Book Title: Prastavik Duha Sangrah
Author(s): Manivijay
Publisher: Devchand Dalichand
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घर खरच बांध्या पणा, पारे लाभ न थाय । लेणुं पाछु जडे नहि, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५६१ ॥ अविचार्यु करे द्वारे तालनवि उघडे, मंत्र सिद्ध नघि थाय । दीठी वरतु थाये नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५६२ ॥ कुंची नहि नारी नेत्र शोभे नहि, अक्षर फीका लखाय । घडाउ घाट शोभे नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५६३ ॥ शामता नहि छते ओजार चाले नहि, गंजीफे न रमाय । घे कुतरा बाजी मरे, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५६४ ॥ पार्नु नहि मोल (पाक) सारो पाके नहि, चोर सबी अकळाय । मेमान मन रीझे नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥५६५ ॥खातर विना बावडी परवडी, लो ल्याणुं गाम । लगीरा पीपळा, वश्च एकज पान ॥ ५६६ ॥ जीभ काळो घोडो कमकाबरो, नगरी जोतो जाय । सवा लाख टका आपु, पण तेर्नु मूल नहि थाय ॥ ५६७ ॥ आंख सोपारी जेवडं सारिंगड, तलनो श्रीजो भाग । ए सारंग ये रत्न गल्यां, एक धरती ने बीजुं आम ॥ ५६८॥ कीकी नाकाशानी दीकरी, भीताशाने दीधी। पांच भाइ दोडचा त्यारे, वे भाइये लीधी॥ ५६९ ॥ नाकनी लीट
अमारा सगरण ओडण गोरण, ईशं जाणे भाइ वासु । गाडा हेतुनावापनीयर, मारा सगाधणीनी सामु॥५७०॥ भाइ-बेना नहि सगो नहि सागयो, रेडो देखी रोइ । एना वाफ्नो बनेवी, मारो सगो नणदोइ होइ ॥ ५७१ ॥ मा दीकरो मा दीकरी चे माथु ओळे, वे जण पासे आवे । एक कहे महारो बाप, बीजी कहे महारो बाप ॥ ५७२ ॥ ससरो जमाइ गोपीने घेर गोपी आवी, सांभळ गोपीजी । बार हाथर्नु तुंबडु, ने तेर हाथर्नु बी॥ ५७३ ॥ आडहर अने आडी वारसो पत्ता ने बारसो उधा, बारसे बावन वीर । महारुं वरत वरते तेने, आपुं सोनानो चीर ॥ ५७४ ॥ नळीयां तपेलामा तपेलं, मांहे कलंकी घोडो । खोलाय तो खोलो, नहि तो बेठा माथु फोडो॥ ५७५ ॥ ताल्लं

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