Book Title: Prastavik Duha Sangrah
Author(s): Manivijay
Publisher: Devchand Dalichand

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ श्री मस्ताविक दुहा संग्रह ॥ ८ ॥ पुत्रीने परणावीये, कोढी न धरीये हाथ । यथाशक्ति परणावीये, योग्य पुरुषमी साथ ॥ १८८ ॥ पुरब देखा पश्चिम देखा, देखा मूलक राणेका । ए सीनोका विश्वास न करना, अंबे तु काणेका ॥ १८९ ॥ पोथी पढ पढ जग मूआ, पंडित मया न कोय । अढाई अक्षर प्रेमका, पढे सो पंडित होय ॥ १९० ॥ बडा बडाइ ना करे, वडा न वोळे बोल हीरा मुखसे ना कहे, लाख हमारा मोठ ॥ १९१ ॥ मन की गड़बडी, रायन की गइ लंक | दोनुं दुःख समान है, एइ रावसो रंक ॥ १९२॥ बस्थी बुद्धि आगली, जे उपजे ततकाल । वानर बाघ विगोइया, एकलडे शीया ॥ १९३ ॥ बहोत बाणीज बहू बेटिया, दो नारी भर्तार । उसको दय कया मारना, मार रहा किरतार ॥ १९४ ॥ बात बात सब एक है, बतलावन में फेर एक पवन वादल मीछे, एक ही देव विखेर ॥ १९५ ॥ बार बोलावणं, बीई ये कर जोट । पांच बच्चा जिण घर हुवे, तस घर जाइये दोड ॥ १९६ ॥ बाकर दवा लाख लाखे विचारा सिंहण कथा एक, एके हजारा ॥ १९७ ॥ वृरा बुरा सबको कहे, बुरा न दीसे कोय। जो घट शोधुं आपणा, तो हमसे बुरा न कोय ॥ १९८ ॥ बेरा आगळ गावणं, मुंगा आगळ बात । अंधा आगळ नाचणं, ए त्रण सावडे सात ॥ १९९ ॥ बथाणीने वायटी, बेनो एक स्वभाव । मोदेवी नाना कहे, पण लीवा उपर भाव ॥ २०० ॥ राणी पाणी ने पांडा, ऋणनो एक स्वभाव । उंचे कुठे अवतरी, नीचा उपर भाव ॥ २०१ ॥ यो पाटो ने पारधी, श्रणनो एक स्वभाव के मार्या के मारशे, मार्या उपर भाव ॥ २०२ ॥ २ ।। ८ ।। Scanned by CamScanner

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54