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प्रशमरति
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३॥
छे-ते भेळवतां मतिज्ञानना ३४० भेद थाय छे. श्रुतज्ञानना १४ अने २० भेद थाय छे. अंगवाह्य अने अंगप्रविष्ट एवा बे भेद पण तेना छे. अंगवाह्यमा आवश्यक, उत्तराध्ययन, दशवैकालिकादिकनो समावेश थाय छे. अंगप्रविष्टमां आचारांगादि द्वादशांगीनो समावेश थाय छे. आ बंने ज्ञान सर्वद्रव्यविषयी छे. ___ अवधिज्ञानना जघन्य, मध्यम ने उत्कृष्ट एम त्रण भेद छ, अनुगामी, अननुगामी विगेरे छ भेद के अने तरतमता योगे असंख्य भेद पण थाय छे. मन:पर्यवज्ञानना ऋजुमति ने विपुलमति एम वे भेद छे. ऋजुमति करतां विपुलमति विशेष निर्मळ छे. या ज्ञान अवधिज्ञानना उत्कृष्ट विषय करतां अनंतमा भागना मनोद्रव्यने जाणनार थे, परंतु तेना करतां कात्यंत विशुद्ध के अने तेना स्वामी अप्रमत्त मुनि ज छे-बीजाने ते ज्ञान थतुं नथी. जातिस्मरण ज्ञान मतिज्ञाननोज भेद छे. मति श्रुत ने अवधि एत्रण ज्ञान मिथ्यादर्शनना योगथी विपर्ययभावने पामे छे एटले ते मतिअज्ञान, श्रुतप्रज्ञान अने विभंगज्ञानना नामथी ओळखाय छे. केवळज्ञान तो सर्व जीवने एक सरखं ज थतुं होबाथी तेना भेद विभेद नथी. आ ज्ञान संबंधी विशेष विचार तेना भेद, काळ, कारण, स्वामी, क्षेत्रादि जाणवाथी जाणी शकाय छे. विस्तारना इच्छके श्री नंदीसूत्र अने विशेषावश्यकादिथी ते जाणी लेवो.
आ पांच ज्ञान पैकी समकाळे केटला होय ? तेना उत्तरमा १-२-३-४ होय एम कहेल छे. समकाळे पांच ज्ञान एटला माटे न होय के ज्यारे केवळज्ञान प्राप्त थाय छे त्यारे प्रथमना छानस्थिक ज्ञान बेत्रण के चार होय ते नष्ट थइ जाय छे. मात्र एकलु केवळज्ञान ज लोकालोक प्रकाशक रहे के के जेमां बीजानी बीलकुल अपेक्षा होनी नथी. जीवने
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