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४ अज्ञानी जीव परीषह के उपसर्ग भावतां पवित्र आज्ञा तजी संयमथी भ्रष्ट थइ जाय छे. ___५ जे संयमने सदा पाळता रहे छे तेज खरा त्यागी के निर्लोभी थइने जे विषयने पूंठ दे छे भने अनुक्रमे सर्व कर्मनो अंत करे छे तेज अणगार कहेवाय छे. ६ बाळ-अज्ञानी जीवोज एम बके छ के यम नियम कशा कामना नथी.
तत्व समजनारने कंइ कहेवानी जरुर नथी, केमके ते तो सीधे मार्गे चान्यो जाय छे. (वीर प्रभुए मजबूतीथी कडं के के मुनिए स्त्रीनो बीलकुल विश्वास करवो नहीं. भोगो रोगोनु कारण छे एम तेश्रोए स्पष्ट रीते बतावी प्राप्युं छे.)
८ शरीर जेम बहारथी असार छ तेम अंदरथी पण प्रसार छे. ___ जेम बाळको लाळने चूसी ले छे तेम बुद्धिवंते छंडेला भोगने फरी इच्छवा नहि, शब्दादि विषयो उपस्थित थतां तेमा खुशी थq नहीं. (केमके ते अनादि भज्ञान-चेष्टा ज छे.)
१. मुनिए संयम धारीने शरीर भने कर्मने तोडवा मांडवा. वीर-तत्वदशीं पुरुषो हलकुंभने लुखं भोजन करे छकरवू पसंद करे के अने संसार प्रवाहने तरे छे-तरी पार पामे छे.
११ तीर्थकरनी आज्ञाने नहि मानतां स्वेच्छाथी वर्तनारा मुनि मुक्ति पामवाने अयोग्य थाय छे.
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