Book Title: Prashamrati Prakaranam
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 239
________________ श्री ना प्रशमरति प्रकरणम् ॥११॥ विवेचन-आ प्रशमरति प्रकरणनी रचनामां जे कंइ छंद, शब्दशास्त्र के शास्त्रप्रसिद्ध अर्थविरूद्ध म्हाराथी कहेवायु होय ते पुत्र अपराधवत् खमवू-माफ कर. जेम बाळकनो अपराध पिता खमे छे तेम ज्ञानवृद्धोए म्हारा सर्व अपराधने पण खमवा या माफ करवा. ३१२ सर्वसुखमूलबीजं सर्वार्थविनिश्चयप्रकाशकरम् । सर्वगुणसिद्धिसाधनधनमर्हच्छासनं जयति ॥ ३१३ ॥ ____भावार्थ-सर्व सुखनु मूल कारण, सर्वार्थसिद्धिने प्रकाश करनार, अने सर्व गुणसिद्धिनुं प्रगट साधन एवं अर्हत् || शासन सदा जयवंतु वर्ते छे. ३१३ विवेचन-आ लोकसंबंधी तेमज परलोक संबंधी प्रत्यक्ष तेमज परोक्ष सुखना मूळ कारणरूप अथवा लेशमात्र पण दःखथी अपित एवा सर्व सुख-मुक्तिसुखना प्राद्य बीजरूप जिनशासनज छे, तेमज सर्वे अर्थो-बाह्य पदार्थो काळ सहित पंचास्तिकायो ए सर्वनो अवबोध-निर्णयात्मक बोध तथा संसारस्थिति घटना अने मुक्तिमार्गने प्रकाशनार-प्रतिपादन करनार जैनशासनज छे. तथा सर्व गुण सिद्धि-निष्पत्ति करावी आपनार पुष्ट साधनरूप पण ए जिनशासनज छे. तेथी द्रव्यपर्याय नयसमूहात्मक अने सर्व कल्याणकारी एवं जैनशासन अन्य सर्व शासन मध्ये सर्वोपरी सत्ता धरावी सदा विजयवंतु वर्ते छे. ३१३. प्रशमरति प्रकरणं समाप्तमिति.. ॥११॥ Jan Education For Personal Private Use Only dainelibrary.org

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