Book Title: Prashamrati Prakaranam
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 218
________________ जीव होय. तेनो जे सर्व जघन्य योग होय, एटले तेने जेटली मनोद्रव्यवर्गणा ग्रहण करवा योग्य शक्तिनो व्यापार होय तेटलोज मनोद्रव्यवर्गणाना स्थानाने स्वात्मामां निरोधे. पछी प्रथम जणाव्युं तेम समये समये करी छेवटे अमनस्क-मन रहित थाय. त्यारपछी कोडी विगेरे बेइन्द्रिय जीव तथा सूक्ष्म निगोदादिक जे साधारण जीव ते अनुक्रमे वचन पर्याप्ति अने काय पर्याप्ति वडे प्रथम समयना पर्याप्त थया होय तेमनो अनुक्रमे वचन अने उच्छ्वास रूप जे जघन्य योग होय तेथी ओछो असंख्यगुण हानिवडे, ज्यांसुधी समस्त वचनयोग अने उश्वास निःश्वास पर्याप्ति करणनो निरोध थाय त्यांसुधी समये समये स्वात्मामां तेनो निरोध करे. पछी सूक्ष्मपनक जीवना प्रथम समयना जघन्य काययोगथी असंख्यगुणहीन काययोगनो समये समये निरोध करतां छेल्ने समये सर्व काययोगनो निरोध करे. ते वखते सूक्ष्मकाययोगमा स्थित छतांज सूक्ष्म क्रिय अप्रतिपाति ध्यानने ध्यावे के अजे त्यारेज शैलेशी करण करे छे. शैल एटले पर्वत तेनो इश जे मेरु ते शैलेश तेनी जेवी निष्प्रंकप-निश्चळ वृत्ति जेमां होय ते शैलेशी कहेवाय छे. ते अवसरे स्वदेह अवगाहनाथी त्रीजा भागे हीन आत्मप्रदेशोनो घन थाय छे. शा माटे स्वदेहमानथी त्रीजो भाग ओछी अवगाहना रहे एको आत्मपदेशनो घन थाय चे? तो के शरीरमा निर्माण थयेला जे सुख श्रवण नासिकादिनां छिद्र तेने पूरी देवाने माटे आत्मप्रदेशोनो घन थाय छे. जेथी स्वशरीरमानथी त्रीजा भागे न्यून आत्मप्रदेशनी अवगाहना रहेवा पामे छे. त्यारपछी शुकध्याननो चोथो पाद ध्यावे के एटले के सकळ योगनो निरोध करी व्युपरत सकलक्रिय अनिवृत्ति नामना शुक्ल ध्यानने ध्यातां ते छेल्ला कौशने खपावी दे छे. २७८-८० चरमभवे संस्थानं यादृग्यस्योच्छ्रयप्रमाणं च । तस्मात्रिभागहीनावगाहसंस्थानपरिणाहः ।। २८१ ॥ - Jain Education in For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org

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