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रुंए रुएकी जबानपर, ये सखुन ज्यारी है। जान प्यारी नहीं, दुनिया में वफा प्यारी है ॥ ४१३ ॥ मुसीबतके डर रंजके हालसे, बहादुरबदलते नहीं कालसे। खुदा ले या तू ले जान एक है, मगर बात एक और जवान एक हैं हुं तुंही वारु साधु जण, दुज्जण संग निवार । हरे घडी जल जल्लरी, मत्थे पडे प्रहार ॥ ४१५ ॥ नीच सरिस जो कीजे संग, चडे कलंक होय जस भंग । हाथ अंगार ग्रहे जो कोय, के दाजे के काळो होय ॥ ४१६ ॥ संपत्ति सहु वेहेंचे मली, विपत्ति न वेहेंचे कोय । संगत उनकी कीजीये, भांग्या मेरु होय ॥ ४१७॥ .. सजन ऐसा कीजीये, जामें लखन बत्तीस । भीड पडे भांजे नहि, संपे अपनो सीस ।। ४१८॥ सो सज्जन लख मित्र कर, ताली मित्र अनेक । सुख दुःख जामु कीजीये, सोलाखु में एक । ४१९ ॥ सज्जन एसा कीजीये, जैसी नीसी ओर चंद । चंद बिना नीसी आंघली, निसी बिना चंदा अंध ॥ ४२० । पठन गुनन कवि चातुरी, ए तीनो गुण सहेल । काम दहन मन वस करन, गगन चढन मुसकेल ॥ ४२१ ।। संपत देखी न हरखीये, विपत देखी न रोय । संपत छे त्यां विपत छे, कर्म करे ते होय ॥ ४२२॥" भूख्यो ब्राह्मण बगायो ढोर, चाप्यो नाग नासंतो चोर । चंड भांड ने मातो सांद, ए सातेयी उगरीये मांड॥ ४२३ ।। समजी पोते सुधरीये, सहुजन नहि सुधराय । पगे पगरखां पहेरीये, पृथ्वी नहि ढंकाय ॥ ४२४ ॥ बळतां घर पोतातj, तेनी पीडा टाळ । परनी तारे शी पडी, तुं तारु संभाल ॥ ४२५ ॥ पहेलुं ज्ञान पछी दया, दसवैकालिक वाण । ज्ञान विना किरिया करे, ते नवि होय प्रमाण ॥ ४२६ ॥ जेम पावक संजोगयी, कंचन निर्मल थाय । तेम वर जप जपवा थकी, क्लिष्ट कर्म मल जाय ॥ ४२७ ॥