Book Title: Prashamrati Prakaranam
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 201
________________ श्री चंदनवडे अंगच्छेदन अने अंगविलेपनमां समभावी, आत्मरमणी बनी तृण-मणि ने कनक - पत्थर उपर समचित्त, प्रशमरति स्वाध्यायध्यानमां तत्पर, अत्यंत अप्रमत्त, प्रशस्तयोगवडे अध्यवसायविशुद्धिथी विशुद्ध थता अने चारित्रनी अति विशुद्धि लेश्या विशुद्धिने पामीने कन्यायमूर्ति बनेला मुनिने घातिकर्मना क्षयना एक देशथी उत्पन्न थयेलं महा प्रभाववा पूर्वकरण प्राप्त थाय छे. २४९-२५४ विवेचन - सामान्य केवळीना पण मुगटमणिरूप जे तीर्थकरो, तेमनां वचन ( प्रवचन ), तेना अहिंसकत्व - दयादि प्रधान गुणोना समूहने - आज्ञा गुणाने ( प्रथम भेदमां ) सम्यग् प्रकारे आलोची, वध बंधन दासत्व भने असमाधि प्रमुख अपायोने ( बीजा भेदमां ) विचारी, त्रीजा भेदवडे विविध शुभाशुभ विपाकोने, तथा चोथा भेदमां घणाएक संस्थान कारोने चिन्तवता वा मुनिने ए रीते ध्यानयोगे चिन्दवन करतां शुं प्राप्त थाय छे १ ते शास्त्रकार कहे छे उक्त प्रकारे अहर्निश संसारथी भय पामेला, चमाधर्मना मूळरूष होवाथी क्षमा, धैर्य-समतावंत, गर्व - अहंकार रहित, मायारूप पापने खपावता ( चय करता ) अने सर्व लोभ कषायने जीती लेनार, जेने गाम अने अरण्य सरखां छे, स्वभात्मकार्यमां रक्त रहेबाथी जेवुं अरण्य तेवुंज नगर जेने लागे छे; स्वजन तथा शत्रुवर्गनो भेद मटी जवाथी जेवा स्वजन तेवोज शत्रु वर्ग पण प्रतिभासे छे; तेमज कोइ बांसलावती शरीरने छोली या छेदी जाय अने चंदनवती शरीरने कोइ लेपन करी जाय ते बने उपर जेने समभाव वर्ते थे; तचण अने उपलेपन क्रिया ए बनेमां समान भाव हे जेने एवा जे आत्मामां ज प्रीति करे - स्वकार्यमा ज तत्पर रहे थे, बीजे क्यांय प्रीति बांधता नथी; जेने दर्भ प्रमुख घास ने पद्मरागादि मणि सरखां प्रकरणम् ॥ ९२ ॥ COK→****O*************** Jain Education Ind For Personal & Private Use Only 69 ॥ ९२ ॥ Oljainelibrary.org

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