Book Title: Prastavik Duha Sangrah
Author(s): Manivijay
Publisher: Devchand Dalichand
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मोटाने कहेवाय नहि, नानाने कहेवाय । सामुना सो वांक पण, वहूनो बांक कढाय ॥ २३३ ॥ मोटा जे करे ते छाजे, उपर ढोल नगारा वाजे । नाना जे करे ते जाय, उपर गडदा पाटु खाय । २३४ ॥ रत्न पडघु छे बजारमां, चौटा केरा मांय । मूरख जाणे कांकरो, चतुर लीये उठाय ॥ २३५ ॥ राती गमाइ सोवके, दिवस गमाया खाय । हीरा जैसा नरभव, कबडी बदले जाय ॥ २३६ ॥ राग द्वेष जाकु नहि, ताकु काळ न खाय । काळ जीत जगमें रहो, एहज मुक्ति उपाय ॥ २३७॥ राज भुजंगम वीसहरन, जपो मंत्रविवेक । भववन मूल उच्छेदकी, विलसे पाकी टेक ॥ २३८ ॥ राग बाप खुंखार भणीजे, कथा बाप हुंकार भणीजे । प्रीति बाप जीकार कहीजे, कलह बाप तुंकार भणीजे लघुतासे प्रभुता वधे, प्रभुतासे लघुता दूर । लघुता मनसे मानीये, प्रभुता आवे हजुर ॥ २४० ॥ लहेणा की जड मांगणा, रोगो की जड खांसी । दालिद्रिकी जड खाउ खाउ, लडाइ की जड हांसी। २४१ ॥ लांबी घाले लेखणो, ने उजळे लुगडे फरे । लोको मनमा एम जाणे, आ मुसद्दीयो क्यारे मरे ॥ २४२॥ लेता उसे देता डसे, उपर चडावे पाड । वैरी विस हर ने विसेस, पण न विसेस की राड ॥ २४३ ॥ वणज करे ते वाणीया, बहु वेपारे वाय । अबळानुं सबळु करे, गोळने पाणिये नाय ॥ २४४ ॥ वखत विचारी वाणियो, मूछ चडावे कान । वखत विचारी मूछ वळी, नीची करे प्रणाम ॥ २४५ ॥ वडा वडाइ ना करे, वडा न बोले बोल । हीरा मुखसे ना कहे, लाख हमारा मोल ॥ २४६ ॥ वाणी पाणि बेसदा, पवित्रता करनार । ललना लालच बेसदा, आपदना दातार ॥ २४७ ॥

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