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प्रशमरति
प्रकरणम्
ए नव पदार्थोमा प्रथम जीवभेद प्रतिपादन करवा माटे शास्त्रकार कहे छ:जीवा मुक्ताः संसारिणश्च संसारिणस्त्वनेकविधाः । लक्षणतो विज्ञया द्वित्रिचतुःपञ्चषडभेदाः ॥ १९ ॥ द्विविधाश्चराचराख्यास्त्रिविधाः स्त्रीपुंनपुंसका ज्ञेयाः । नारकतिर्यग्मानुषदेवाश्चतुर्विधाः प्रोक्ताः ॥ १६१ ॥ पञ्चविधास्त्वेकद्वित्रिचतुःपश्चेन्द्रियास्तु निर्दिष्टाः। क्षित्यम्बुवहिपवनतरवस्त्रसाश्चेति षड्भेदाः ॥ १६२ ।।
भावार्थ---सिद्ध अने संसारी एम मुख्यपणे वे प्रकारना जीव के. एमां संसारी जीव बे प्रकारना, त्रण प्रकारना, चार प्रकारना. पांच प्रकारना, छ प्रकारना एम जुदी जुदी रीते अनेक प्रकारना जाणवा. त्रस भने स्थावर एम वे प्रकारना स्त्री पुरुष अने नपुंसक त्रण प्रकारना; तेमज नारकी, तिर्यच, मनुष्य अवे देवता एम चार प्रकारना जीवो कह्या छे. एकद्रिय, बेइंद्रिय, त्रिइंद्रिय, चउरिंद्रिय अने पंचेंद्रिय एम पांच प्रकारना तथा पृथ्विकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय, बनस्पतिकाय अने त्रसकाय एम छ प्रकारना जीव कह्या छे. १६०-१९१-१९२.
विवेचन-जीव वे प्रकारना छे. मुक्त अने संसारी. सकळ कर्मनो क्षय करी सिद्ध, बुद्ध, मुक्त बयेला जीवो सघळा एकज लक्षणवाळा छे, त्यारे संसारी जीवो चार गतिमा प्रवृत्त थयेला अनेक प्रकारना छे. नारक, तिर्यच, मनुष्य अने देवता. ते दरेकना पाछा भेद होय छे. रत्नप्रभादिक नारकीना सात भेदो छे. एकेन्द्रियथी मांडी पंचेन्द्रिय पर्यत तियंचोना अनेक भेदो छे. पृथ्वी प्रमुख एकेन्द्रियना भेदो; शंख, शुक्तिका (छीपली) प्रमुख बेइन्द्रियना भेदो; कीडी,
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