Book Title: Prastavik Duha Sangrah
Author(s): Manivijay
Publisher: Devchand Dalichand
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मस्ताविकास
संग्रह
॥१८॥
ताव कहे तुरीयामां वसु, गलकु देखी खडखड हस । जेने घेर जाडी छास, तेने घेर माहरो वास ।। ४८७ ।। फुट डोडाने काकडी, उपर खाधु दंही । ज्वर संदेशो मोकछे, खाटलो पार्यो के नही॥४८॥ भींडा तो भारे पडे, तुरीयु लावे ताव । वालोळो अति वापडी, नीम्ब नीरोगी साव ।। ४८९॥ कारेले कर कर घणी, वायु करे गवार । गीलोडे बुद्धि घटे, नीम्ब नीरोमी साव ॥ ४९० ॥ तुरीयु कहे हुं वांकुं चुकुं, माहारे दीले के सळी । माहारा खावामा स्वाद करे तो, माख लींचु ने मरी ॥४९१॥ कोलु कहे हुं गोळ गोळ, माहरा दीले छे छोल । माहारा खावामां स्वाद करे तो, नाख मेथी ने गोल ॥ ४९२॥ कारेलु कहे हु कडधुं बडवू, माहारे माथे चोटली । जो खावानी मजा करे तो, करो रस ने रोटली ॥ ४९३ ।। दुधी कहे हुँ लांबी लीसी, माहरा दीले छे छाल । माहारा खावामां स्वाद करे तो, नांख चणानी दाळ ॥ १९४॥ घउं कहे हुं रुडो दाणो, मारे माथे चीरो । मारी खबर क्यारे पडे के, बेन घेर आवे वीरो ॥ ४९५॥ घउं कहे में रातो मातो, मारे माथे ली। माहारी खबर तो पडे, जो होय गोळ ने घी ॥ ४९६ ॥ घउं कहे हुँ रातडीयो, माहारे माथे लींटो । माहारुं भलापणुं क्यारे जाणो के, घी गोळमां लइ वींटो ॥ ४९७॥ बाजरो कहे माहारो उचो छोड, माहरे माथे टोपी । माहरो गुण क्यारे जणाय के, खाय दुध ने रोटी ॥ ४९८ ॥ वाजरो कहे में लीलो पीळो, माहारे माथे टोपी । माहारी खबर तो पडे, जुवान घडे रोटी ॥ ४९९ ॥ बाजरो कहे हु लोलुडो, माहारे लांचा पान । घोडा पांखाळा बने, बुड्डा बने जुवान ॥ ५००॥ बलिहारी तुज बाजरी, जेना मोटा पान । घोडे पांखो आवीयो, युवा थाय मुवान ॥५०१॥
॥१८॥

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