सोपारी माथा केरो गोफणो, हैया केरो हार । दीने करूं दीकरो, राते करु भरथार ॥ ६४० ॥ साडलो [ नागरवेलीने काजे आद्याक्षर विण जगजीवाडण, अंत्याक्षर विण मीढुं । मध्याक्षर विण सहु संहारण, ते में नजरे दीडं ॥ ६४१ ॥ काजल अंग काळु दांत उजळा, चाले घम्मर चाल । सासु बहुने दीकरी, ए त्रणनो एक भरथार ॥ ६४२ ॥ चूडलो एक नरे नरने गल्यो, तेथी शोभे तन । ए तो उत्तम जन गणो, समजो तमे सज्जन ॥ ६४३ ॥ डगलो
कर शोभे नहि मुद्रिका, शिर छत्र नहि तात । ताप हरे जाता नहि, ते छे जग विख्यात ॥ ६४४ ॥ छत्री कुत्ता मारण जगतरण, अडवडीया आधार । कथा तुं मत वीसरे, होंकारे हथीयार ॥ ६४५ ॥ लाकडी लाकडानो बांकडो, घडनो आटो खाय । एक तमाचो आपुं तो, भों भों करतो जाय ॥ ६४६ ॥ ढोल जीव विनानुं जानवर, दो मुख प्रत्यक्ष दीठ । पीठ खवरावी पीढीये, बोले मधुरो मीठ ॥ ६४७ ॥ मृदंग देका जेसा दडदडे, ने पत्थर जेसी काया । वानर जेसा पुंछ लगाया, देखो जनावर केसा ॥ ६४८ ॥ जंजरी चोखंडी नगरी बनी, छ चार दरवाजा । सोळ राजा ने सात सीपाइ, द्यो उत्तर महाराजा ॥ ६४९ ॥ सोगठाबाजी
॥ २३
Scanned by CamScanner
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
घर खरच बांध्या पणा, पारे लाभ न थाय । लेणुं पाछु जडे नहि, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५६१ ॥ अविचार्यु करे द्वारे तालनवि उघडे, मंत्र सिद्ध नघि थाय । दीठी वरतु थाये नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५६२ ॥ कुंची नहि नारी नेत्र शोभे नहि, अक्षर फीका लखाय । घडाउ घाट शोभे नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५६३ ॥ शामता नहि छते ओजार चाले नहि, गंजीफे न रमाय । घे कुतरा बाजी मरे, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५६४ ॥ पार्नु नहि मोल (पाक) सारो पाके नहि, चोर सबी अकळाय । मेमान मन रीझे नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥५६५ ॥खातर विना बावडी परवडी, लो ल्याणुं गाम । लगीरा पीपळा, वश्च एकज पान ॥ ५६६ ॥ जीभ काळो घोडो कमकाबरो, नगरी जोतो जाय । सवा लाख टका आपु, पण तेर्नु मूल नहि थाय ॥ ५६७ ॥ आंख सोपारी जेवडं सारिंगड, तलनो श्रीजो भाग । ए सारंग ये रत्न गल्यां, एक धरती ने बीजुं आम ॥ ५६८॥ कीकी नाकाशानी दीकरी, भीताशाने दीधी। पांच भाइ दोडचा त्यारे, वे भाइये लीधी॥ ५६९ ॥ नाकनी लीट
अमारा सगरण ओडण गोरण, ईशं जाणे भाइ वासु । गाडा हेतुनावापनीयर, मारा सगाधणीनी सामु॥५७०॥ भाइ-बेना नहि सगो नहि सागयो, रेडो देखी रोइ । एना वाफ्नो बनेवी, मारो सगो नणदोइ होइ ॥ ५७१ ॥ मा दीकरो मा दीकरी चे माथु ओळे, वे जण पासे आवे । एक कहे महारो बाप, बीजी कहे महारो बाप ॥ ५७२ ॥ ससरो जमाइ गोपीने घेर गोपी आवी, सांभळ गोपीजी । बार हाथर्नु तुंबडु, ने तेर हाथर्नु बी॥ ५७३ ॥ आडहर अने आडी वारसो पत्ता ने बारसो उधा, बारसे बावन वीर । महारुं वरत वरते तेने, आपुं सोनानो चीर ॥ ५७४ ॥ नळीयां तपेलामा तपेलं, मांहे कलंकी घोडो । खोलाय तो खोलो, नहि तो बेठा माथु फोडो॥ ५७५ ॥ ताल्लं
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
प्रस्ताविक
संग्रहः
॥२१॥
गोळ गोळ फरती गाय, फरती फरती गाती जाय । दाणा दाणा खाय, पण पेट नहि मराय । ५७६ । घंटी पत्थर मटी थइ मेमदा, भोजन करतां गायं । एनुं अडधु अंग फुदडी फरे, तेनुं एलु सहु कोइ खाय ॥ ५७७ । घंटी चार तमुनु छोडीयु, जड भराव्यु ढुंठे । चतुर होय तो चेतजो, मृरख खाशे गोथे ॥ ५७८ ॥ घंटीनी पाटली हल हळवू ने जमीन पातळी, वावनारो चतुर मुजाण । हाथे वाव्यां ने हैये लण्यां, तमे समजो सहु सुजाण । ५७९ ।
हळ कहेतां कलम, जमीन कहेतां कागळ, हैये लण्यां कहेतां अक्षर वांचो एक जनावर ऐड, तेनी चांच बोले चैड । तेनो सरीयो सरदार, तेनी मूडी महदाल ॥ ५८० ॥ वरुनी कलम चतुरा चंचल चालती, थाकी गइ को दीस । पाछी लागी दोडवा, ज्यारे छेदु शीप ॥ ५८१ ५ वस्नी कलम इन्तासा मुनि राजा, इंतासा पूंछ । दोड जाय मुनिराम, पकड लावे पूंछ ॥ ५८२ ॥ सोय अने दोरो एक रांड चंदु मंदु, पहेरे इसका वाघा । वाघा पहेरी चटका करे, अंग बघा उघाडा ॥ ५८३ ॥ सोय अने दोरो अग्नि कुंडमांथी नीकळी नारी, जळ विना तो डुबकी मारी। पोते तरे ने पीयुनेतारे, एवात राजा भोज विचारे, सुंदर सरोवर जळ भयु, तेमां बुडे न कोय । तमो आवो त्यां मुघी, त्याग ते महारे होय । ५८५॥ दर्पण पांच उतनी पुतळी, मुख लाढाना दंत । नारी संमे नित्य रमे, चतुर विचारो संत ॥ ५८६ ॥ सांबेलु एक नारी दो घाघरा, छबके नाडां छो । माथे फरके पुंछडी, तेनो उत्तर दो। ५८७॥ त्राजवां छ पगनी चरकली, बे ताज बुजे । पेट वच्चे पुंछडी, एर्नु कांइ मुजे ॥ ५८८ ॥ त्राजवां पग विना इंगर चढे, मुख विना खडखाय । राजा पुछे वजीरने, ए कयु जनावर जाय । ५८९ ॥ देवता
EEKEष्टकमटर
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
गोरी पातळी गोरी पुतळी, नदीये नाचा जाय । गोरीनी आंखमां दीवा बळे, मोरी चौटामा धेचाय। १९०दीवासळी नानुं तो फूल जेवहूं, पूंछे पीतुं नीर । ते पाठवू मारी बारीये, आवशो सुंदर धीर । ५९१ । दीयो अग्नि कुंडमांधी नीकळे, भमर कुंडमां जाय । पंडित पुछे पंडितने, फुल वेलाने खाय ॥ ५९२ ॥ दीनो उंचं तो उंट जेवहूं, नदीये न्हावा जाय । जेनी पांखडीये दीवा बळे, ते हाटो हाट वेचाय । ५९३ । दीवासळीनं बोयु कट कट कणसलं, नाना मोटा पग । मोटो चाले बार गाउ, नानो चाले डग । ५९४ । घडीयाळ वाचा विण बोल्या करे, चाले छे विण पग । कांटा फ्ण वागे नहि, तेने जाणे बधुं जग ॥ ५९५॥ घडीयाळ आठ कटके नर नीपजे, तेमां स्त्रि बे नर चार । नपुंसकमां वे एह छे, ते तज्यु मनोहार ॥ ५९६ ॥ खाटलो पलंग आठ कटके नर नीपजे, नारी दो नर चार । वच्चे वे नपुंसक रह्यां, चतुर करो विचार ॥ ५९७ ॥ वाटलो पलंग दो नारीने दोवे नळां, नरने नामे नाम । वाइए भरावा आवी तुज घर, महारे तेनुं पडयु छे काम ॥५९८५ खाटलो पलंग अट कट लाकडी, जोवन जाळी । ए वरत वरते तेने, आपु सोनानी वाळी ॥ ५९९ ॥ खाटलो पलंग आठ काटनु लाकडु, वचमां भमर जाळी । महारो अरय कहे तेने, आपु सोनानी पाळी॥६००॥वाण भरेलो खाटलो चोखंड ने चोसलुं, बीबा वर्णि भात । आवी तेने कारणे, होयतो बाइ आप ॥६०१॥ गोदडु पशु नहि पण चार पग, एक वांसो बी शीष । बाळक तेनां पेटमां, शी वस्तु ते तुं कहीश ॥६०२॥ घोडीयु ग्रंकी चंकी वांकळी, मांहि पडच छे हाउ । ए अरथ कहे तेनां, हालरडां गाउ ।। ६०३ ॥ घोडीj पारगुं हलु हळु आवेने, हल्लु इल्लु जाय । एक रहे ने बीजु, मंगळ गाय ॥ ६०४ ॥ घोडीयु बाळक रहे ने माता गाय
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
अस्ताविक
॥२२ ॥
दम दोल मांहे पोल, उपर एत्र छाया। माहारु उखाणुं कहे, तेने आपु सोनाना पाया ।। ६०५॥ यंक पाणी यकी निपजे, पाणी अडे जीव जाय । चालो सखी तेने वाळवा, तो अदको आवरदा चाय ॥६०६॥ काचो घटना लीली पीळी चांसळी, बजावनार कोण । बीबी चाल्या सासरे, मनावनार कोण ॥ ६०७ ।। गठडी बाडी करीने वावीए, नहि लीलानो भाग । गाडु भरीने लावीए, जगत बघु एने खाय ॥६०८।। मीर्छ लीली टोपी राता जगा, आव्यारे परदेशी सगा। खाय खाय ने हाय-हाय ॥ ६०९ ॥ मरचां तीखी तीखी तनमनी, वांसना सरखा पान । महारु उखाणुं कहे, तेनी जात पर कुरबान ॥ ६१० ॥ मरचा तीखं तीखं सरकडं ने, उपर कलंकी गोटी । लीलु सुकु रातु पत्तु, मसालानुं मोती ॥ ६११॥ मरचा महेतारे महेता, तमे कये गाम रहेता । ढींग कुवार्नु पाणी पीने, पांदडामा रहेता ॥ ६१२॥ वेंगण तीखां ने बळी तकमरीयां, कदली जेवा पान । ए वरत वरते तेने, आपु वीरमगाम ॥ ६१३ ॥ गण काळी धोळी सरपोलीने, लोको तेने खाय । मूळानी बेन तीखी, शाक तेनुं थाय ॥ ६१४ ॥ मोघरी राता राता रतनजी, उपर लीलां पान । मूळानो तो सगो भाइ, अयाणामां मान ॥ ६१५॥ गाजर तरगाळु ने वांकडु, घीने नामे नाम । ए वरत वरतवामां, गुंचवाणुं आखु गाम ॥ ६१६॥ तुरीयु जेने घेर पवन न संचरे, जेनी छायाये बेसे न कोय । ते फळने मोकलावजो,मारे एकादशीवृत होय ॥६१७॥काकडी रायतानी राणी, अने कचुंबरनी मा । शाकनी छे सासु, तेमां ना कहेवाय ना॥६१८॥ काकडी कडवु कडवु लींबुळीयु ने, उपर धोळा धचका । केरी रस साथे लोको, शाकनां भरे बचका ॥ ६१९ ॥ कारेलु
॥२२॥
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
एक छोड एवो जेना, भाला जेवडां फळ । शाकनो ए राजा छे, कहे तुं क्यु ए फळ ॥ ६२० ॥ भीडो . सुरतन उधीयुं, मुंबइनी जात । कतार गामकी कतारी, वखणाय भली भात ॥ ६२१ ॥ पापडी लांबी लांबी लाकडीने, झाड उपर लटके । तोडी लोक शाक करे, मारी मारी पटके ॥ ६२२ ॥ सरगवानी श्रींग लीली लीली सळीयो, ने गांठे गांठे चोर । चोर चोरनुं तो शाक थाय, छोड खाय ढोर ॥ ६२३॥ चोळा फळी अणीवाला आंगळां, तोडी लोक खाय । तरवानी जातनां, शाक तेनुं थाय ॥ ६२४ ॥ गवार लीलो लीलो गोळो, ने अंदर लाल मेवो । लालम लाल लालम लाल, बाळको खावा आवो ॥ ६२५॥ तरबुच मेरु जेवु पतराळ, ने बने शाकनो हलवो । बीन सतारनो बावो, कमंडलामा हलावो ॥ ६२६॥ दुधी गोळ गोळ कोठीमई, धरतीमां थाय । तळी करे काचली, तेनं शाक करी खाय ॥ ६२७ ।। बटाका लीला रगा पीळा रंगा, आव्यारे परदेशी सगा। राखशो तो रही, नहि तो त्रण मासे जY ॥६२८ ॥ केरी भेश वींयाणी पाडो पेटमां, दुध दरवारमा जाय। चतुर हो तो समजी लेजो, मूरख गोयां खाय॥ ६२९ ॥ केरी बापे जन्मी बेटटी, पेटीये जन्म्यो बाप । ए वरत तमे उकेलजो, बेटी भली के बाप ॥६३०॥ केरी इंडे हतुं त्यारे बोलतुं, बच्चु बोटे नहि । बब्वे जुग वही गया, ब्रह्माने मालुम नहि ॥ ६३१ ॥ नालीयेर तपेलामा तपेढुं ने, मांहि कलंकी घोडो। मारु उखाणुं कहे तेने, आपु सोनानो दोरो॥६३२ ।। नालियेर वनहरति-वनफरति, सवा लाख चुनीये जडी हती । उत्थापन वखते श्री नवनीत, पियाजीने धरीती ॥६३३ ॥ दाडम गरम देशनी दीकरी, माथे राखी टोपली। पेटमा राखे छोकरो, तेनी किम्मत पादोकडो ।। ६३४ ॥ खारेक
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रस्ताविक दुहा संग्रह:
॥ २३ ॥
+6323
घोळ ने धमक दीये, लही चढयूँ तोले । चतुर होतो चेतशो, मूरख कांइ न बोले ॥ ६३५ ॥ एलची
पीयु जाजो पाटण शहर, बहोरजो हलदर ने हीर। एक चीज एवी बहोरजो, जेने माथे चार शीग ॥ ६३६ ॥ वींन नगरमां नागी फरे, वनमां पहेरे चीर । ते तो तमे लावजो, महारी सगी नणंदना वीर ॥ ६३७ ॥ सोपारी छ माणसनुं साटवेल, माणसनुं शुं पडयुं । वाणीने बांधी गांडी, भांगीने झुको कर्यु ॥ ६३८ ॥ नागरवेलना पान कोणे हीमालो सेवीयो, कोणे सेवी आग। कोणे करवत मुकाबीया, कइ राणीने काज ॥ ६३९ ॥ काथो चूनो सोपारी माथा केरो गोफणो, हैया केरो हार । दीने करूं दीकरो, राते करु भरथार ॥ ६४० ॥ साडलो [नागरवेलीने काजे आद्याक्षरविण जगजोबाडण, अंत्याक्षर विण मीढुं । मध्याक्षर बिण सहु संहारण, ते में नजरे दीतुं ॥ ६४१ ॥ काजल अंग का दांत उजळा, चाले घम्मर चाल । सासु बहुने दीकरी, ए त्रणनो एक भरथार ॥ ६४२ ॥ घूढलो एक नरे नरने गल्यो, तेथी शोभे तन । ए तो उत्तम जन गणो, समजो तमे सज्जन ॥ ६४३ ॥ डगलो कर शोभे नहि मुद्रिका, शिर छत्र नहि तात । ताप हरे जाता नहि, ते छे जग विख्यात ॥ ६४४ ॥ छत्री कुत्ता मारण जगतरण, अडवडीया आधार । कथा तुं मत वीसरे, होंकारे हथीयार ॥ ६४५ ॥ लाकडी लाकडानो बांको, घडनो आटो खाय । एक तमाची आपुं तो, भों भों करतो जाय ॥ ६४६ ॥ ढोल जीव विनानुं जानवर, दो सुख प्रत्यक्ष दीठ । पीठ खवरावी पीटीये, बोले मधुरो मीठ ॥ ६४७ ॥ सुदंग देका जेसा दडदडे, ने पत्थर जेसी काया । वानर जेसा पुंछ लगाया, देखो जनावर केसा ॥ ६४८ ॥ जंजरी चोखंडी नगरी बनी, छ चार दरवाजा । सोळ राजा ने सात सीपाइ, यो उत्तर महाराजा ॥ ६४९ ॥ सोगठाबाजी
॥ २३ ॥
Scanned by CamScanner
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
नारीने तो नर घणां, शाझा साथै प्रीत । नारी पेलो नर मले, ए कोना कुळनी रीत ॥ ६५० ॥ सोमडाबाजी उंची उंची घुघवे, नीचे पडे लाळ । ए वरत न बरते, तेनो बाप खेतरपाल ॥ ६५१ ॥ पतंग
आडु नाखु पाडु नाखु, पाडाना पग वाढी नाखु । आगळ पाछळ आंख फेरवो, तो पण पाडु वांसे मे वांसे पढायो आभ विण चांदो उगीयो, जळ विण बुड्यो हंस । थड विण चंपो मोरीयो, ते जोवा गइती महारा कंत ॥ ६५३॥ आभलं पडी पण भांगी नही, कटका थया बे चार । वगर पांखे उडी गइ तमे चतुर करो विचार ॥ ६५४ ॥ रात्री अहींथी नाख्यो वालोळीयो, उग्यो अमदावाद । फळ फूल मालवे, शींग झालावाड ॥ ६५५ ॥ चंद्रमा शींग सहित जे जनमीयो, जोबनमां शींग मांय । जोवन फीटी वृद्ध थयो, शींग फरीने थाय ॥ ६५६ ॥ चंद्रमा छ पगनुं छंछु मंछु, नाम लेता जुओ । नाम लइने कहुं हुं भाइ, जुओ जुओ जुओ ।। ६५७ ॥ जु छपगनुं चीपट, चौटे चाल्यु जाय । राजा पुछे राणीने, ए कयु जनावर जाय ॥ ६५८ ॥ जु नारीये नर वधारीयो, नारी नरने पेट । चतुर हो तो समजी लेजो, बेठी छांया हेठ ॥ ६५९ ॥ उबेइ पाथी मोडुं पुंछ, माथाथी मोटी आंख । राजा भोज विचार करीने, उत्तर तेनो भांख ॥ ६६० ॥ वीड भरे फाळ पण मृग नहि, नहि ससलो नहि श्वान । मों उंचु पण मोर नहि, तमे समजो चतुर सुजान ।। ६६१ ॥ देडको पढतो पण पंडित नहि, पूर्यो पण नहि चोर । चतुर हो तो चेतजो, मधुरो पण नहि मोर ।। ६६२ ॥ पोपट सारिंगे सारिंग गळ्यो, सारिंग आव्यो धाय । कुलको सारिंग जो रखु, तो मुखको सारिंग जाय ॥ ६६३ || मोर जेने खाधे विष चढे, तेने जो कोइ खाय । रमे कुमारी बाजीये, ये अंधाणीपे राय ॥ ६६४ ॥
Scanned by CamScanner
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
प्रस्ताविक
संग्रह
॥२४॥
एक जनावर अइड, तेनी चांच बोले चइड । तेनो मूर्य सरदार, तेनी डोक मूलदार ॥ ६६५ ॥ मोर काळा काळा काकाजी, ठगाराना पीर । गामे गाम ठामे ठगम, खाइ जाय खीर ॥६६६ ॥ कागडो काळी काळी कंकुबाइ, आंबा डाळे डोले । उनाळामां केरी खाती, मीठा टहुके बोले ॥६६७ ॥ कोयल . नख जेटली नखली, नखे नखे घा । ए बरत न वरते तो, गाममांयी जा॥६६८ ॥ नेरणी गाय वींयाणी गोंदरे, वाछरडे वाडामांय । दो नारी मुले पारणे, तेनां छोकरा लश्कर माय । ६६९ ॥ बंधुक नारी पण निर्बल नहि, काळी पण नहि कोल । बसे दरेसा पण नहि, उत्तर एनो बोल ॥ ६७० ॥ तरवार कालुडी रे कालुडी, काळा दरमा रहेनारी । लाल पाणी पीनारी, सरकारने जवाब देनारी ॥ ६७१ ॥ तरवार आधी गुरुनी वावडी, आयो घोडानो नाळ । आठम केरो चांदलो, चोयो सरज्यो काळ ॥ ६७२ ॥ धनुष्य वाण कालू ने कदरामणु, खाता लागे मुंडु । ए वरत वरते तेने, आपुं सोना- कुंडु ॥ ६७३ ॥ अफीण डुंगर उपर दव बळे, नदी करे पोकार । चतुर हो तो चेतजो, मूरख करो विचार ॥ ६७४ ॥ होको नदी कांठे देडको बोले, माथे छे वळी भट्ठी। चतुर हो तो चेतजो, मूरखे वात बंठी ॥ ६७५ ॥ होको देडक जेसा दडदडे, मींदड जेसा माथा । हाथी जेसी मुंढ चडावी, देखो जनावर केसा ॥ ६७६ ॥ होको एक जातीती सारे काम, अने मुंडे कामे भाळी । हेठे पाणी उपर देवता, वचमां कुटी बाळी ॥६७७ ॥ होकानी बजर चार माथा पण ब्रह्मा नहि, छ पग पण जु नहि, पेटमा पाणी पण नालीएर नहि, आखला पर बेसे पण महादेव नहि। पखाली एक जनावर अइड, तेनी चांच बोले चइड, तेनो सरइयो सरदार, तेने माथे मणनो भार ।। ६७९ ॥घाणी
X॥२४॥
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
गढ कोठगने कांकरे, पथरा चोकी करे। एक नारीने कारणे, लाखो जीव मरे ।। ६८० ॥ पाणी वांको चुंको बावळीयो ने, तेल गलायां खाय । ए वरत वरते नहि ते, आंटो मारवा जाय ॥ ६८१ ॥ पाणी बत जेवढी चरकली, ने दाल जेबडं फूल । काचा कमळ उतरे, तेनुं पाके याय मूल । ६८२ ॥ कुंभारनो चाक खीला उपर खेती करे, खळामां मुके आग । जेनो प्रभु पाघरो, ते घेर बेठो खाय ॥ ६८३ ॥ कुंभार माये मारे मोटे चणे, मुख न आवे दाणो । ए वरत वरते नहि तो, जीवतर खोयु जाणो ।। ६८४ ॥ मुतारखं वींघj काका रे म कौतुक दीर्छ, भर्या तळावमा तरतुं दीर्छ । पाणी छे पण पीतुं नयी, घास के पण चरतुं नयी ॥६८५॥ होडी भमे पण भमरो नहि, कोटे जनोइ पण ब्राह्मण नहि । लोट मागे पण बडवो नहि, तेल चढे पण हनुमान नहि। रेंटीयो घर शोभन उदर भरण, वंश वर्धन सुखरूप । लाळेथी जग वींटतो, ते मोकलावजोने भूप ॥ ६८७॥ सोल पांखनी चरकली, फर फर फरती फरे । अनाजने अरके नहि, तेल पीती चरे॥ ६८८ ॥ सोहागण सासरु, कन्यानुं मोसाल । विसामो विधवा तणो, ते तुं मुजने आल ॥ ६८९ ॥ पदमणीनी पुतली, हस्तिणी केरु हीर । चित्रिणीनी चरकली, तेने कोण पूरतु चीर ॥ ६९.॥ लाकडानी पुतली ने, लोढानी चाच । सांज सुधी रमे, त्यारे इंडा मुके पांच ॥ ६९१ ॥ ऋण पगे टीटोडी ने, डोके वांधी डोळी । ए बरत न बरते तेनो, बाप जगलो कोळी ॥ ६९२ ॥ बोरणी पंदर पगु ने पालु चाले, माथे डाकडमाळ । अमुरी वेळाये पाणी संचरी, में दीढुं रमता मलार ॥ ६९३ ॥
अनाज पावतो वावणीयो, बाठ पग बन्दना, खेडुतना, पांच दांता बावणीना मली पंदर पाथाय ।
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रस्ताविक दुहा संग्रह
॥ २५ ॥
नारी फीटी नर-थयो, शुरा पेलो खाय । आठ मास रण भोगवी, पछी नार यह बेर जाय ॥ ६९४ ॥ गोफणनो गोळी नहि बांसलो नहि बघणं, नहि कारीगर सुतार। अद्धर गढ चणावीया, राजा भोज करो विचार ।। ६९५ ।। सुगरीनो माळो सत्तर सीसा पत्चर सीसा, सीसा अम्मर एसा । बिना कामके महेल बनाया, ए कारीगर केसा ॥ ६९६ ॥ मर्छ ओघुं ओघुं ओघितुं, बार पग ने वे शींगु । अरडक राजा उछडी, पांच माथा ने वे पुंछडी ॥ ६९७ ॥ आ ढेढे घसडी लइ जवातो मरेलो बळद ।
घेरदार घाघरो, गुलाबदार बुट्टि । दिवानीना राजमां, उभी उभी लुंटी ॥ ६९८ ॥ सांठी वण देतारे बाबीये, वण पाणीये थाय । चतुर होतो चेतजो, मूरख गोयां खाय ॥। ६९९ ॥ वेण कपास उंची नारी उजळी, नदीये न्हावा जाय । पांहोडे दीवा बळे, चोरे चोटला गुंथाय ॥ ७०० ॥ भींडो
नदी कीनारे नीपजे, नरने नामे नाम। आठ महिना उभो रहे, ने कार्तिक महिने काम ।। ७०१ ॥ सैयो एक जातनुं घास सो आंबा सो आंबली, बसो बीजां झाड । फूल बिना फळ नीपजे, राजा भोज करो विचार || ७०२ ।। पीपळानुं फळ सुवरना जेवढी दातरडी, बकरीना जेवा कान । माथे काळी टोपी छे, पीळो जेनो बान ॥ ७०३ ॥ केसुडा [ अगर पेपडी काळु ने बळी कोयला वर्णु, सिंदुरीया वाने वान । काळा वाळना जेवी दातरडी, ने बकरीना जेवा कान ॥७०४ ॥ केसुडा फूलनो फगर ने, कांटानो नगर । सोपारीनो सकाळ, अने पाननो दुकाळ ।। ७०५ ।। केसुडा झाड नदी कांठे नेहेरो ने गुंदा जेवडुं गाम । कुंवारी छोडीने त्रण दीकरा, तेने परण्यांनुं शुं काम || ७०६ ॥ मकाइनो डोडो उभी नर निद्रा करे, तडके लोकां खाय । जेने मस्तक मोती नीपजे, ते नार बहु वेचाय ॥ ७०७ ॥
27
।। २५ ।।
Scanned by CamScanner
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
Scanned by CamScanner
जेने यह पवन न संचर, गये से न कोय । ते चीज मोकलावजो महारे एकादशी वृत होय ॥७०८॥ मगफळीनीशींग पांचाळुने चीपटj, रण वगहामा थाय । मुसलमान मारे ने, हिंदु तेने खाय ।। ७०९ ॥ तल जळमा पेसी घर करे, माझा घरमा नाय । मोडुवाडे मरे नहि, तेने खाली खेंचे जीव जाय ॥ ७१० ॥डांगर उभो नर निद्रा करे, तडको माकळ खाय । जेनी मुंछे मोती नीपजे, रणमा झोला खाय ।। ७११ ।। घर स्थळमां बेसी घर करे, जळमां बेसी न्हाय । मस्तक वाडे मरे नहि, एनी आंख फोडे जीव जाय ॥ ७१२ ॥ शेलडी सो आंबा सो आंवली, वसो बीजा सार । फळ बचाळे पांदडं, राजा भोज करो विचार ॥७१३|| कुबो ए नामनी वनस्पति खड वाढीने काल कीधु, तेने नामे नाम । कुंडलानी कोरे मारे, शोधी काढो गाम ।। ७१४ ।। खडकायु जानमा जइये ते, ने सूरजमा सोहीये ते । ते वे मलीने एक नाम, कहो पंड्याजी कयु गाम ॥ ७१५ ॥ वरतेज जनावर झुंडाळुजी, वाडमां तो मुख्यजी । मलीने एक नाम, कहो पंड्याजी कयु गाम ।। ७१६ ॥ मोरवी घंटीमा सोहीयेजी, गाडामां जोइयेजी । बे मलीने एक नाम, कहो पंड्याजी कयु गाम ।। ७१७ ।। पडधरी तेजी घोडो रणमा रह्यो, दील्लीनो पादशाह फकीर थयो। जमरख दोवो प्रांखो थयो, ए पश्ननो उत्तरदीयो।। दिवेल विना गढ पायेथी पदी गयो, मणियारो हतो ते फकीर थयो। आखे रोटछे भुख्यो रह्यो, ए प्रश्ननो उत्तर दीयो । दांत विना भूत कोसे खोटको थयो, चालता रेंटीयो उभो रह्यो । राजानी कुंवरीये कजीयो कीयो, ए प्रश्ननो उत्तर दीयो ॥ढींगली बिना एक नारी एवी नीकळी, राय रंक घरे जाय । जेना पर करुणा करे, ते मृत्यु तोले थाय ।। ७२१ ।। भुख गढ पडयो ने वाह मुको, छते खाटले भांय मुतो। त्रण मलीने एक थयो, ते एकल खरानो उत्तर दीयो ।।७२२॥ पडयो
RSS RESERॐ
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________ Scanned by CamScanner प्रस्ताविक कहु छु ने कही संभळावं, तेमां नयी फारफेर / एक चीज एवी माँधी के, लाख रुपीये शेर // 723 ॥बळ एक नारी एसी दीठी, सोळ शणगार सजीने बेठी। सोळमां हतो जे सार, ते तो मेल्यो संबर बहार // . चार घडी पीयु पासे रही, वळती गइ त्यारे खेती गइ // 724 // लाज खाटखटुके खाटेकडा, खाटे बेठा छे दो जणा / भांगे सोपारी चावे पान, बे जण बच्चे चावीच कान // रावण मंदोदरी तोरी घोडो त्रण मुखे, सात नेत्र पग बार / चोवीश जेने पेंगडा, जेने सत्तावीश अस्वार ।।७२६॥शीयालो उनालो चौमास संग्रह // 26 // puIISUS o समाप्त Licend // 26 //