Book Title: Prashamrati Prakaranam
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 211
________________ श्री प्रशमरति प्रकरणम् ॥९७॥ कृत्स्ने लोकालोके व्यतीत साम्प्रत भविष्यतः कालान् । द्रव्यगुणपर्यायाणां ज्ञाता दृष्टा च सर्वार्थः ॥२६॥ अर्थ-( उक्त सर्वज्ञ भगवान ) सर्व लोकालोकमां अतीत अनागत अने वर्तमानकाळ संबंधी द्रव्य गुण पर्यायने सर्व रीते जाणे देखे छे. २६६ विवेचन-परिपूर्ण लोकालोकमां, गुणपर्यायवाळां द्रव्य, सहभावी गुण अने क्रममावी पर्याय ए सर्वना अतीत, अनागत अने वर्तमान काळ संबंधी सर्व भावने सर्व प्रकारे ते जाणे-देखे. ज्या काळ-द्रव्य नथी त्यां द्रव्यगुणपर्यायोने ज सर्व प्रकारे जाणे देखे अथवा लोकमा जे द्रव्य गुण पर्यायो के तेमना प्रतीत, अनागत अने भविष्यकाळ (वर्तनाक्रिया) ने सर्व प्रकारे जाणे अने देखे. २६६ क्षीणचतुष्काशो वेद्यायुर्नामगोत्रवेदयिता। विहरति मुहूर्तकालं देशोनां पूर्वकोटिं वा ॥ २७० ॥ अर्थ-जेणे चारे घातिकर्मनो क्षय कर्यो के एवा ते केवळी वेदनीय, आयुष्य, नाम अने गोत्रकर्मने वेदता छता मुहर्चपर्यंत अथवा कंइक न्यून क्रोडपूर्वपर्यंत विचरे छे. २७०. भावार्थ-मोहनीय, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय अने अंतराय ए चार घातिकर्म जेना क्षय पामी गया के अने | वेदनीय, आयुष्य, नाम तथा गोत्र ए चार भवधारणीय-अघाति कर्मनो जे अनुभव करे के एटले ते चार अघाति कर्म हजु खपाववानां बाकी छे ते सर्वज्ञ-भगवान भव्यजनोने प्रतिबोध करता, जघन्यथी मुहूर्त भने वधारेमां वधारे देशे उणां क्रोड Jain Education intek For Personal Private Use Only 'M ainelibrary.org

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