Book Title: Prastavik Duha Sangrah
Author(s): Manivijay
Publisher: Devchand Dalichand

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Page 12
________________ Scanned by CamScanner श्री मस्ताविकता दुहा संग्रहः तन धन घरणी धाम मुत, मात तात भरु माण । एक धर्म के आगळे, हे सब तुच्छ समान ॥१२८॥ तमाकुमां तीन गुण, खावे पीवे लेवे नास । जो तमाकुनी निंदा करे, तो जाय सत्यानाश ॥१२९॥ तमाकुमा अवगुण तीन, हैयु जळे ने हाथ । हाथमां जाले ठीकरु ने, घरघर मागे आग ॥१३०॥ होकामां हिंसा घणी, पाप तणो सो पुर । जो सुख चाहे जीव का, तो होको कर दे दूर ॥१३१॥ नसा न नर को चाहिये, द्रव्य बुद्धि हर लेत । नीच नशाने कारणे, सब जग ताली देत ॥१३२ ।। पच्चीस बीडी रोजनी, सो बरसे नव लाख । धर्म धातु धन हणे, छाती थाये खास ॥१३३॥ ताबूत ताबूत शुं करो, मन राखो मजबूत । समजाव्यो समजे नहि, ते पंडे ताबूत ॥ १३४ ॥ तानसेन का तान में, सब तान गुलतान । आप आपके तान में, गद्धा भी मस्तान ॥ १३५ ॥ तिलक करतां त्रेपन यया, रुंडमालाना नाका गयां । कथा मुणी सुणी फुव्या कान, तोय न आव्यु ब्रह्मज्ञान ॥ १३६॥ तिलभर मछली खायके, कोटी गौ दे दान । कासी करवत लइ मरे, तोभी नरक निदान ॥ १३७॥ तुलसी कबु न कीजीये, वणिक पुत्र विश्वास । धन हरे धीरज दहे, रहे दास को दास ॥१३८ ॥ तुजको जो कोइ देवे मूल, तो तुं दे उसको फूल । तुजको फूल का फूल मिलेगा, उसको शूल का शूल ॥ १३९ ॥ थल उपनी जल में बसी, जलका जीव न खाय । जीवह कारण बापडी, क्षण आये क्षण जाय ॥१४॥ दी वाळे ते दीकरा, कां धोरी कां धरा । कां कपासना जीडवा, कां तलनां तलसरा ॥१४१॥ दुःखमें प्रभु को सब भजे, सुखमें भजे न कोय । मुखमें मधु को जो भजे, जगमें इसे न कोय (तो दुःख कहां से होय)॥१४२॥

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