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भावे धर्माधर्माम्बरकालाः पारिणामिके ज्ञेयाः । उदयपरिणामि रूपं तु सर्वभावानुगा जीवाः ॥ २०९ ॥
भावार्थ-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय अने काळ ए पारिणामिक भावने विषे जाणवा, रूप (पुद्गल ) उदयभावी ने परिणामी छ अने जीवो सर्व भावने अनुसरनारा छे. २०९
विवेचन-धर्मास्तिकायादि चार द्रव्य अनादि पारिणामिक भावे वर्ते छे. जेम जीवमा भव्यत्व अभव्यत्व अनादि पारिणामिक भावे छे तेम. वळी जेम आ संसार अनादि छे तेग धर्मादि द्रव्यना परिणाम पण अनादि छ क्यारे पण धर्मादि द्रव्यथी रहित आ लोक हतो नही. ए प्रकारनो अनादि पारिणामिक भाव ए चार द्रव्यमा छे. पुद्गल द्रव्य पारिणामिक भावे छे अने औदयिक भावे पण छे. परमाणु ते परमाणुज छे. ए रीते तेनामा अनादि पारिणामिक भार छ, अने परमाणुना द्वथणुकादि जे स्कंधो थाय छे ते तथा अभ्र (मेघ) ने इंद्रधनुष्यादिपणे पुद्गल द्रव्यो परिणमे छे ते तेनामा सादि (आदिवाळो) पारिणामिक भाव छे. वर्ण, गंध, रसादि परिणाम जे परमाणु तथा स्कंधोमां थाय छे ते औदयिकभाव छ तेमज द्वथणुकादि संहतिना परिणाम पण औदयिक भावना छे. जीवद्रव्य तो औपशमिकादि सर्व भावमा वर्ते के ए हकीकत जीवतचना स्वरूपमा कहेवायेल छे. २०९ |. हवे पा लोक ते शुं छे ? पद्रव्यरूपज लोक छ के ते काइ बीजी वस्तु के ? अने ते लोकनी आकृति केवी छे ? |
ते कहे छे:2 जीवाजीवा द्रव्यमिति षइविधं भवति लोकपुरुषो ऽयम्। वैशाखस्थानस्थः पुरुष इव कटिस्थकरयुग्मः।२१०॥
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