Book Title: Prashamrati Prakaranam
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 196
________________ विवेचन-क्षमादिक दश प्रकारनो यतिधर्म पहेली पंक्तिमा मृकवो तेनी नीचे बीजी पंक्तिमा पृथ्वी पाणी प्रमुख पांच स्थावर, बेइन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय अने अजीवकाय ए दशको स्थापवो; तेना पण नीचे त्रीजी पंक्तिमा श्रोत्र, चक्षु प्रमुख पांच इन्द्रियो स्थापवी; तेनी नीचे चोथी पंक्तिमा आहार भय प्रमुख चार संज्ञा स्थापवी; तेनी नीचे पांचमी पंक्तिमा 'न करे, न करावे, अने न अनुमोदे ' ए त्रण स्थापवा; भने तेनी नीचे छठी पंक्तिमा 'मन वडे, वचन वडे अने काया वडे ए त्रण स्थापवा. तेमा उक्त भेद (१८०००) उपजाववा माटे उच्चार नीचे मुजब करवा-क्षमायुक्त, पृथ्वीकाय समारंभ प्रत्ये, पोते श्रोत्र इन्द्रिय संवरेल अने आहार संज्ञा रहित होवाथी, न करे, मनथी; ए रीते मृदुतादि ब्रह्मचर्य पर्यन्त पद जोडवाथी दश भेद जेम पृथ्वीकाय संबंधे थया तेम अप्काय प्रमुख बाकीनां दरेक पद साथे दश दश भेद गणतां सो भेद फक्त श्रोत्र इन्द्रिय संबंधे थया. तेम बाकीना दरेक इन्द्रिय संबंधे सो सो भेद करता ५०० भेद केवळ आहार संज्ञाना संबंधे थया. तेवी जरीते बाकीनी त्रणे संज्ञा योगे ५००, ५०० भेद गणता २००० भेद फक्त 'समारंभ न करे' ए एक पद योगे ज थया. एज रीते न करावे, न अनुमोदे ' ए वाकीना दरेक पद योगे बेबे हजार भेद करतां एकंदर ६००० भेद केवळ 'मन वडे ' ए पद योगे ज थया. तेवी रीते 'वचन वडे अने काया बडे ' पण छ छ हजार भेद गणतां एकंदर शीलना १८००० भेद सिद्ध थया. शीलांगर्नु उक्त स्वरुप समजी सुज्ञ जनोए तेमां अवश्य यथाशक्ति आदर करवो. २४४ संपूर्ण शीलांग सेवननुं फळ शास्त्रकार पोते ज बतावे छे H For Personal Private Use Only

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