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मायावी माणस तणी, केम प्रतित रखाय । मोर पीछे मधुरो लवे, साप सपुंछथी खाय ।। ६८३ ॥ आवल फुल अती फुटडा, पगे न पूजे कोय । चंपा फूल अमूल्य गुण, शिर चढे सहु कोय ॥ ३८४ ॥ वार वर्ष बाली बदले, तरुबर बदले शाखा । बुट्टापणामां केश बदले, लखण न बदले लाखा ॥ ३८५ ॥ काम क्रोध तृष्णा घणी, कंध लगा जे आहार । मान धन निद्रा बहु, दुर्गति जावनहार ॥ २८६ ॥ निद्रा आळस-परिहरी, करजे तत्त्व विचार । शुभ ध्याने मन राखजे, श्रावक तुज आचार ॥ ३८७ ॥ नर जे कडवा तुंबडा, गुणे करीने मीठ । ते माणस केम बीसरे, जेह तणा गुण दीठ ॥ ३८८ ॥ कृपण - कोथली - श्वान भग, दोनो एक समान । घालत ही सुख उपजे, नीकलत नीकसे प्रान ॥ ३८९ ॥ अवगुण ढांके गुण लहे, नव दे निठुर बान । माणस रूपे देवता, निर्मल गुण की खान ॥ ३९० ॥ घर नहि तो मठ बनाया, धंधा नहि तो फेरी । बेटा नाह तो चेला मुंडा, एसी माया गेरी ॥ ३९१ ॥ समकित श्रद्धा अंक है, ओर अंक सब शून्य । अंक जतन कर राखीए, शून्यशून्य दस गुण ॥ ३९२ ॥ मरना भला है उसका, जो अपने लीये जीये। जीता है वह जो मर चूका, इन्सान के लीये ॥ ३९३ ॥ नसों में रक्त भारत का, उदर में अन भारत का । करो में शक्ति भारत की, सभी सामान भारत का ॥ ३९४ ॥ अन्धकार है वहां, जहां आदित्य नहीं है । है वह मूर्दा देश, जहां साहित्य नहीं है ॥ ३९५ ॥ जगतमां जन्म लेता हा, हत्ती बांधी मुठी मारी। उघाडी लेइने हाये !, हवे हुं तो जमानो हुं ॥ ३९६ ॥ मनुष्य आ देह छे मोंघो, रमाचे कां गणी सोंधो। अरे ! शुं धमां उंघो, पलकां प्राण जावानो ॥ ३९७ ॥
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