Book Title: Prastavik Duha Sangrah
Author(s): Manivijay
Publisher: Devchand Dalichand

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Page 41
________________ Scanned by CamScanner एक छोड एवो जेना, भाला जेवडां फळ । शाकनो ए राजा छे, कहे तुं क्यु ए फळ ॥ ६२० ॥ भीडो सुरतर्नु उधीयुं, मुंबइनी जात । कतार गामकी कतारी, वखणाय भली भात ॥ ६२१॥ पापडी लांबी लांबी लाकडीने, झाड उपर लटके। तोडी लोक शाक करे, मारी मारी पटके ॥ ६२२ ॥ सरगवानी भींग लीली लीली सळीयो, ने गांठे गांठे चोर । चोर चोरन तो शाक थाय, छोड खाय ढोर ॥ ६२३ ॥ चोळा फळी अणीवाळा आंगळग, तोडी लोक खाय । तरवानी जातनां, शाक तेनुं थाय ॥ ६२४ ॥ गवार लीलो लीलो गोलो, ने अंदर लाल मेवो । लालम लाल लालम लाल, बाळको खावा आवो ॥ ६२५॥ तरबुच मेरु जेवु पतराल, ने बने शाकनो हलवो । बीन सतारनो बावो, कमंडलामा हलावो ॥ ६२६ ॥ दुधी गोळ गोळ कोठीमढुं, धरतीमां थाय । तळी करे काचली, तेन शाक करी खाय ॥ ६२७ ॥ बटाका लीला रगा पीळा रगा, आव्यारे परदेशी सगा। राखशो तो रहीशू, नहि तो त्रण मासे जशुं ॥६२८ ॥ केरी मेश वीयाणी पाडो पेटमां, दुध दरबारमा जाय। चतुर हो तो समजी लेजो, मूरख गोयां खाय॥६२९ ॥ केरी बापे जन्मी बेटडी, वेटीये जन्म्यो बाप । ए वरत तमे उकेलजो, बेटी भली के बाप ॥६३०॥ केरी इंडं हतुं त्यारे बोलतुं, बरच बोटे नहि । बब्बे जुग वही गया, ब्रह्माने मालुम नहि ॥६३१॥ नालीयेर तपेलामा तपेलं ने, मांहि कलंकी घोडो। मारु उखाणुं कहे तेने, आपु सोनानो दोरो॥६३२॥ नालियेर वनहरति-वनफरति, सवा लाख चुनीये जडी हती । उत्यापन बखते श्री नवनीत, पियाजीने धरीती ॥६३३ ॥ दाडम गरम देशनी दीकरी, माथे राखी टोपली। पेटमा राखे छोकरो, तेनी किम्मत पादोकडो ॥६३४ ॥ खारेक

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