Book Title: Prashamrati Prakaranam
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 213
________________ एटले ए चारे भवोपग्राही कर्मनी प्रशमरति प्रकरणम् आयुष्यण्डे ते वेदनीया चदा एवां पण नाम, गोत्र | होय त्यां सुधीज वेदना ॥९८॥ अने गोत्र कर्म होय छे, अने ते वेदनीयादि कर्मनी स्थिति जेटलुंज आउखु पण होय छे, एटले ए चारे भवोपग्राही कमनी स्थिति एक सरखी होय छे. सार ए छे के आउखाथी जूदा एवां पण नाम, गोत्र अने वेदनीय कर्म अभिन्न एटले तेना सरखी स्थितिवाळां होय छे. आयुष्यवडे ते वेदनीयादि उपगृहित के एम कहेवानी मतलब एवी के के आयुष्यनो संबंध होय त्यां सुधीज वेदनीयादि कम होइ शके छे अने ते आयुष्य कर्मनी संगावेज वेदी-अनुभवी शकाय छे. जे केवळी भगवंतने चरम भवना आयुष्यथी वेदनीय, नाम अने गोत्र कम भोगववानां अधिकतर होय ते केवळी भगवानज वेदनीयादिक ऋण कर्मने आउखा साथे सरखां करवाने एटले आउखा साथे भोगवाइ जाय तेटली स्थितिवाळां करवा माटे समुद्घात करे छे. अने तेम करीने जेटलुं आयुष्य अवशिष्ट होय तेटला वखतमा ज भोगवाइ शके तेटली ज स्थितिवाळां वेदनीयादिक कर्मने बनाये के. समुद्घातमा आत्माना आत्मप्रदेशो लोकव्यापी थइ रहे छे. सम्यग्-उत्कृष्ट, हनन-गमन एटले संपूर्ण लोकप्रमाण जेमां गमन-व्यापी जवानुं छे ते केवळी-समुद्घात जाणवो. लोकथी बहार जवाय तेम नहि होवाथी त्यांथी आगळ गमन थतुं नथी. १७१-७२ ___ हवे शास्त्रकार केवळी समुद्घातनो विधि-मर्यादा बतावे छःदण्डं प्रथमे समये कपाटमथ चोतरे तथा समये । मन्धानमथ तृतीये लोकव्यापी चतुर्थे तु ॥ २७३ ॥ संहरति पञ्चमे त्वन्तराणि मन्थानमथ पुनः षष्ठे । सप्तमके तु कपाटं संहरति ततो ऽष्टमे दण्डम् ॥ २७४ ।। Jain Education intelete For Personal Private Use Only bojainelibrary.org

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