Book Title: Prastavik Duha Sangrah
Author(s): Manivijay
Publisher: Devchand Dalichand

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Page 17
________________ Scanned by CamScanner वैध वेश्या वकील ए, अपनो एक स्वभाव । रोकडथी राजी रहे, उधारे अभाव । २०३। राजा बाजा ने बांदरा, वणनो एक स्वभाव । रीजे तो राजी रहे, खीजे घाले घाव ॥ २०४॥ भणी भाषथी भामिनी, सुधारानो सार । नीति केरा नाम पर, काजळ घसे अपार । २०५।। भणतां भवतां बहु भयो, पिथा अन्य अनेक । पण शरीर साचबवा तणो, अक्षर म भयो एक ॥ २०६ ॥ भर्या सो छलके महि, छलके सो अद्धा । घोडा सो मुंके नहि, अंके सो गदा । २०७॥ भले लक्षण शुद्ध होय, तो क्या संग कुसंग । चंदन विष लागे नहि, लीपट रहे भुजंग । २०८ ॥ भलो रे माहारो आयो, के थयो पूजवा जोगो । पली रे माहारी मुहपति, के पाम्बो सुख संपत्ति ॥ २०९॥ भली करत लगत विलंब, विलंब न पुरे विचार । भवन बनावत दिन लगत, पडत न लागत वार ॥ २१ ॥ भला बुरा सब एक हे, जब लग बोलत नांहि । जाण पडतहे काक पीक, रतु वसंत के मांहि । २११ ॥ भारत वासी बंधुओ, खास राखजो ख्याल । स्वधर्मने नहि छोडशो, कहे कवि अंबालाल ॥ २१२ ॥ भाइ केम छो उदासी, नथी कोइ मळ्यो विश्वासी । जो मळे विश्वासी, तो जाय अमारी उदासी ॥ २१३॥ भुख रांड झंडी, आंख जाय उंडी । पग थाय पाणी, आंसु लावे ताणी ॥ २१४॥ मन मेला तन उजळा, बगलेका सा ध्यान । में जाण्या कोइ संत हे, मरी कपटकी खान । २१५॥ मन मांहि भावे मुंह इलावे, नं.नं. जं. कही लोक मुगावे । मनकी बात कबहु कोन जाणे, कपट चिन्ह एमालखाणे॥२१६॥ मंगनकु मलो बोलणो, चोरन की भली चुप । माली को भलो वरसपो, धोबी कुभली धप । २१७॥

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