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प्रशमरति
प्रकरणम्
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जनो ज तेनो गर्व करे छे.
बळमद पण अवश्य तजवा योग्य छ एम शास्त्रकार जणावे छः-गमे तेवो बळवान्-कौवतवान् माणस पण जोतजोतामा तीव्र ज्वर के विशुचिकादिक वेदनाथी पीडातो छतो बळहीन थइ जाय छे अने कोइक दुर्बळ छतो स्निग्ध रसना संसेवन प्रमुखथी संस्कारवशात् शीघ्र पाछो बळवान् थइ जाय छे. उक्त न्यायथी बळ-सत्ता कदाचित् होय अने कदाचित् न पण होय ए रीते तेनुं अनियतपणुं स्वबुद्धिबळथी सारी रीते विचारी जोइ अने मृत्युना बळ पासे तो शरीरबळ, स्वजनबळ के द्रव्यबळ कशुं ज काम आवतुं नथी एम चोकस समजी राखी, छता बळनो पण मद न करवो एज सुज्ञ जनोने उचित छे. ___लाभमद करवो ए पण अनुचित छ एम शास्त्रकार बतावे छः-लाभान्तराय कर्मना क्षयोपशमथी खान, पान, वस्त्र, वसति, पीठ फलकादिकनो लाभ थाय छे अने लाभान्तराय कर्मना उदयथकी तेमाथी कशुं मळतुं नथी. एवी रीते लाभ (प्राप्ति ) अने अलाभ (अप्राप्ति ) अनित्य-अनियत जाणी अप्राप्ति समये दीनता करवी नहिं अने प्राप्ति समये गर्व करवो नहिं. जो लाभ थाय तो धर्मसाधनना आधाररूप शरीर दशविध चक्रवाल सामाचारी पाळवा समर्थ थशे अने लाभ नहीं थाय तो तेथी अदीनवृत्तिवाळा मुनिने निर्जरा तो अवश्य थशेज. एथी उक्त उभय प्रसंगे ज्ञानी पुरुषोने समभाव ज राखवो घटे छे. पर जे दाता-गृहस्थादि ते तेनी दानान्तराय कर्मक्षयोपशमजनित शक्ति प्रमाणे दान आपे छे-आपी शके छे. साधु तपस्वीने जोइ ते दातार्नु मन प्रसन्न थाय छे के "अहो ! आ महात्माने दीधेलुं दान बहु फळदायी थशे."
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