Book Title: Prastavik Duha Sangrah
Author(s): Manivijay
Publisher: Devchand Dalichand

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Page 39
________________ Scanned by CamScanner 5 भरे चोमासे गढ पडे, घोडा घास न खाय । छते पलंगे भोंय सुवे, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५३१ ॥ पाया विना छते ओजारे चाले नहि, गंजीफे न रमाय । आण पाण ना थइ शके, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५३२ ॥ आवड्या विना मोटुं मोती मुलकमां, सरोवर पीठ न जाय । रावत भागे राडमां, कहो चेला क्यु थाय॥ ५३३ ॥ पाणि नहि सरोवर मोटु पाणी गयु, परजा रुठी जाय । लीयो शाक अमथो रह्यो, कहो चेला शुं थाय ॥ ५३४ ॥ पालि नहि उभावाथी थरहरे, चरखे रु नवि थाय । महीसी दुधे उतरे, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५३५॥ वारि नहि पाक साखी भुखे मरे, भेंस गइ छटकाय । लखतां ओलवांकी लखी, कहो चेला क्युं थाय ॥५३६॥ पाडी नहि घोडो घोडी न हाथीयो, चोर ढंढोता जाय । आइ कमाणी फरी गइ, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५३७॥ जाग्यो नहि घोडे घास न बोटीयो, चाकर रुठो जाय । छते पलंगे भोंये सुये, कहो चेला क्युं थाय ॥५३८ ॥ पायो नहि कंही धुंओ न नीसरे, मोटो वाय न जाय । तीरा मछी वही गइ, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५३९ ॥ जाली नहि काप्यो तुटे बल घटे, खीचड लुखो खाय । कामण नेह वधे नहि, कहो चेला क्यु थाय ॥५४०॥ चोपड नहि अंकारे हल वहे, पग अडवाणे जाय । ढाढी गावे एकलो, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५४१ ॥ जोडी नहि घर थकी घोडी गइ, गइ अणदोइ गाय । नटी शणगार सजे नहि, कहो चेला क्युं थाय ॥५४२॥ वाली नहि बपैयो पीयु पीयु रडे, खेती सुकाइ जाय । पालपंथी पाछो पडे, कहो चेला क्यु थाय ॥ ५४३ ॥ पाणि नहि घर आण्यो छुट्यो पशु, वात होवे बीत जाय । विना केश छुटा पडे, कहो चेला क्युं थाय ॥ ५४४ ॥ बांध्या नहि राजा राज विणस्सियो, दीवे तेजी न थाय । मोमे बेठा सास गयो, कहो चेला क्युं थाय ॥५४५॥ दीवेल नहि HERS5 -ॐॐन

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