Book Title: Prastavik Duha Sangrah
Author(s): Manivijay
Publisher: Devchand Dalichand
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प्रस्ताविक
संग्रहः
माखी चंदन परिहरे, दुष्मळ उपर जाय । पापी धर्म न सांभळे, उचे के उठी जाय ॥ २१८॥ माता पासे बेटा मागे, करबकरे का साटा । अपना पुत खीलावत चाहे, पूत दूजे का काटा ॥ २१९ ॥ मागे धोरी ठोठ गुरु, कुवेज खारु नीर । गाम ठाकुर ग्रहे कुभारजा, ए पांचे दहे शरीर ॥ २२० । माया माथे शींगडा, लांबा नव नव हाथ । आगे मारे शींगडां, पाछळ मारे लात ॥ २२१ ॥ मार मार ओ नंग तडाका, ए पनीहारी में भीख मंगा । जो कीया सो नंगा ने कीया, संगतका फल मेने लीया ॥२२२॥ मानव जाणे में करु, करतब दूजो होय । आदरीया अधवच रहे, हरि करे सो होय ॥ २२३ ॥ मागन मरण समान हे, मत कोइ मागो भीख । मागणसे मरणा भला, ए सद्गुरुनी शीख ॥ २२४ ॥ मान अपमान गणे नहि, एसे शीतल संत । भवसागर उतर पड़े, तोडे जमका दंत ।। २२५ ॥ मींदडीने माळो नहि, उंदरने उचाळो नहि । नागर बच्चो काळो नहि, ब्राह्मग घेर पाळो नहि ।। २२६ ॥ मुरखने प्रतिबोधतां, मति पोतानी जाय । टपलो सराण चढावतां, आरिसो नवी थाय ।। २२७॥ मुरखनी संगतिथी लहे, भला जनो दुःखभार । माकडना मेलापथी, खाय खाटलो मार ॥ २२८ ॥ मुसल्ला सामा मळे, जुग जुग करे सलाम । साधु कु वंदे नहि, एसा चित्त हराम ॥ २२९ ॥ मेतो वांचे चोपडा, ने छोकरा करे मजा । त्रीश दिवसनो महिनो ने, एकत्रीश दिवसनी रजा ॥ २३०॥ मेरे मनमें ओर है, करता के मन और । आधो कहे माधो सुनो, जुठी मन की दोर ॥ २३१ ॥ में मेरा ए भावथी, वधे राग अरु रोष । जो बो में मनमें हुवे, तोला मिटे न दोष ।। २३२ ॥

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