Book Title: Prastavik Duha Sangrah
Author(s): Manivijay
Publisher: Devchand Dalichand

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Page 9
________________ Scanned by CamScanner गांजो पीतां जगतमां, लाज घटे बहुवार । गंजेडी केफी कहे, निंदे लोक अपार ॥ ८३॥ भंग रंग पीवा थकी, उपजे अवगुण अंग । भंगी तो रंगी दीसे, छोडे मुगुणी संग ॥ ८४ ॥ अमल भखंतां आळसु, निद्रा नेण अपार । लालचमां लपटी रहे, मुखथी को खबाद ॥ ८५॥ गुणतो गर्दधना कर्या, लांबा न कर्या कान । पूंछ करता मूछ करी, भुली गया भगवान ।। ८६ ॥ गुरुजी गुरुजी बोले सहु, गुरुजीने घेर बेटाने वह । गुरुजीने घेर ढांढा ढोर, अख्खो कहे आप वळावो ने आपज चोर॥८७॥ गुरु लोभी चेलो लालची, दोनुं खेले दाव । दोनुं बुडे बापडा, बेठे पत्थर की नाच ॥ ८८॥ गुणवंता गंभीरनर, दयावान दातार । अंतकाल तक न तजे, धैर्य धर्म उपकार ॥ ८९ ॥ गुण बोले निदे नहि, ते सोभागी होय । अवगुण बोले परतणां, ते दुर्भागी होय ॥९॥ गोधन गजधन रतनधन, कंचन खान सुखान । जब आवे संतोष धन, सब धन धूल समान ।। ९१ ॥ गोरख जंपे सुण रे बाबू, न गणीश आप पराया । जीवदया कु अविचल पालो, अवर धर्म सवि माया ॥ ९२ ॥ चतुरने चिंता घणी, मूरखने नहि लाज । भली बुरी जाणे नहि, पेटभर्यानुं काज ।। ९३ ॥ चंपा तुजमां तीन गुण, रूप रंग और वास । पण तुजमें अवगुण भर्या, भ्रमर न आवे पास ॥ ९४ ॥ चित्त अलुद्धा माणसा, जइ विलग्गे कंठ । टुट्या पछी जो सांधीये, तोय विचाले गंठ ॥ ९५॥ चिद् ज्योति जो नयन, अंतर भाविप्रकाश । करधंध सब परहरी, एक विवेक अभ्यास ।। ९६ ॥ चौदह चूके बारह भूले, छकायका न जाणे नाम । नगर दंदेरा फेरीया, श्रावक हमारा नाम ।। ९७ ॥

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